

पितृ पक्ष के दौरान सफेद वस्त्र पहनना शुद्धता, पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है। श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक कार्यों में सफेद कपड़े पहनने की परंपरा का उद्देश्य वातावरण को शांतिपूर्ण बनाए रखना और पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित भाव को प्रकट करना है।
पितृ पक्ष में सफेद वस्त्र पहनने की धार्मिक मान्यता
New Delhi: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आकर अपने वंशजों का आशीर्वाद देते हैं। इसी कारण श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं ताकि पितरों की आत्मा को शांति मिल सके। इस दौरान कई नियमों का पालन किया जाता है, जिनमें सफेद वस्त्र पहनने की परंपरा प्रमुख मानी जाती है।
इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो चुकी है और 21 सितंबर को इसका समापन होगा। पंचांग के अनुसार यह भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक चलता है। इस अवधि में श्राद्ध और पिंडदान करते समय वातावरण को शुद्ध, शांत और अनुशासित बनाए रखने के लिए सफेद कपड़े पहनने की सलाह दी जाती है।
पितृ पक्ष में सफेद वस्त्र पहनने की परंपरा
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान, जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य के अनुसार सफेद रंग को शुद्धता, पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है। पितृ पक्ष एक ऐसा समय है जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनके लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इसलिए इस समय सफेद रंग पहनने की परंपरा है ताकि हमारी मानसिक स्थिति भी शुद्ध और सकारात्मक बनी रहे।
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श्राद्ध के दौरान अधिक चटक रंग या आकर्षक कपड़े पहनना उचित नहीं माना जाता क्योंकि यह समय शोक और गंभीरता का होता है। पितृ पक्ष में शांति और श्रद्धा का वातावरण बनाए रखना आवश्यक होता है। सफेद रंग धारण करने से यह संदेश भी मिलता है कि मनुष्य को सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर अपने पितरों की स्मृति और आत्मा की शांति के लिए समर्पित होना चाहिए।
धार्मिक दृष्टि से सफेद कपड़ा साधना, संयम और सादगी का प्रतीक है। यह न केवल व्यक्ति की मानसिक स्थिति को स्थिर रखता है, बल्कि समाज में शुद्धता और अनुशासन का संदेश भी देता है। इसलिए श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान के समय लोग सफेद वस्त्र पहनकर पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं और वातावरण को शांतिपूर्ण बनाए रखते हैं।
इस परंपरा को मानने से व्यक्ति का मन स्थिर रहता है और वह अपने पितरों के लिए किए जाने वाले धार्मिक कार्यों में पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ भाग लेता है। यह समय आत्मचिंतन, संयम और श्रद्धा का होता है। ऐसे में सफेद रंग पहनकर व्यक्ति अपने मन को मोह-माया से ऊपर उठाकर शुद्ध भावनाओं के साथ धार्मिक कार्य करता है।
यह लेख हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित जानकारी प्रस्तुत करता है। इसमें बताए गए नियम और प्रतीक धार्मिक विश्वासों पर आधारित हैं, जिनका वैज्ञानिक प्रमाण आवश्यक नहीं है। डाइनामाइट न्यूज़ इस लेख में दी गई जानकारी को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है। किसी भी अनुष्ठान, व्रत या धार्मिक गतिविधि से पहले अपने परिवार या विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित होगा।