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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि फर्जी दस्तावेजों का बार-बार इस्तेमाल करना स्वतंत्र अपराध की श्रेणी में आता है। यह फैसला उस याचिका पर आया है जिसमें सपा नेता अब्दुल्ला आज़म ने उनके खिलाफ दर्ज दूसरी प्राथमिकी (FIR) को रद्द करने की मांग की थी।
हाई कोर्ट से अब्दुल्ला आजम को नहीं दी गई राहत, खारिज हुई याचिका
Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि फर्जी दस्तावेजों का बार-बार इस्तेमाल करना स्वतंत्र अपराध की श्रेणी में आता है। यह फैसला उस याचिका पर आया है जिसमें सपा नेता अब्दुल्ला आज़म ने उनके खिलाफ दर्ज दूसरी प्राथमिकी (FIR) को रद्द करने की मांग की थी। अदालत ने यह याचिका खारिज करते हुए कहा कि एक ही फर्जी दस्तावेज़ को अलग-अलग समय पर विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रयोग करना प्रत्येक बार एक नया अपराध माना जाएगा।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, यह मामला अब्दुल्ला आज़म द्वारा एक फर्जी जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर पैन कार्ड बनवाने और फिर उसी दस्तावेज़ का इस्तेमाल 2017 के विधानसभा चुनाव में करने से जुड़ा है। इस सिलसिले में दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई थीं पहली एफआईआर पैन कार्ड बनवाने को लेकर और दूसरी चुनाव में उसके इस्तेमाल को लेकर की गई। अब्दुल्ला आज़म ने इन्हीं में से दूसरी एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति फर्जी दस्तावेज़ बनाकर उसका उपयोग बार-बार करता है, तो वह हर बार एक नया अपराध करता है। इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि दोनों प्राथमिकियां वैध हैं और किसी भी एक को रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका में देरी भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। अब्दुल्ला आज़म को 18 अक्टूबर 2023 को दोषी ठहराया गया था, जबकि उन्होंने याचिका 24 अप्रैल 2025 को दाखिल की, जो डेढ़ साल की देरी को दर्शाता है।
इस मामले में पुलिस ने अब्दुल्ला आज़म के खिलाफ जांच भी शुरू कर दी है और उन्हें दोषी ठहराया जा चुका है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो उन्हें सजा भी हो सकती है। इसके साथ ही अब्दुल्ला आज़म की ओर से फर्जी पासपोर्ट मामले में दाखिल एक अन्य याचिका को भी हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।
फैसले के बाद अब्दुल्ला आज़म की कानूनी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। फर्जी दस्तावेज़ों के निर्माण और उनके बार-बार इस्तेमाल को अदालत ने गंभीर अपराध माना है। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में मिसाल बन सकता है, जहां आरोपी एक ही दस्तावेज़ का अलग-अलग मौकों पर दुरुपयोग करता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से साफ संकेत मिलते हैं कि न्यायपालिका अब दस्तावेज़ी धोखाधड़ी के मामलों में सख्त रुख अपनाने जा रही है, और ऐसे मामलों में अपराधियों को कानून की पकड़ से बच निकलना आसान नहीं होगा।