महराजगंजः खेती-किसानी के लिये बना कृषि विज्ञान केन्द्र बसुली अपनी बदहाली पर बहा रहा आंसू, पढ़िये ये स्पेशल रिपोर्ट
महराजगंज के सिसवा क्षेत्र में कृषि विज्ञान केन्द्र बसुली कई समस्याओं से जूझ रहा है। खेती-किसानी के लिये स्थापित यह केंद्र अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
महराजगंजः सरकार भले ही किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है लेकिन महराजगंज के वसूली स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र व क्षेत्रीय कृषि शोध केन्द्र किसानों की कसौटी पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। यहां 6 वैज्ञानिकों के पद है लेकिन तैनाती मात्र तीन वैज्ञानिक की हुई है। जरूरत से कम तैनाती के कारण खेती-किसानी की समस्या का समाधान समय पर नहीं हो पा रहा है।
डाइनामाइट न्यूज़ के संवाददाता के मुताबिक फसल सुरक्षा के वैज्ञानिक डॉ, डीपी सिंह केन्द्र के प्रभारी बनाए गए हैं। जबकि पशुपालन के वैज्ञानिक डॉ, विजय चन्द्रा, फसल वैज्ञानिक डां, शिवपूजन व उद्यान के डा, पीके सिंह के जिम्मे जिले के पौने चार लाख किसानों को खेती की नई जानकारियां देने की जिम्मेदारी है।
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संसाधनों में बेहद कंगाल है यह कृषि विज्ञान केन्द्र
संसाधनों के मामले में भी यह केन्द्र बेहद कंगाल है। बिजली कनेक्शन के अभाव में दस लाख रुपए का नलकूप बेकार पड़ा है। तकरीकन 20 एकड़ क्षेत्र में फैले इस केन्द्र में खेत की सिंचाई नहर के पानी के सहारे है। वर्ष 2005 में कृषि विज्ञान केन्द्र बसूली को दर्जा मिला। यह केन्द्र सिसवा क्षेत्र के जहदा बाजार से साढ़े तीन किलोमीटर दूर स्थित है। केन्द्र जंगल से सटा है। इसके पहले यह सिर्फ एक शोध केन्द्र था। यहां नए उन्नतशील धान व गेहूं के बीजों पर शोध किया जाता था। लेकिन अब वह भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
तीन वैज्ञानिक की तैनाती
कृषि विज्ञान केन्द्र में मृदा वैज्ञानिक, एग्रोनामी वैज्ञानिक, उद्यान वैज्ञानिक, गृह विज्ञान वैज्ञानिक, पशुपालन वैज्ञानिक, फार्म इंजीनियर व फसल सुरक्षा वैज्ञानिक का पद है। लेकिन मात्र पशुपालन के वैज्ञानिक डॉ, विजय चन्द्रा की तैनाती हुई है। जबकि फसल सुरक्षा के वैज्ञानिक डॉ, डीपी सिंह को कृषि विज्ञान केन्द्र इंचार्ज की जिम्मेदारी दी गई है।
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20 एकड़ खेत के सिंचाई का दारोमदार
कृषि विज्ञान केन्द्र व क्षेत्रीय कृषि शोध केन्द्र 20 एकड़ क्षेत्र में फैला है। यहां नए-नए धान गेहूं आदि फसलों ट्रायल होता है। सरकार ने दस लाख रुपए खर्च कर नलकूप लगाया। लेकिन अभी तक बिजली का कनेक्शन नहीं हो पाया है। जहदा नहर के पानी से पूरे फार्म के खेतों की सिंचाई का दारोमदार है। समय से नहर में पानी आया तो ठीक। नहीं तो बहुत से खेत बिना सिंचाई के ही सूख जाते हैं।
क्या बोले जिम्मेदार
कृषि विज्ञान केन्द्र बसूली के प्रभारी डां, बीपी सिंह ने डाइनामाइट न्यूज को बताया कि जो भी समिति संसाधन मौजूद हैं। उनके जरिए किसानों को बेहतर तकनीकी जानकारी देने का प्रयास किया जा रहा है। तकनीकी कारणों से वैज्ञानिकों की तैनाती होने में दिक्क्त आ रही है। इसके लिए भारतीय अनुसंधान विज्ञान केन्द्र को पत्र लिखा गया है।