लोकसभा चुनाव से पहले कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने में जुटी भाजपा, जानिये पूरी सियासी चाल

डीएन ब्यूरो

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता पिछले कुछ दिनों से संगठनात्मक मामलों पर मंथन कर रहे हैं क्योंकि मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे चुनावी राज्यों में ‘गुटबाजी’ उसके लिए परेशानी का सबब बन गई है। ऐसे में पार्टी की कोशिश चुनाव से पहले इन कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने और कार्यकर्ताओं में नयी ऊर्जा फूंकने की है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

भाजपा की प्राथमिकताओं में राज्यों में संगठन की मजबूती
भाजपा की प्राथमिकताओं में राज्यों में संगठन की मजबूती


नयी दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता पिछले कुछ दिनों से संगठनात्मक मामलों पर मंथन कर रहे हैं क्योंकि मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे चुनावी राज्यों में ‘गुटबाजी’ उसके लिए परेशानी का सबब बन गई है। ऐसे में पार्टी की कोशिश चुनाव से पहले इन कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करने और कार्यकर्ताओं में नयी ऊर्जा फूंकने की है।

पार्टी के एजेंडे में एक और मुद्दा सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का विस्तार है। हाल के वर्षों में जनता दल (यूनाइटेड) और अकाली दल जैसे पारंपरिक सहयोगियों का साथ छूटने के बाद राजग के घटक दलों में कमी आई है।

वर्ष 2018 में राजग छोड़ने वाली तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के सुप्रीमो एन चंद्रबाबू नायडू और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच हुई हालिया बैठक ने उन चर्चाओं को एक बार फिर तेज कर दिया है कि दोनों दलों के बीच फिर से गठबंधन हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि नायडू भी लंबे समय से इसके लिए प्रयासरत हैं।

भाजपा के एक नेता ने कहा कि जल्द ही राजग का विस्तारित स्वरुप सामने आएगा जब इसकी एक बैठक होगी। हालांकि यह देखा जाना अभी बाकी है कि क्या भाजपा औपचारिक रूप से तेदेपा के साथ हाथ मिलाती है क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के साथ भी उसके अच्छे समीकरण रहे हैं।

दोनों दलों के बीच गठबंधन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस को विपक्षी खेमे में धकेल सकता है। तेदेपा के साथ गठबंधन की संभावना पर भाजपा सूत्रों ने कहा कि यह फैसला पार्टी के शीर्ष नेता करेंगे।

पार्टी 2024 के लोकसभा चुनावों में केंद्र में सत्ता बरकरार रखने की अपनी योजनाओं पर काम कर रही है, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव भी उसकी प्राथमिकताओं की सूची में शामिल हैं। खासकर कर्नाटक में कांग्रेस से हार के बाद भाजपा अत्यधिक सक्रिय हो गई है क्योंकि इस साल होने वाले चार बड़े विधानसभा चुनावों में से तीन में कांग्रेस ही उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी होगी।

मध्य प्रदेश और तेलंगाना के अलावा इस साल कांग्रेस शासित राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव होने हैं।

भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष वी डी शर्मा का कार्यकाल पूरा हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके बीच बेहतर तालमेल के अभाव की खबरें भी अक्सर आया करती है। मध्य प्रदेश में पारंपरिक रूप से भाजपा का संगठन मजबूत माना जाता है।

सूत्रों ने कहा कि ऐसे में भाजपा नेतृत्व मध्य प्रदेश संगठन में कुछ बदलाव कर सकता है।

उन्होंने कहा कि तेलंगाना में भाजपा के बढ़ते ग्राफ को हाल के दिनों में झटका लगा है क्योंकि कई स्थानीय क्षत्रपों ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बंडी संजय कुमार की नेतृत्व शैली के खिलाफ शिकायत की है।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने संगठन में नई जान फूंकने के लिए कुमार की ‘वैचारिक दृढ़ता’ और ‘कड़ी मेहनत’ की प्रशंसा की लेकिन साथ ही कहा कि वह सभी को साथ लेकर चलने में सक्षम नहीं हैं, खासकर उन मजबूत स्थानीय नेताओं को जो पिछले कुछ वर्षों में अन्य दलों से भाजपा में शामिल हुए हैं।

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ने उसके कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है और वर्षों तक हाशिए पर रहने के बाद पड़ोसी तेलंगाना में उसके ध्यान केंद्रित करने से भाजपा की चिंता बढ़ गई है। इस राज्य में सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति भी सत्ता बरकरार रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।

सूत्रों ने कहा कि राज्य में अन्य दलों के बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल करने के भाजपा के अभियान का पिछले कुछ महीनों में बहुत फायदा नहीं हुआ है। इस मुद्दे पर पार्टी संगठन में चर्चा भी हुई है।

प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कुमार का तीन साल का कार्यकाल समाप्त हो गया है। अब राष्ट्रीय नेतृत्व को तय करना है कि तेलंगाना के साथ ही मध्य प्रदेश में भी प्रदेश नेतृत्व को विधानसभा चुनावों तक बनाए रखा जाए या फिर कोई बदलाव किया जाए।

कर्नाटक में भी भाजपा को संगठनात्मक बदलाव पर फैसला लेना है। हाल ही में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद भाजपा अभी तक विपक्ष का नेता नियुक्त नहीं कर सकी है।

सूत्रों का कहना है कि भाजपा कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष नलिन कुमार कटील को भी बदल सकती है। उनका कार्यकाल महीनों पहले खत्म हो गया था, लेकिन मई में हुए चुनावों के कारण पार्टी ने उन्हें पद पर बनाए रखा।

केंद्रीय गृह मंत्री शाह, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी एल संतोष ने कई संगठनात्मक मुद्दों पर सोमवार और मंगलवार को मैराथन बैठकें की थी।

सूत्रों ने कहा है कि इन बैठकों में वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों के साथ ही संगठनात्मक मामलों से जुड़े कामकाज की भी समीक्षा की गई।

उनका कहना है कि पार्टी कुछ राज्यों में अपने संगठन में बदलाव कर सकती है और केंद्रीय पदाधिकारियों को नयी जिम्मेदारी सौंप सकती है।










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