दिल्ली समेत भारत में वायु प्रदूषण का बड़ा हिस्सा कोयला आधारित पावर प्लांट्स से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) गैस से बनता है। CREA के अध्ययन के अनुसार, एफजीडी सिस्टम की कमी और एसओ₂ उत्सर्जन मुख्य कारण हैं।

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New Delhi: दिल्ली और देशभर में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति के पीछे सबसे बड़ा कारण कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र हैं। इन संयंत्रों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) गैस वातावरण में अमोनियम सल्फेट बनने की प्रक्रिया को तेज करती है, जो पीएम2.5 प्रदूषण का प्रमुख घटक बनता है।
एफजीडी सिस्टम की कमी बढ़ा रही समस्या
भारत के 78% कोयला-आधारित ऊर्जा संयंत्र फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) सिस्टम लगाने से मुक्त हैं। यह तकनीक धुएं से SO₂ हटाती है और प्रदूषण को कम करती है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में पीएम2.5 प्रदूषण का लगभग एक तिहाई हिस्सा अमोनियम सल्फेट से बनता है।
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राज्यों के स्तर पर प्रदूषण का योगदान
राष्ट्रीय स्तर पर अमोनियम सल्फेट के उत्सर्जन में छत्तीसगढ़ का योगदान सबसे अधिक (42%) है, इसके बाद ओडिशा (41%) का स्थान है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि पीएम2.5 में एसओ₂ और अन्य गैसों का योगदान मौजूदा वायु गुणवत्ता रणनीतियों में अनदेखा किया जा रहा है।
दिल्ली में मौसमी प्रभाव
दिल्ली में मानसून और सर्दियों के दौरान पीएम2.5 में अमोनियम सल्फेट का हिस्सा क्रमशः 49% और 41% होता है, जबकि गर्मियों और मानसून में यह केवल 21% होता है। इसका मतलब यह है कि राजधानी में प्रदूषण सिर्फ स्थानीय स्त्रोतों की वजह से नहीं बल्कि कोयला आधारित पावर प्लांट्स से निकलने वाली गैसों के कारण भी गंभीर है।
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फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) प्रणाली
गीली स्क्रबिंग: धुएं को चूना पत्थर के घोल से गुजारकर SO₂ हटाना। यह जिप्सम का निर्माण करता है, जिसे निर्माण सामग्री में इस्तेमाल किया जा सकता है।
सूखी स्क्रबिंग: चूना पत्थर के पाउडर के साथ धुएं को मिलाकर SO₂ हटाना और बैगहाउस फिल्टर में इकट्ठा करना।
समुद्री जल स्क्रबिंग: समुद्री जल का उपयोग करके SO₂ को हटाना।
CREA का कहना है कि यदि सभी कोयला आधारित पावर प्लांट्स में एफजीडी सिस्टम अनिवार्य रूप से लगाया जाए, तो अमोनियम सल्फेट के निर्माण और पीएम2.5 प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है।