सच्ची साधना के लिए परिवार से परमात्मा तक की यात्रा आवश्यक: सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुदेव

तिरुपति में आयोजित अतिभव्य अष्टलक्ष्मी महायज्ञ के छठे दिन श्रीपार्श्वनाथ पद्मावती माता की पूजा एवं श्रृंगार आरती के साथ-साथ सौभाग्य लक्ष्मी के निमित्त सुहाग-सुहागन पूजा श्रद्धा और भक्ति भाव से संपन्न कराई गई।

Post Published By: Rohit Goyal
Updated : 25 December 2025, 7:38 PM IST
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Tirupati: सिद्धेश्वर तीर्थ स्थित ब्रह्मर्षि आश्रम, तिरुपति में आयोजित अतिभव्य अष्टलक्ष्मी महायज्ञ के छठे दिन श्रीपार्श्वनाथ पद्मावती माता की पूजा एवं श्रृंगार आरती के साथ-साथ सौभाग्य लक्ष्मी के निमित्त सुहाग-सुहागन पूजा श्रद्धा और भक्ति भाव से संपन्न कराई गई। यह सभी धार्मिक अनुष्ठान पूज्य सिद्धगुरुवर श्रीसिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुदेव की दिव्य उपस्थिति में सम्पन्न हुए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में गुरुभक्त पति-पत्नी जोड़ों ने सहभागिता की। इस पूजा के दौरान मॉरीशस के शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्री डॉ. महेंद गुंगाप्रसाद भी आश्रम पहुंचे व गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने आश्रम की आध्यात्मिक गतिविधियों की सराहना करते हुए भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों को वैश्विक स्तर पर जोड़ने वाला बताया।

इस अवसर पर पूज्य सिद्धगुरुवर श्रीसिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि ने आशीर्वचन के साथ भक्तों से कहा कि गृहस्थ जीवन ही आध्यात्मिक यात्रा की प्रथम और सबसे सशक्त सीढ़ी है। उन्होंने पति-पत्नी को लक्ष्मी-नारायण का सजीव स्वरूप बताते हुए कहा कि जीवन साथी के साथ चलने वाला साधना पथ ही पूर्णता की ओर ले जाता है। गुरुदेव ने सभी दंपतियों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि संसार के समस्त शुभ फल, सुख और समृद्धि उन्हें प्राप्त हों।

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पूज्य गुरुदेवश्रीजी ने कहा कि परिवार से परमात्मा तक की यात्रा किए बिना साधना अधूरी रहती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि राधा के बिना कृष्ण, सीता के बिना राम, लक्ष्मी के बिना नारायण और गौरी के बिना शंकर की कल्पना अधूरी है। इसी प्रकार पति और पत्नी एक-दूसरे के पूरक हैं और दोनों मिलकर ही जीवन को पूर्ण बनाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि केवल संसार त्याग देना ही मोक्ष का मार्ग नहीं है। जब तक व्यक्ति अपने पारिवारिक दायित्वों को समझकर उन्हें चेतना और प्रेम के साथ नहीं निभाता, तब तक आत्मबोध संभव नहीं होता।

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सिद्धगुरुवर ने सामाजिक विषयों पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राचीन भारतीय समाज में स्त्रियों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी। समय के साथ परिस्थितियां बदली, लेकिन आज आवश्यकता है कि हम अपने भविष्य को समझदारी, संस्कार और गुरु मार्गदर्शन के साथ स्वीकार करें। अपने उद्बोधन में सिद्धगुरुवर ने कर्म करने वाले और कर्म करवाने वाले के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि सच्चा नेतृत्व वही है जो भय नहीं, विश्वास उत्पन्न करे। उन्होंने क्षमा को सबसे बड़ा कर्म बताते हुए कहा कि जो दूसरों को क्षमा कर सकता है, वही वास्तव में महान होता है। कार्यक्रम के अंत में श्रद्धालुओं ने सौभाग्य लक्ष्मी की पूजा कर परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की।

जीवन की चेतना है

श्रीसिद्धेश्वर तीर्थ स्थित श्री ब्रह्मर्षि आश्रम तिरुपति में आयोजित अष्टलक्ष्मी महायज्ञ के अवसर पर मॉरीशस के शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्री डॉ. महेंद्र गुंगाप्रसाद ने आश्रम में श्रद्धामय सम्मान के साथ स्वागत किया गया। इस दौरान उन्होंने यहां आयोजित धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागिता की और भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं के प्रति गहरी आस्था व्यक्त की। डॉ. महेंद्र गुंगाप्रसाद ने पूज्य सिद्धगुरुवर से आशीर्वाद लेते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति, पारिवारिक मूल्यों और आध्यात्मिक चेतना का प्रभाव मॉरीशस सहित विश्व के अनेक देशों में देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से न केवल सांस्कृतिक जुड़ाव मजबूत होता है, बल्कि समाज में नैतिकता और सद्भाव का संदेश भी प्रसारित होता है। पूज्य गुरुदेवश्रीजी ने मंत्री को शुभाशीर्वाद प्रदान करते हुए मानव जीवन में शिक्षा, संस्कार और आध्यात्मिक संतुलन के महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के दौरान आश्रम के बड़ी संख्या में साधक, श्रद्धालु एवं अतिथि उपस्थित रहे।

Location : 
  • Tirupati

Published : 
  • 25 December 2025, 7:38 PM IST