Kishtwar Cloudburst: किश्तवाड़ की आपदा! बादल फटा तो उजड़ गए कई घरौंदे, 46 लोगों की मौत; जानिए अब तक हुए नुकसान का पूरा अपडेट

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चिशोती गांव में गुरुवार की सुबह उस वक्त मातम में बदल गई, जब आसमान से कहर बरपा। बादल फटने की इस घटना ने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया। मचैल माता यात्रा मार्ग पर स्थित इस दुर्गम इलाके में अचानक आई बाढ़ ने न केवल सैकड़ों लोगों की जान खतरे में डाल दी, बल्कि इलाके की शांति और स्थिरता को भी गहरे संकट में डाल दिया।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 14 August 2025, 9:22 PM IST
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Kishtwar: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चिशोती गांव में गुरुवार की सुबह उस वक्त मातम में बदल गई, जब आसमान से कहर बरपा। बादल फटने की इस घटना ने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया। मचैल माता यात्रा मार्ग पर स्थित इस दुर्गम इलाके में अचानक आई बाढ़ ने न केवल सैकड़ों लोगों की जान खतरे में डाल दी, बल्कि इलाके की शांति और स्थिरता को भी गहरे संकट में डाल दिया।

46 लोगों की मौत

अब तक 46 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें दो सीआईएसएफ जवान भी शामिल हैं। वहीं दर्जनों लोग घायल हुए हैं और 200 से ज्यादा श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के लापता होने की आशंका जताई जा रही है। घटनास्थल पर दर्जनों घर, दुकानें और पुल बह गए हैं, जिससे आवाजाही लगभग ठप हो चुकी है।

एंबुलेंस के जरिए अस्पताल पहुंचाया

घटना के तुरंत बाद सेना, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन की टीमों ने राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया। कई जगहों पर कीचड़ और मलबा हटाकर लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया है। घायलों को प्राथमिक चिकित्सा देने के बाद हेलीकॉप्टर और एंबुलेंस के जरिए अस्पताल पहुंचाया जा रहा है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस हादसे पर गहरी संवेदना व्यक्त की है और हरसंभव सहायता का भरोसा दिलाया है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हालात की गंभीरता को स्वीकार करते हुए लोगों से संयम बनाए रखने की अपील की है।

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बचाव अभियान के साथ-साथ प्रशासन ने कंट्रोल रूम और हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए हैं। राहत शिविर बनाए जा रहे हैं, ताकि विस्थापित लोगों को अस्थायी छत और भोजन उपलब्ध कराया जा सके।

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यह आपदा सिर्फ एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है। पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते जलवायु परिवर्तन और लापरवाह विकास कार्यों के बीच अब समय है कि हम प्रकृति के संकेतों को गंभीरता से लें।

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