हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार और जेल अधिकारियों को जारी किया नोटिस, जानिये विचाराधीन कैदी का ये मामला

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली सरकार और तिहाड़ जेल प्राधिकारियों से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें उन पर विचाराधीन कैदी को उचित इलाज मुहैया कराने में लापरवाही का आरोप लगाया गया है, जिसके कारण उसकी मौत हो गई। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय


नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली सरकार और तिहाड़ जेल प्राधिकारियों से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें उन पर विचाराधीन कैदी को उचित इलाज मुहैया कराने में लापरवाही का आरोप लगाया गया है, जिसके कारण उसकी मौत हो गई।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने मृतक की मां की याचिका पर दिल्ली सरकार, महानिदेशक (कारागार) और तिहाड़ जेल संख्या. 3 के अधीक्षक को नोटिस जारी किया।

उच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 18 दिसंबर तय की।

याचिकाकर्ता सुनीता (68) ने दावा किया है कि उसके बेटे दीपक कुमार यादव (32) को साल 2010 में हत्या के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था और मार्च 2018 में जब वह जेल में था तब वहां ‘‘गंदगी’’ के कारण उसे पेट से संबंधित कुछ समस्याएं हुईं, जिसके बाद उसे जेल की डिस्पेंसरी में डॉक्टरों के पास ले जाया गया।

अधिवक्ता अमित कुमार के जरिये दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि दीपक ने कई बार अपने पेट के निचले हिस्से में तेज दर्ज की शिकायत की, लेकिन जेल के मेडिकल कर्मियों ने उसे उचित इलाज मुहैया नहीं कराया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दीपक की ठीक तरह से जांच किए बिना उसे कथित तौर पर दर्द निवारक दवाएं दी गईं।

याचिका में कहा गया है कि यादव की तबीयत बिगड़ गई और जब उसकी हालत गंभीर हो गई तो उसे लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल ले जाया गया, जहां उसके पेट से संबंधित ‘पर्फोरेशन पेरिटोनिस’ नामक बीमारी होने के बारे में पता चला। बीमारी काफी बढ़ने के कारण उसकी सर्जरी की गई।

याचिका में कहा गया है, 'याचिकाकर्ता और यादव दोनों ने बीमारी को लेकर जेल अधिकारियों के लापरवाह रवैये के बारे में निचली अदालत से कई अनुरोध किए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला क्योंकि प्रतिवादी कैदी के इलाज के बारे में अदालत के सामने गलत जानकारी पेश करते रहे।'

याचिका में कहा गया है कि यादव की मौत एक विचाराधीन कैदी के मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक उदाहरण है।

याचिका में प्राधिकारियों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वे महिला को उसके बेटे की न्यायिक हिरासत में मौत को लेकर 20 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करें।










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