मामलों को सूचीबद्ध करने पर हुए विवाद को लेकर नाखुश प्रधान न्यायाधीश ने कहा: आरोप लगाना बहुत आसान है
मामलों को सूचीबद्ध करने को लेकर विवाद से नाखुश प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड ने बहस्पतिवार को कहा कि आरोप लगाना और पत्र लिखना ‘बहुत आसान’ है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नयी दिल्ली: मामलों को सूचीबद्ध करने को लेकर विवाद से नाखुश प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड ने बहस्पतिवार को कहा कि आरोप लगाना और पत्र लिखना ‘बहुत आसान’ है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक प्रधान न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि बीमारी की वजह से न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना के उपलब्ध नहीं होने की वजह से धनशोधन के मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता सत्येंद्र कुमार जैन की जमानत याचिका को न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है।
बार के दो वरिष्ठ सदस्यों- दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण- ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को अलग-अलग पत्र लिखकर मामलों को सूचीबद्ध करने में कथित गड़बड़ी का मामला उठाया है और कहा है कि याचिकाओं को जिस पीठ द्वारा सुना जाना निर्धारित है, उससे इतर भेजा जा रहा है। इस अप्रिय विवाद के संदर्भ में प्रधान न्यायाधीश ने उक्त टिप्पणी की है।
प्रधान न्यायाधीश ने आज दिन में जैन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी के उस आग्रह को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसमें दिल्ली के पूर्व मंत्री जैन की जमानत याचिका पर न्यायमूर्ति त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा की जाने वाली सुनवाई को स्थगित करने का अनुरोध किया गया था। न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि संबंधित न्यायाधीश ही फैसला लेंगे।
उन्होंने कहा, “आरोप लगाना और पत्र लिखना बहुत आसान है। न्यायमूर्ति (ए एस) बोपन्ना के कार्यालय से एक पत्र आया है। चिकित्सीय कारणों से वह दिवाली के बाद से काम पर नहीं आए हैं। उन्होंने (न्यायमूर्ति बोपन्ना ने) कहा है कि उनके द्वारा सुने गए सभी मामलों को ‘आंशिक रूप से सुना हुआ’ (पार्ट हर्ड) के रूप में नहीं छोड़ा जाना चाहिए।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “इसलिए यह (जैन की जमानत याचिका का) मामला न्यायूर्ति त्रिवेदी को सौंपा गया, जिन्होंने आखिरी बार इस मामले की सुनवाई की थी। न्यायमूर्ति त्रिवेदी को मामले की सुनवाई इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि यह अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ाने के लिए एक आवेदन है। मैंने सोचा कि मैं इसे स्पष्ट कर दूंगा।”
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न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि बार के एक सदस्य का यह कहना अजीब है कि 'मुझे यह खास न्यायाधीश चाहिए।”
अदालत कक्ष में मौजद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे 'दुर्भावनापूर्ण' पत्रों से निपटने का एकमात्र तरीका उन्हें अनदेखा करना है और उनपर प्रतिक्रिया नहीं दी जानी चाहिए।
दोपहर में, प्रधान न्यायाधीश ने इस बात को स्पष्ट करने के लिए न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति त्रिवेदी की पीठ के कुछ पिछले आदेशों का हवाला दिया कि न्यायमूर्ति बोपन्ना ही चाहते थे कि जैन के मामले को ‘आंशिक रूप से सुने’ मामले के तौर पर न रखा जाए।
उन्होंने कहा, “बार का कोई भी सदस्य यह कह रहा है कि इस विशेष न्यायाधीश को मेरा मामला सुनना चाहिए और किसी अन्य न्यायाधीश को नहीं... ऐसा नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति बोपन्ना को चिकित्सा अवकाश पर जाना पड़ा..।''
पूर्वाह्न में सिंघवी ने कहा कि जैन की याचिका पर न्यायमूर्ति त्रिवेदी की अगुवाई वाली पीठ द्वारा प्रस्तावित सुनवाई को टाल दिया जाए।
सिंघवी ने कहा कि न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति त्रिवेदी की पीठ ने मामले में पर्याप्त दलीलें सुनी थीं और अब यह मामला उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है, जिसमें न्यायमूर्ति बोपन्ना शामिल नहीं हैं।
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वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘हम स्थगन का अनुरोध करते हैं। अगर आप (सीजेआई) एक बार मामले के कागजात देख लेते।’’
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘संबंधित न्यायाधीश मामले को देख रहे हैं और मैं उनके समक्ष सूचीबद्ध मामले में कोई दखल नहीं दूंगा। जिस न्यायाधीश के पास मामला है वही इस पर निर्णय लेंगे। मैं नहीं ले सकता। मैं निर्णय नहीं ले सकता।’’
जैन ने जमानत के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था और वर्तमान में वह स्वास्थ्य आधार पर अंतरिम जमानत पर हैं।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति एससी शर्मा की पीठ ने उस वक्त जैन की अंतरिम जमानत आठ जनवरी तक बढ़ा दी जब उसे यह अवगत कराया गया कि नौ दिसंबर को उनके पैर में ‘फ्रैक्चर’ हो गया था।