अयोध्या में मोहर्रम पर ताजिया दफन, जुलूस में उमड़ी धार्मिक श्रद्धा, कड़े सुरक्षा इंतजाम

10वीं मोहर्रम को लेकर शहर में धार्मिक उल्लास और गहरी श्रद्धा का माहौल देखा जा रहा है। जब सभी ताजिए शहर के बड़ी बुआ कर्बला स्थल पर दफन किए जा रहे हैं। इस दौरान मुस्लिम युवा करतब दिखाकर श्रद्धा प्रकट कर रहे हैं।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 6 July 2025, 6:11 PM IST
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Ayodhya News: मोहर्रम के दिन अयोध्या में ताजिया दफन करने की परंपरा है, जिसे पूरे धार्मिक श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाया जाता है। इस अवसर पर आज अयोध्या में बड़े और छोटे सैकड़ों जुलूस निकाले गए। जुलूस के दौरान लोग अपने पारंपरिक रूप से ताजिए उठाए हुए थे।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, इन ताजियों को कर्बला तक ले जाने की प्रक्रिया में भाग ले रहे थे। इस दौरान मुस्लिम युवा करतब दिखाते हुए अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट कर रहे थे। यह दृश्य जुलूस के साथ-साथ धार्मिक भावना से ओत-प्रोत था।

सुरक्षा इंतजामों की मजबूती

अयोध्या एसपी सिटी चक्रपाणि त्रिपाठी ने बताया कि 10वीं मोहर्रम के जुलूस के दौरान सभी ताजिए दफन किए जा रहे हैं और इस दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जुलूस के मार्गों पर पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती की गई है, ताकि शांति और व्यवस्था बनाए रखी जा सके। इसके अलावा, कर्बला स्थल पर भी सुरक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त किया गया है। त्रिपाठी ने यह भी जानकारी दी कि शहर में 100 से अधिक छोटे-बड़े जुलूस निकल रहे हैं और सभी जुलूस शांति और सौहार्द्रपूर्ण तरीके से निकाले जा रहे हैं।

शहर में धार्मिक उल्लास और शांति का माहौल

मोहर्रम का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए गम और शोक का प्रतीक है। इस महीने में इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहीदी को याद किया जाता है, जिन्होंने कर्बला में अत्याचारों के खिलाफ अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस दिन को विशेष रूप से शोक और श्रद्धा के रूप में मनाया जाता है। मुस्लिम समुदाय मोहर्रम के इस दिन को श्रद्धा भाव से मानता है और अपने पूर्वजों के बलिदान को याद करता है।

कर्बला की जंग और इमाम हुसैन की शहादत

मोहर्रम, खासकर 10वीं तारीख, मुसलमानों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायी कर्बला की जंग में शहीद हुए थे। यह जंग धर्म, न्याय और सत्य के पक्ष में लड़ाई थी, जहां इमाम हुसैन ने अत्याचारों के खिलाफ अपनी जान दे दी थी। मुसलमान इस दिन को शोक और श्रद्धा के साथ मनाते हैं, और ताजिया की प्रक्रिया के माध्यम से अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।

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