

बिहार चुनाव से पहले SIR में 60 लाख वोटरों के नाम हटाए गए और मालेगांव विस्फोट केस में सभी आरोपी बरी कर दिए गए। समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव ने इन दोनों घटनाओं की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं। क्या ये सिर्फ संयोग है या इसके पीछे कोई रणनीतिक सोच है?
मैनपुरी से समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव (सोर्स इंटरनेट)
सूत्रों के अनुसार, डिंपल यादव ने SIR को लेकर कहा कि 60 लाख वोटरों के नाम हटाए जाने का समय विशेष रूप से ध्यान खींचता है, क्योंकि यह कदम बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उठाया गया है। उन्होंने इसे लेकर चुनाव आयोग और सरकार दोनों से स्पष्टीकरण की अपेक्षा जताई है। उनका कहना था कि, "इस तरह का व्यापक संशोधन चुनाव से ठीक पहले होना लोकतंत्र की निष्पक्षता को लेकर कुछ सवाल खड़े करता है।"
उनके अनुसार, यदि इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं को हटा दिया गया है, तो यह आवश्यक है कि इसकी पारदर्शी और सार्वजनिक समीक्षा हो। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि बिहार की जनता और विपक्ष की चिंताओं को सुना जाना चाहिए। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखने के लिए जरूरी बताया।
वहीं 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में कोर्ट द्वारा सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किए जाने पर डिंपल यादव ने न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करते हुए केवल यह कहा कि "फैसले की टाइमिंग कुछ सवाल पैदा करती है।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि "जब कोर्ट कहता है कि संदेह अब भी बना हुआ है, तो कई प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं।"
डिंपल यादव ने फैसले के समय को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ चर्चा के बीच आने की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह केवल एक सामान्य टिप्पणी है, न कि आरोप। उन्होंने साफ किया कि न्यायपालिका स्वतंत्र है और उन्हें उस पर भरोसा है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों में किसी भी बड़े फैसले की समयावधि पर चर्चा होनी चाहिए।
इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि उनकी किसी भी बात का उद्देश्य धर्म या संस्थान पर प्रश्न उठाना नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जनविश्वास की जरूरत पर ज़ोर देना है।
विपक्ष इन दोनों मुद्दों—बिहार में SIR और मालेगांव केस के फैसले—को लेकर पहले से सरकार से स्पष्टीकरण मांगता रहा है। डिंपल यादव का यह बयान भी उसी सिलसिले में देखा जा रहा है।