Pitru Paksha 2025: श्राद्ध करते समय ये 10 नियम कभी न भूलें, अनदेखी करने पर हो सकता है भारी कष्ट

पितृ पक्ष 7 सितंबर से शुरू हो चुका है। इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से पितरों की आत्मा की शांति होती है। जानिए 10 जरूरी नियम जो अवश्य पालन करें।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 9 September 2025, 5:45 PM IST
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New Delhi: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पखवाड़ा पूरी तरह से पितरों को समर्पित होता है और इसे विशेष रूप से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसी धार्मिक क्रियाओं के लिए मनाया जाता है। इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि यानी 7 सितंबर से हुई और यह सर्व पितृ अमावस्या पर 21 सितंबर को समाप्त होगा।

पितृ पक्ष के 15 दिनों में लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। मान्यता है कि पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने वंश को आशीर्वाद देते हैं। हालांकि, श्राद्ध करने के दौरान कुछ नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है, नहीं तो पितृ दोष की संभावना बढ़ सकती है।

श्राद्ध करते समय ये 10 नियम कभी न भूलें

श्राद्ध करते समय ये 10 नियम कभी न भूलें

श्राद्ध के 10 जरूरी नियम

समय का ध्यान रखें: पितरों का श्राद्ध हमेशा अपराह्न में करना चाहिए। दोपहर के समय स्वामी पितृ देव माने जाते हैं।

दक्षिण दिशा की ओर मुख: श्राद्ध करते समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए क्योंकि इसे पितृलोक की दिशा माना जाता है।

सूर्यास्त के समय न करें: पितृ पक्ष से जुड़े कर्म सूर्यास्त के समय नहीं करने चाहिए। ऐसा करने पर श्राद्ध का फल नहीं मिलता।

सही स्थान पर करें: श्राद्ध हमेशा अपनी जमीन या पवित्र स्थान पर ही करें। यदि संभव न हो तो किसी तीर्थस्थल, पवित्र नदी के किनारे या देवालय में कर सकते हैं।

ब्राह्मणों को आमंत्रित करें: श्राद्ध के भोजन के लिए कम से कम तीन ब्राह्मणों को बुलाएं और सात्विक भोजन परोसें।

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दान और भोजन: श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं। वस्त्र और अन्न का दान अवश्य करें।

पवित्रता बनाए रखें: श्राद्ध वाले दिन घर में शांति और पवित्रता बनाए रखें, क्रोध या झगड़ा न करें।

भोजन का हिस्सा जीवों के लिए: गाय, कुत्ते, चींटी और कौवे के लिए भोजन का एक हिस्सा निकालें। इन्हें पितरों तक भोजन पहुंचाने का माध्यम माना जाता है।

कुशा और तिल का प्रयोग: श्राद्ध कर्म में कुशा और तिल का होना अनिवार्य है। इनके बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है।

सौम्य और संयमित रहें: श्राद्ध वाले दिन नाखून, बाल या दाढ़ी न कटवाएं और श्रद्धावान, संयमित भाव से कर्म करें।

पितृ पक्ष के दौरान इन नियमों का पालन करना न केवल धार्मिक दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि इससे पूर्वजों की आत्मा की शांति और वंश पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।

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डिस्क्लेमर

यह लेख हिंदू धर्म, परंपराओं और शास्त्रों पर आधारित जानकारी प्रदान करता है। इसमें वर्णित नियम धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं। डाइनामाइट न्यूज़ इस लेख में दी गई जानकारी को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है। किसी भी अनुष्ठान, श्राद्ध या तर्पण करने से पहले योग्य पंडित या आचार्य से परामर्श अवश्य लें।

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