

महराजगंज में नाग पंचमी के दिन एक अनोखी परंपरा निभाई गई, जिसने हर किसी का ध्यान खींचा। बच्चों ने मिट्टी की गुड़िया को घेरकर सांकेतिक पिटाई की—लेकिन क्यों? यह कोई साधारण खेल नहीं था, बल्कि इसके पीछे छिपा है एक गहरा लोक विश्वास और सांस्कृतिक संदेश।
नाग पंचमी पर महराजगंज में उमड़ा श्रद्धा और उत्सव का सैलाब
महराजगंज: जनपद में मंगलवार को नाग पंचमी का पर्व पारंपरिक उल्लास, श्रद्धा और सांस्कृतिक आस्था के साथ धूमधाम से मनाया गया। जैसे ही सुबह की पहली किरण फूटी, गांवों में मंदिरों और घरों के आंगनों में नाग देवता की पूजा की तैयारियां शुरू हो गईं। महिलाएं, पुरुष और बच्चे पारंपरिक पोशाक में सजे-धजे हाथों में दूध, कुश, लावा और पुष्प लेकर मंदिरों और देव स्थलों की ओर निकल पड़े।
ग्रामीणों ने नाग देवता को दूध अर्पित करते हुए परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना की। बच्चों और युवाओं ने भी उत्साहपूर्वक पर्व में भाग लिया। इस अवसर पर जहां पूजा-पाठ का माहौल रहा, वहीं पारंपरिक रीति-रिवाज भी जीवंत नजर आए।
सबसे अनोखी परंपरा रही “गुड़िया पिटाई” की रस्म। गांव-गांव में बच्चे मिट्टी से बनी प्रतीकात्मक गुड़िया लेकर टोली बनाकर घूमे। पारंपरिक लोकगीतों की धुन पर वे गांव के किसी चौराहे या नियत स्थल पर एकत्र हुए और वहां सांकेतिक रूप से गुड़िया की पिटाई की गई।
बुजुर्गों के अनुसार यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि इससे गांव में फैली नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों का नाश होता है और नाग देवता की विशेष कृपा बनी रहती है। साथ ही यह बच्चों को धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जोड़ने का भी माध्यम है।
पूरे दिन ग्रामीणों में उत्साह बना रहा। घरों में विशेष पकवान बनाए गए। महिलाओं ने पारंपरिक गीत गाए और छोटे बच्चे पारंपरिक खेलों में मशगूल दिखे।
पर्व की शाम नदी, तालाब और नहरों के किनारे पारंपरिक मेलों का आयोजन किया गया, जहां रंग-बिरंगे झूले, खिलौने, मिठाई और खाने-पीने की दुकानों ने माहौल को और भी खुशनुमा बना दिया। बच्चों ने झूलों का भरपूर आनंद लिया और मेले की रौनक को दोगुना कर दिया।
पर्व के समापन पर पूजा-अर्चना के बाद बच्चों को प्रसाद, फल और मिठाइयाँ बांटी गईं। नाग पंचमी का यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि उसने गांव की सांस्कृतिक पहचान को भी और मजबूत किया।
यह पर्व ग्रामीण संस्कृति की जीवंत मिसाल बना, जिसमें लोक मान्यताओं और पुरानी परंपराओं के साथ-साथ बच्चों की भागीदारी ने आयोजन को और भी खास बना दिया। महराजगंज के कोने-कोने में मनाया गया यह उत्सव एक बार फिर दिखा गया कि परंपराएं आज भी जीवित हैं—और बच्चों की मुस्कान के साथ भविष्य तक पहुंचेगी।