

जस्टिस यशवंत वर्मा को सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा झटका दे दिया है। उनकी याचिका खारिज कर दी गई है। उन्होंने एक जांच समिति की रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा उन्हें पद से हटाने की सिफारिश को चुनौती दी थी।
यशवंत वर्मा पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Img: Internet)
New Delhi: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रह चुके जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दे दिया है। उन्होंने अपने खिलाफ जांच समिति की रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा पद से हटाने की सिफारिश को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इस याचिका को अब सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम निर्णय में कहा है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा के मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा गया पत्र संवैधानिक रूप से वैध था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी गंभीर परिस्थितियों में मुख्य न्यायाधीश की ओर से की गई कार्रवाई संविधान के दायरे में आती है।
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— डाइनामाइट न्यूज़ हिंदी (@DNHindi) August 7, 2025
पूरा मामला तब सामने आया जब मार्च 2025 में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में अचानक आग लग गई। घटना की सूचना पर दमकल विभाग और सरकारी अधिकारी मौके पर पहुंचे। आग बुझाने की प्रक्रिया के दौरान, आवास के एक कमरे से बड़ी मात्रा में जले और अधजले नोट बरामद किए गए।
इस चौंकाने वाली घटना के बाद, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तुरंत कदम उठाते हुए जस्टिस वर्मा का स्थानांतरण उनके मूल स्थान इलाहाबाद उच्च न्यायालय में करने की सिफारिश की और साथ ही एक आंतरिक जांच समिति गठित की गई। जांच के निष्कर्षों में जस्टिस वर्मा को गंभीर अनियमितताओं का दोषी ठहराया गया था।
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जले हुए नोट स्टोर रूम में पाए गए जो न्यायाधीश के आधिकारिक आवास का हिस्सा था, लेकिन उस पर न्यायाधीश या उनके परिवार की सीधी पहुंच नहीं थी।
हालांकि, मामले की गंभीरता को देखते हुए, पैनल ने सिर्फ स्थानांतरण को पर्याप्त नहीं माना और कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की। जिसके बाद यह रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई, जिसके आधार पर न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई।
न्यायमूर्ति वर्मा ने इस पूरी प्रक्रिया को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन अदालत ने न केवल याचिका खारिज की, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा भेजा गया पत्र संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं करता।