अरावली का सच: जहां पहाड़ थे, अब 50 फीट गहरे गड्ढे… NCR के कंस्ट्रक्शन का राज भिवाड़ी में खुला

जहां कभी अरावली की मजबूत पहाड़ियां थीं, वहां अब गहरे गड्ढे और नुकीली चट्टानें बची हैं। भिवाड़ी से सामने आई तस्वीरें सवाल खड़े करती हैं क्या विकास की नींव पहाड़ों को निगलकर रखी गई?

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 29 December 2025, 9:55 AM IST
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Jaipur: राजस्थान सहित पूरे देश में चल रही अरावली बचाओ मुहिम के बीच भिवाड़ी (तिजारा-खैरथल क्षेत्र) से सामने आई तस्वीरें पर्यावरण प्रेमियों और प्रशासन दोनों के लिए गंभीर चेतावनी हैं। दिल्ली-NCR से सटे कहरानी इलाके की पहाड़ियों में इतना भीषण खनन हुआ है कि अब यहां पहाड़ों की जगह टावरनुमा नुकीली चट्टानें और गहरे गड्ढे नजर आते हैं।

स्थानीय लोगों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में अंधाधुंध और अवैध खनन ने पूरे पहाड़ी क्षेत्र को छलनी कर दिया। जहां कभी हरियाली और मजबूत चट्टानें थीं, वहां अब 50-50 फीट गहरे गड्ढे दिखाई देते हैं।

Delhi-NCR के निर्माण की नींव बनी कहरानी की पहाड़ियां?

स्थानीय ग्रामीणों का दावा है कि कहरानी क्षेत्र की इसी पहाड़ी से करीब एक किलोमीटर तक पत्थर निकाला गया, जिसका इस्तेमाल नोएडा और दिल्ली में बड़े पैमाने पर नए निर्माण कार्यों में किया गया। ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों तक दिन-रात डंपर चलते रहे और पहाड़ देखते ही देखते खत्म हो गए। इन पहाड़ियों की जमीन से ऊंचाई महज 70 से 80 मीटर पाई गई, जबकि यहां पहले ही जमीन के स्तर से करीब 50 फीट नीचे तक खनन हो चुका है।

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सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा और नया विवाद

अरावली को लेकर विवाद तब और गहरा गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी दी। इस परिभाषा के अनुसार, केवल 100 मीटर या उससे ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा।

चिंताजनक तथ्य यह है कि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 12 हजार पहाड़ियों में से केवल 8 प्रतिशत ही 100 मीटर से अधिक ऊंची हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी पहाड़ियां क्या कानूनी सुरक्षा से बाहर हो जाएंगी?

दिल्ली से गुजरात तक फैली अरावली

अरावली पर्वतमाला दिल्ली से गुजरात तक लगभग 670 किलोमीटर में फैली हुई है। विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल्ली-NCR के आसपास अरावली के पहाड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया गया है।

उजड़ती पहाड़ियां (Img- Internet)

कहरानी में केवल 10 वर्षों (2002 से 2012) के भीतर पहाड़ों को इस कदर काटा गया कि अब वहां टावरनुमा नुकीली चट्टानें ही बची हैं। अकेले इस पहाड़ी पर करीब 2.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अवैध खनन हुआ।

300 से ज्यादा स्थानों पर अवैध खनन का दावा

कहरानी के आसपास चौपानकी, हसनपुर, उधनवास, तिजारा, टपूकड़ा, किशनगढ़बास, खैरथल, मुंडावर, मालाखेड़ा, जटियाना, राजगढ़, रैणी, थानागाजी, लक्ष्मणगढ़, घाट, प्रतापगढ़, बहरोड़, बानसूर, नीमराणा, शाहजहांपुर सहित करीब 300 स्थानों पर अवैध खनन होने का दावा किया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले 24 घंटे अनगिनत डंपर चलते थे और पत्थर हरियाणा से आगे तक सप्लाई किया जाता था।

50 हजार करोड़ का नुकसान, दावा इससे भी ज्यादा

वन विभाग के अनुसार, इस क्षेत्र में अवैध खनन से करीब 50 हजार करोड़ रुपये की वन और खनिज संपदा का नुकसान हुआ। 2014 में अलवर के डीएफओ ने एनजीटी के आदेश पर नुकसान का आकलन कराया था। वहीं, विशेषज्ञों का दावा है कि माफियाओं ने यहां से 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का खनिज अवैध रूप से निकालकर बेच दिया।

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अवैध खनन बंद, अब बेरोजगारी का संकट

अवैध खनन बंद होने के बाद स्थानीय इलाकों में बेरोजगारी की समस्या भी गहराने लगी है। कहरानी के पास जोड़िया गांव के चरवाहे हकमू बताते हैं कि 2002 में खनन शुरू हुआ और 10 साल में पूरा पहाड़ साफ हो गया।

ग्रामीणों का कहना है कि फैक्ट्रियों में स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिलता। अब सरकार से मांग की जा रही है कि खनन लीज या वैकल्पिक रोजगार के रास्ते खोले जाएं, ताकि गरीबों को काम मिल सके।

Location : 
  • Jaipur

Published : 
  • 29 December 2025, 9:55 AM IST