New Delhi: भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि हाल के समय में वकीलों के बीच निचली अदालतों के जजों की आलोचना करना एक चलन बन गया है। आज 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिकाकर्ता और उसके वकीलों को तेलंगाना हाईकोर्ट के जज जस्टिस मौशमी भट्टाचार्य पर आरोप लगाने के लिए बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया। यह आदेश तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना याचिका पर सुनवाई की।
क्या था मामला?
यह मामला एन पेड्डी राजू द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका से जुड़ा था। याचिका में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के खिलाफ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) अधिनियम के तहत दायर आपराधिक मामले को तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा खारिज करने को लेकर आरोप लगाए गए थे। आरोप में जज पर पक्षपातपूर्ण और अनुचित व्यवहार का आरोप था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया।
CJI गवई का सख्त संदेश
CJI गवई ने स्पष्ट रूप से कहा, “हम जजों को कठघरे में खड़ा करने और किसी भी वादी को इस तरह के आरोप लगाने की इजाजत नहीं दे सकते।” उन्होंने यह भी कहा कि न्यायालय के जज संवैधानिक पदाधिकारी होते हैं और उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जजों की तरह सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए।
यह टिप्पणी उस समय की गई जब वकील और वादी अक्सर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में न्यायाधीशों की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं। सीजेआई ने यह भी कहा कि यह अब एक सामान्य चलन बन गया है कि जब किसी राजनेता से जुड़ा कोई मामला अदालत में आता है, तो यह मान लिया जाता है कि हाईकोर्ट में न्याय नहीं मिलेगा।
सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने मांगी माफी
इस पूरे मामले में सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े, जो मामले की पैरवी कर रहे थे, ने अदालत से बिना शर्त माफी मांगी और बताया कि यह बयान किस संदर्भ में दिए गए थे। हालांकि, सीजेआई गवई ने इसे एक अस्वीकार्य आचरण बताया और कहा कि ऐसे बयानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आदेश दिया कि तेलंगाना हाईकोर्ट में पहले से निपटाए गए मामले को फिर से खोला जाए और एक सप्ताह के भीतर संबंधित न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। इसके बाद याचिकाकर्ता को न्यायाधीश के सामने बिना शर्त माफी मांगनी होगी। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में न्यायाधीश खुद तय करेंगे कि माफी स्वीकार की जाए या नहीं। CJI गवई ने यह भी कहा कि दंडात्मक कार्रवाई के बजाय माफी स्वीकार करना एक बुद्धिमत्ता का काम है।
न्यायपालिका और वकीलों के संबंध में सीजेआई का संदेश
सीजेआई गवई ने इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक महत्वपूर्ण संदेश दिया कि अदालतों और न्यायाधीशों की आलोचना करते समय वकीलों को संयमित और संवेदनशील होना चाहिए। न्यायपालिका के प्रति सम्मान की भावना बनाए रखना न केवल वकीलों का, बल्कि समाज का भी दायित्व है।