सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: अग्रिम जमानत पर सम्मानजनक साथ रहने की शर्त खतरनाक, पढ़ें पूरी खबर

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि दहेज उत्पीड़न जैसे संवेदनशील मामलों में अग्रिम जमानत के लिए आरोपी पति पर “पत्नी के साथ सम्मान और गरिमा के साथ रहने” जैसी शर्त थोपना न केवल जोखिम भरा है, बल्कि यह सीआरपीसी की धारा 438(2) की भावना के भी खिलाफ है। अदालत ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई इस शर्त को निरस्त करते हुए कहा कि ऐसी शर्तें आगे चलकर और अधिक कानूनी उलझनों को जन्म दे सकती हैं।

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 3 August 2025, 7:29 AM IST
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के एक गंभीर मामले में आरोपी पति को अग्रिम जमानत देने की शर्त पर झारखंड हाईकोर्ट की तीखी आलोचना की है। शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि “पत्नी के साथ सम्मान और गरिमा के साथ रहना” जैसी शर्त, अग्रिम जमानत की प्रक्रिया में शामिल नहीं होनी चाहिए। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा कि यह शर्त दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438(2) के दायरे में नहीं आती और न ही इसका कानूनी आधार है। कोर्ट ने इसे “खतरनाक और आगे की मुकदमेबाजी को जन्म देने वाली” शर्त बताया।
पीड़िता के आरोप और मामला
झारखंड के इस केस में आरोपी पति के खिलाफ कई गंभीर धाराएं लगाई गई थी, जिनमें शामिल हैं
•IPC 498A – दहेज के लिए क्रूरता
•IPC 323 – जानबूझकर चोट पहुंचाना
•IPC 313 – बिना सहमति के गर्भपात कराना
•IPC 506 – आपराधिक धमकी देना
•IPC 307 – हत्या की कोशिश
•IPC 34 – साझा आपराधिक मंशा
•दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 - दहेज लेना और उसकी मांग करना
इन आरोपों के चलते आरोपी पति ने झारखंड हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी दी थी।
हाईकोर्ट की विवादित शर्त
हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत इस शर्त पर दी थी कि वह अपनी पत्नी के साथ दोबारा “पति-पत्नी की तरह” रहेगा और उसके साथ सम्मान तथा गरिमा के साथ व्यवहार करेगा। साथ ही उसके भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी निभाएगा। इस शर्त से असहमति जताते हुए आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट की इस शर्त को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पति-पत्नी अलग हो चुके थे और कुछ समय से साथ नहीं रह रहे थे। ऐसे में यह शर्त कि आरोपी पत्नी के साथ सम्मानपूर्वक रहेगा, कानूनी दृष्टि से खतरनाक है।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि भविष्य में यह कहा जाए कि आरोपी ने शर्त का पालन नहीं किया, और इस आधार पर जमानत रद्द करने की याचिका दायर की जाए, तो इससे न्यायिक प्रक्रिया और अधिक जटिल हो सकती है।
न्यायपालिका के लिए मार्गदर्शक निर्णय
यह फैसला दहेज उत्पीड़न जैसे संवेदनशील मामलों में न्यायपालिका की भूमिका और सीमाओं को स्पष्ट करता है। अदालत ने यह दोहराया कि अग्रिम जमानत पर फैसला सिर्फ “गुण-दोष के आधार” पर होना चाहिए, न कि विवाह संबंधों को सुधारने या सामाजिक रिश्तों को मजबूरन बनाए रखने के उद्देश्य से।

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  • New Delhi

Published : 
  • 3 August 2025, 7:29 AM IST