

मरने के बाद कोई व्यक्ति फिर से जीवित हो जाए…यह सुनकर चौंकना स्वाभाविक है। लेकिन दुनिया भर में कई बार ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। इन रहस्यमयी घटनाओं के पीछे क्या है कोई चमत्कार या फिर विज्ञान की अनदेखी? आइए जानें विज्ञान और धार्मिक मान्यताओं की नजर से इस अनोखी स्थिति को…
प्रतीकात्मक फोटो (सोर्स: इंटरनेट)
New Delhi: आपने अक्सर अखबारों या सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें पढ़ी होंगी कि कोई व्यक्ति मरने के कुछ घंटे बाद फिर से जिंदा हो गया। कुछ मामलों में तो लोग अंतिम संस्कार से ठीक पहले उठ बैठे। यह सुनकर चमत्कार जैसा लगता है, लेकिन क्या यह वास्तव में चमत्कार है या फिर विज्ञान की गलती?
अधूरी मौत और आत्मा की वापसी
अक्सर इन घटनाओं को धार्मिक आस्थाओं से जोड़कर देखा जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु का समय नहीं आया हो, तो उसे ऊपर से वापस भेज दिया जाता है। कई परंपराओं में माना जाता है कि आत्मा शरीर छोड़ने के बाद भी कुछ समय तक आसपास रहती है और यदि मृत्यु की घड़ी पूरी नहीं हुई होती, तो वह शरीर में
वापसी कर सकती है।
विज्ञान की नजर में ये “जिंदा होना” क्या है?
विज्ञान इन घटनाओं को चमत्कार नहीं मानता, बल्कि इसे मानव शरीर और चिकित्सा प्रक्रिया में हुई गलतियों के रूप में देखता है। वैज्ञानिक स्टीफन ह्यूजेस के अनुसार, कई बार ऐसा होता है कि डॉक्टर धड़कन या सांस के रुकने को ही मृत्यु समझ लेते हैं, जबकि वह केवल क्लिनिकल डेथ होती है, न कि बायोलॉजिकल डेथ। इसका मतलब यह है कि व्यक्ति के कुछ अंग, विशेष रूप से मस्तिष्क और हृदय, पूरी तरह से काम करना बंद नहीं करते, लेकिन उनकी गतिविधि इतनी धीमी हो जाती है कि उन्हें सामान्य तौर पर पकड़ना मुश्किल होता है।
पोस्टमॉर्टम एक्टिविटी और 'लाजवंत' मूवमेंट्स
कभी-कभी मृत्यु के बाद भी शरीर में हल्की हरकतें होती हैं, जैसे कि हाथ-पैरों का हिलना, आंखें खुलना या सांस जैसा कुछ प्रतीत होना। इसे वैज्ञानिक Postmortem muscle movement कहते हैं। इसके अलावा लाजवंत फेनोमेनन (Lazarus Phenomenon) नाम की स्थिति में मृत्यु घोषित किए गए मरीज में कुछ समय बाद धड़कन और सांस लौट आते हैं। यह अत्यंत दुर्लभ है, लेकिन दर्ज मामलों में यह पाया गया है।
मौत की पुष्टि का प्रॉसेस क्यों है जरूरी?
कई बार ग्रामीण या छोटे अस्पतालों में डॉक्टर उचित मशीनों की कमी के कारण केवल धड़कन या सांस को देखकर मृत्यु की पुष्टि कर देते हैं। लेकिन आधुनिक विज्ञान कहता है कि मृत्यु की पुष्टि करते समय निम्नलिखित चीजों की जांच अनिवार्य है:
• हृदय की धड़कन
• सांस की गति
• मस्तिष्क की सक्रियता (EEG से)
• प्यूपिल रिफ्लेक्स और न्यूरोलॉजिकल रिस्पॉन्स
इनमें से कोई भी तत्व अगर मौजूद हो तो व्यक्ति को मृत घोषित नहीं किया जा सकता।
क्या मौत को टाला जा सकता है?
विज्ञान मानता है कि मृत्यु का समय अगर नजदीक है, तो चिकित्सा विज्ञान के जरिए उस प्रक्रिया को कुछ समय के लिए धीमा किया जा सकता है। जैसे-
• CPR (Cardiopulmonary resuscitation)
• वेंटिलेटर सपोर्ट
• इंजेक्शन और ऑक्सीजन थैरेपी
इनसे व्यक्ति को क्लिनिकल डेथ से वापसी मिल सकती है, लेकिन अगर मस्तिष्क मर चुका हो, तो उसे जीवित करना असंभव होता है।
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