DN Exclusive: क्या बिहार में प्रशांत किशोर करने वाले हैं बड़ा खेला, ऐसे बनेंगे वोट कटवा

प्रशांत किशोर अपनी नई पार्टी जन सुराज के माध्यम से बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। उनका लक्ष्य है कि वे पारंपरिक राजनीतिक दलों के वोट बैंक में सेंध लगाएं, खासकर युवाओं, शिक्षा, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत करें। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि वे मुख्य पार्टियों, जैसे बीजेपी, JD(U), और RJD के वोट काटने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 23 August 2025, 4:45 PM IST
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Patna: बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी एक नई राजनीति का चेहरा पेश कर रहे हैं। वे युवाओं के मुद्दों को प्राथमिकता देते हुए बड़े पैमाने पर वोट बैंक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के बिहार दौरे के दौरान, पीके का यह ‘बड़ा खेल’ राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है और आने वाले चुनावों में वोटों को प्रभावित कर सकता है।

पीके बिहार में मतदाताओं के वोट काटने की बना रहें है योजना

प्रशांत किशोर अपनी नई पार्टी जन सुराज के माध्यम से बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। उनका लक्ष्य है कि वे पारंपरिक राजनीतिक दलों के वोट बैंक में सेंध लगाएं, खासकर युवाओं, शिक्षा, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत करें। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि वे मुख्य पार्टियों, जैसे बीजेपी, JD(U), और RJD के वोट काटने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

बिहार चुनाव से पहले प्रशांत कुमार क्यों पहुंचे बिहार ?

प्रशांत किशोर बिहार में अपनी ‘बिहार बदलाव यात्रा’ के तहत जनसभाएं करने में बिजी है,  वे सीधे जनता से जुड़ रहे हैं और अपनी पार्टी की ताकत को दिखा रहे हैं। चुनाव से पहले पार्टी को सक्रिय करना, स्थानीय मुद्दों को उठाना और जनता में अपनी पहचान बनाना उनकी प्राथमिकता है। इसके साथ ही, वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के दौरान उनके बयानों पर प्रतिक्रिया देने के लिए भी बिहार में हैं।

कई बार पार्टियों को  दिलाई जीत

प्रशांत कुमार ने दो पार्टियों को जीत दिलाई थी और अब वे बिहार में वोट कटूवा का काम करने जा रहे हैं। प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीतिकार के रूप में पहले से ही जाना जाता है। उन्होंने कई बार पार्टियों को जीत दिलाई है, जैसे कि JD(U) और कांग्रेस के लिए। लेकिन अब वे खुद एक पार्टी के रूप में चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, इसलिए उनकी भूमिका मुख्य पार्टियों के वोट काटने की होगी। इसका मतलब है कि वे खुद चुनावी ‘वोट कटूवा’ बनेंगे, जो बिहार की राजनीति में एक नई चुनौती पेश कर सकते हैं।

हाल ही में  प्रशांत कुमार ने कहा था कि अगर उनकी पार्टी चुनाव नहीं जीतती है, तो वे अपने सभी विधायकों को छोड़ देंगे। हाल ही में प्रशांत किशोर ने ऐसा बयान दिया, जो उनकी राजनीतिक जुझारूपन और आत्मविश्वास को दर्शाता है। इसका मतलब यह हो सकता है कि वे हारने पर राजनीति से दूर हो सकते हैं या अपने विधायकों को छोड़ने का फैसला कर सकते हैं। यह बयान इस बात का भी संकेत है कि वे जीत के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं और चुनाव में हार को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।

क्या प्रशांत कुमार बीजेपी पार्टी का समर्थन कर रहे हैं?

इस पर अभी तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। वे खुद एक स्वतंत्र राजनीतिक खिलाड़ी हैं और मुख्य विपक्षी पार्टियों के वोटों को काटने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। हालांकि, राजनीतिक गठबंधन और समर्थन का असली मतलब चुनाव के बाद ही स्पष्ट होगा। फिलहाल, उनका ध्यान अपनी पार्टी को मजबूत करने और युवा वोट बैंक बनाने पर है।

प्रशांत किशोर की राजनीतिक यात्रा और रणनीतियां

प्रशांत किशोर, जिन्हें हम आमतौर पर पीके के नाम से जानते हैं, बिहार और भारतीय राजनीति के सबसे प्रभावशाली चुनावी रणनीतिकारों में से एक हैं। उन्होंने 2015 में बिहार में महागठबंधन के चुनावी अभियान का नेतृत्व किया, जिसमें नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की पार्टियों को एक साथ लाकर बीजेपी को हराने में अहम भूमिका निभाई। इस सफलता ने उन्हें पूरे देश में एक प्रमुख राजनीतिक सलाहकार के रूप में स्थापित कर दिया। उनकी रणनीति की खासियत यह है कि वे जनसंपर्क, डेटा एनालिटिक्स और समस्या-आधारित राजनीति पर जोर देते हैं। वे जाति और क्षेत्रवाद के बजाय युवाओं, बेरोजगारी, शिक्षा और पलायन जैसे विकासशील मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं, जो बिहार की राजनीति में एक नया दृष्टिकोण लाता है। पीके ने अपनी नई पार्टी ‘जन सुराज’ की स्थापना की है, जिसका मुख्य एजेंडा भ्रष्टाचार को खत्म करना, रोजगार सृजन करना और विकास को बढ़ावा देना है।

राजनीतिक समीकरण और गठबंधनों का संभावित प्रभाव

बिहार में आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक समीकरण और गठबंधनों की अहमियत बहुत बढ़ गई है। इस बार मुख्य मुकाबला NDA (जनता दल यूनाइटेड, बीजेपी और अन्य सहयोगी दलों का गठबंधन) और महागठबंधन (RJD, कांग्रेस और अन्य दलों का गठबंधन) के बीच देखने को मिल सकता है। इसके साथ ही, जन सुराज पार्टी, जिसे प्रशांत किशोर ने स्थापित किया है, चुनावी परिदृश्य में एक नए खिलाड़ी के रूप में उभर रही है। जन सुराज फिलहाल अकेले चुनाव लड़ने की योजना बना रही है, लेकिन राजनीतिक माहौल और चुनावी जरूरतों के अनुसार वे किसी गठबंधन का हिस्सा बनने पर भी विचार कर सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर की पार्टी मुख्य पार्टियों के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है, जिससे पुराने गठबंधनों के समीकरण में बदलाव आ सकता है।

राष्ट्रीय स्तर पर प्रशांत किशोर का राजनीतिक महत्व

प्रशांत किशोर (PK) का राजनीतिक प्रभाव केवल बिहार तक सीमित नहीं है, वे राष्ट्रीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण रणनीतिकार भी रहे हैं। उन्होंने 2012 में नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात में चुनाव प्रबंधन किया, जो उनके करियर की शुरुआत मानी जाती है। इसके बाद, 2014 के आम चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। इसके विपरीत, 2015 में उन्होंने बिहार में महागठबंधन को जीत दिलाई, जो उनकी रणनीतिक लचीलापन और ताकत को दर्शाता है। प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल (TMC), पंजाब (कांग्रेस और बाद में AAP), आंध्र प्रदेश (YSR कांग्रेस), और उत्तर प्रदेश जैसी राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हर राज्य में, उन्होंने स्थानीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग रणनीतियाँ अपनाई।

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  • Patna

Published : 
  • 23 August 2025, 4:45 PM IST