Happy Dussehra: जानिए दशहरा के दिन क्यों करते हैं शस्त्र पूजा

डीएन ब्यूरो

विजयादशमी के दिन शस्त्रों की भी पूजा की जाती है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

दशहरा पर शस्त्र पूजा का है महत्व
दशहरा पर शस्त्र पूजा का है महत्व


नई दिल्ली: प्राचीन काल (Ancient Times) से ही दशहरे (Dussehra) पर शस्त्र पूजा (Worshiping Weapons) की परंपरा चली आ रही है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयदशमी (Vijayadashami) मनाई जाती है। इस दिन देवी अपराजिता की पूजा की जाती है। इस पूजा में मां रणचंडी के साथ रहने वाली योगनियों जया और विजया को पूजा जाता है। इनकी पूजा में अस्त्र-शस्त्रों को सामने रखकर पूजा करने की परंपरा रामायण और महाभारत काल से चली आ रही है।

शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि श्रीराम (Shri Ram) ने रावण (Ravana) का वध करने के लिए युद्ध पर जाने से पहले शस्त्र पूजा की थी तभी वो रावण को मारने में सफल हुए थे, इसलिए दशहरा पर शस्त्र पूजा भी की जाती है। 

आदिकाल से चली आ रही शस्त्र पूजन की परंपरा

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार शस्त्र पूजन की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। प्राचीन समय में राजा-महाराजा विशाल शस्त्र पूजन करते रहे हैं। आज भी इ‍स दिन क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं। सेना में भी इस दिन शस्त्र पूजन किया जाता है।

शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए शस्त्र पूजा 
दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करने की परंपरा आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही है। प्राचीन समय में राजा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा किया करते थे। साथ ही अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए शस्त्रों का चुनाव भी किया करते थे। 9 दिन तक देवी की शक्तियों की उपासना करने के बाद दसवें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना करते हैं।

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माता चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्र पूजन करना चाहिए। विजयादशमी पर मां भवानी और माता काली की पूजा करने के साथ साथ शस्त्र पूजन करने की पंरपरा है।

भारतीय सेना भी करती है शस्त्र पूजा
भारतीय सेना भी हर साल दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करती है। इस पूजा में सबसे पहले मां दुर्गा की दोनो योगनियां जया और विजया की पूजा होती है फिर अस्त्र-शस्त्रों को पूजा जाता है।

इस पूजा का उद्देश्य सीमा की सुरक्षा में देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना है। मान्यताओं के अनुसार रामायण काल से ही शस्त्र पूजा की परंपरा चली आ रही है। भगवान राम ने भी रावण से युद्ध करने से पहले शस्त्र पूजा की थी।

बुराई पर अच्छाई की जीत

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एक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने रावण के साथ युद्ध से पहले अपने शस्त्रों का पूजन किया था। वहीं मां दुर्गा ने महिषासुर का वध करने से पहले शस्त्रों की पूजा की थी। इसी कारण दशहरे के दिन शस्त्र पूजन की परंपरा को महत्वपूर्ण माना जाता है।

दशहरा पर रावण दहन और शस्त्र पूजन दोनों ही अनुष्ठान विजय का प्रतीक हैं और इनसे बुराइयों के विनाश का संदेश मिलता है। 

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