Shradh Tithi 2025: पितृपक्ष में प्याज और लहसुन का परहेज क्यों ज़रूरी है, जानें वजह और धार्मिक कारण

पितृपक्ष 2025 7 सितंबर, रविवार से शुरू हो रहा है। इस दिन वर्ष 2025 का आखिरी चंद्र ग्रहण भी लगेगा। इस पवित्र काल में सात्त्विक भोजन ग्रहण करना और प्याज-लहसुन का परहेज करना जरूरी है। यह समय पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने और साधना के लिए महत्वपूर्ण है।

Post Published By: ईशा त्यागी
Updated : 4 September 2025, 5:34 PM IST
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New Delhi: पितृपक्ष 2025 7 सितंबर, रविवार से शुरू हो रहा है। इस दिन वर्ष 2025 का आखिरी चंद्र ग्रहण भी लगेगा। हिंदू शास्त्रों में पितृपक्ष का समय अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है। इसे श्राद्ध पक्ष या महालय भी कहा जाता है। यह अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक चलती है, यानी लगभग 16 दिन।
पितृपक्ष के दौरान पितरों को तर्पण और श्राद्ध के माध्यम से प्रसन्न किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इससे परिवार को दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

सात्त्विक, राजसिक और तामसिक भोजन

हिंदू परंपरा में भोजन को तीन वर्गों में बांटा गया है:
1. सात्त्विक भोजन – शुद्ध, हल्का और मन को शांत रखने वाला।
2. राजसिक भोजन – उत्साह, इच्छा और उग्रता बढ़ाने वाला।
3. तामसिक भोजन – आलस्य, गुस्सा और नकारात्मक विचार उत्पन्न करने वाला।
पितृपक्ष जैसे धार्मिक समय में तामसिक और राजसिक भोजन का त्याग कर सात्त्विक आहार ग्रहण करना आवश्यक माना गया है।

प्याज-लहसुन का परहेज क्यों ज़रूरी है?

धर्मशास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि पितृपक्ष के दौरान प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित है।
• ये पदार्थ राजसिक और तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं।
• माना जाता है कि इनका सेवन श्राद्ध की शुद्धता को प्रभावित करता है और पितरों की तृप्ति अधूरी रह जाती है।

पितृपक्ष में ग्रहण करने योग्य भोजन

पितृपक्ष में ग्रहण करने योग्य भोजन

मन और शरीर पर प्रभाव

• ये पदार्थ ऊर्जा को नीचे की ओर खींचते हैं।
• मन में बेचैनी और वासना बढ़ाते हैं।
• ध्यान और पूजा में एकाग्रता भंग होती है।
• पितृपक्ष का उद्देश्य मन को पवित्र बनाना और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करना है, और तामसिक भोजन इस साधना में बाधा डालता है।

प्याज और लहसुन की पौराणिक कथा

प्राचीन मान्यता के अनुसार, प्याज और लहसुन की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई।
• जब देवताओं और असुरों ने अमृत निकालने के लिए मंथन किया, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत बांटा।
• एक असुर ने छलपूर्वक अमृत पीने का प्रयास किया।
• इसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से असुर का सिर अलग कर दिया।
• असुर के सिर और धड़ से राहु और केतु का जन्म हुआ, और उसके शरीर की बूंदों से प्याज और लहसुन उत्पन्न हुए।
इसीलिए इन्हें तामसिक और अशुद्ध आहार माना गया है। धार्मिक अनुष्ठान, व्रत और श्राद्ध के दौरान इनका सेवन वर्जित है।

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आयुर्वेद और संतों की दृष्टि

• आयुर्वेद के अनुसार, प्याज और लहसुन तीखे, गर्म और उत्तेजक गुण वाले हैं।
• ये इंद्रियों को उत्तेजित करते हैं और क्रोध, आलस्य और वासना बढ़ाते हैं।
• संत, साधु और योगी इनसे दूरी बनाए रखते हैं और केवल सात्त्विक भोजन ग्रहण करते हैं ताकि साधना में बाधा न आए।

पितृपक्ष में ग्रहण करने योग्य भोजन

पितृपक्ष के दौरान सात्त्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए। इसमें शामिल हैं:
• फल
• दूध और दही
• मौसमी सब्ज़ियां
• अनाज
यह आहार शरीर को हल्का, मन को शांत और साधना को सफल बनाता है।

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पितृपक्ष का उद्देश्य

• पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध और तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है।
• यह समय कृतज्ञता व्यक्त करने का भी माना जाता है।
• संतुष्ट पितृ परिवार को दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

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