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अहमदाबाद की सीबीआई अदालत ने बैंक धोखाधड़ी मामले में मेसर्स जल्पा एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड और छह व्यक्तियों को दोषी ठहराते हुए तीन साल की कैद और 25,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। मामले में 8.48 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी साबित हुई। सीबीआई की जांच में पता चला कि ऋण की राशि निर्धारित उद्देश्य के बजाय अन्य उपयोगों में खर्च की गई थी।
सीबीआई कोर्ट का बड़ा फैसला
Ahmedabad: अहमदाबाद स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने बैंक धोखाधड़ी के एक बड़े मामले में अहम फैसला सुनाते हुए एक निजी कंपनी मेसर्स जल्पा एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड और छह निजी व्यक्तियों को दोषी ठहराकर सजा सुनाई है। अदालत ने सभी दोषियों को तीन साल की कैद और प्रत्येक पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया है। इसके साथ ही आरोपी कंपनी पर भी 25,000 रुपये का दंड लगाया गया है। कुल मिलाकर 1,75,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
सीबीआई अदालत का यह फैसला 14 नवंबर 2025 को आया, जिसे बैंक धोखाधड़ी के मामलों में एक महत्वपूर्ण कार्रवाई माना जा रहा है। जिन आरोपियों को सजा सुनाई गई है उनमें शामिल हैं
सीबीआई ने यह मामला 1 अप्रैल 2017 को दर्ज किया था। आरोप था कि जल्पा एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों संजय नागजीभाई पटेल और संगीता पटेल ने बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा में 60 एयर जेट वीविंग मशीनें लगाने के नाम पर 12.90 करोड़ रुपये के सावधि ऋण, और प्लांट, मशीनरी व स्टॉक के बदले 2 करोड़ रुपये का नकद ऋण प्राप्त करने के लिए आवेदन किया था। कुल मिलाकर 14.90 करोड़ रुपये की ऋण सुविधा देने का अनुरोध किया गया था।
जांच में सीबीआई ने पाया कि आरोपियों ने बैंक अधिकारियों को गुमराह करते हुए ऋण प्राप्त किया, लेकिन मशीनरी लगाने और उद्योग स्थापित करने के बजाय उस धन का उपयोग अन्य उद्देश्यों में किया गया। अभियुक्तों ने आपस में आपराधिक षड्यंत्र रचकर बैंक ऑफ बड़ौदा को 8,48,20,000 रुपये का आर्थिक नुकसान पहुंचाया और अपने लाभ के लिए इस धन का दुरुपयोग किया।
सीबीआई ने विस्तृत जांच के बाद 30 दिसंबर 2017 को आरोप पत्र दायर किया। कोर्ट में चले ट्रायल के दौरान बैंक लेनदेन, दस्तावेजी साक्ष्य, तकनीकी रिपोर्ट और गवाहियों के आधार पर अदालत ने पाया कि आरोपियों ने गंभीर धोखाधड़ी और षड्यंत्र रचा था।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बैंक की ओर से स्वीकृत ऋण केवल औद्योगिक प्रतिष्ठान खड़ा करने के उद्देश्य से था, जिसे पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए फर्जी उपयोग किया गया। यही कारण है कि अदालत ने सभी आरोपियों को कठोर सजा सुनाई। इस मामले में एक आरोपी मेसर्स श्री काली यम, सूरत के निदेशक शैलेश भीखाभाई सतासिया की ट्रायल के दौरान मृत्यु हो गई थी, जिसके चलते उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई।
सीबीआई की इस कार्रवाई को वित्तीय अपराधों पर सख्त रुख के रूप में देखा जा रहा है। अदालत का यह फैसला संदेश देता है कि सरकारी बैंकों को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी आर्थिक साजिश को बख्शा नहीं जाएगा। जांच एजेंसी के अनुसार, फैसले के बाद बाकी प्रक्रियाएं शुरू कर दी गई हैं।