‘वोटर अधिकार यात्रा’ का बिहार विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा कितना असर, क्या राहुल-तेजस्वी की जोड़ी बना पाएगी नया समीकरण?

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और राजद के नेतृत्व में शुरू हुई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ सिर्फ एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश है। विपक्ष अब सिर्फ सत्ता विरोध नहीं, जनाधिकार की राजनीति के जरिए मैदान में उतर रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यह 16 दिवसीय यात्रा करीब 1300 किलोमीटर का सफर तय करते हुए 20 से ज्यादा जिलों से गुजरेगी, जहां दलित-पिछड़ा और अल्पसंख्यक वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाई जाएगी। 

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 17 August 2025, 2:39 PM IST
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Patna: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और राजद के नेतृत्व में शुरू हुई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ सिर्फ एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश है। विपक्ष अब सिर्फ सत्ता विरोध नहीं, जनाधिकार की राजनीति के जरिए मैदान में उतर रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यह 16 दिवसीय यात्रा करीब 1300 किलोमीटर का सफर तय करते हुए 20 से ज्यादा जिलों से गुजरेगी, जहां दलित-पिछड़ा और अल्पसंख्यक वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाई जाएगी।

'वोटर अधिकार यात्रा' का यह है मकसद

इस यात्रा का मकसद केवल ‘वोट चोरी’ जैसे आरोपों को हवा देना नहीं है, बल्कि दलितों, अति पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को यह भरोसा दिलाना है कि उनकी राजनीतिक भागीदारी खतरे में है। राहुल गांधी यूपी में अखिलेश यादव के साथ मिलकर 2024 के लोकसभा चुनाव में यह प्रयोग कर चुके हैं, और उसका असर भी साफ दिखा था। 43 सीटों के साथ गठबंधन ने बीजेपी की ‘400 पार’ की रणनीति को विफल किया था। अब वही फॉर्मूला बिहार में तेजस्वी यादव के साथ दोहराया जा रहा है। जिससे साफ उम्मीद है कि, दोनों की यह यात्रा बिहार में सफल होगी।

हालांकि, चुनौती बड़ी है। बिहार में कांग्रेस लंबे समय से सत्ता से बाहर है और गठबंधन में उसकी भूमिका अक्सर सीमित रही है। 1992 के बाद से मुस्लिम-दलित समीकरण जिस तरह आरजेडी और जेडीयू की ओर खिसका है, वह कांग्रेस के लिए बड़ी बाधा हो सकती है। ऐसे में यह यात्रा कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का एक गंभीर प्रयास भी है। जिससे कांग्रेस पार्टी को भी बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत मिलने की उम्मीद है।

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यात्रा की शुरुआत सासाराम जैसे दलित बहुल क्षेत्र से होना, रणनीतिक रूप से संकेत देता है कि कांग्रेस अब महज ‘सहयोगी’ नहीं, बल्कि जनाधिकार के मुद्दों पर ‘नेता’ बनने की भूमिका में आना चाहती है। अगर राहुल-तेजस्वी इस यात्रा के माध्यम से जमीनी स्तर पर जनसंपर्क और जनविश्वास पैदा करने में सफल होते हैं, तो यह न सिर्फ महागठबंधन के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि बिहार की राजनीति में विपक्ष की धुरी को पुनर्परिभाषित कर सकता है।

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