

व्हाइट हाउस में ट्रंप-शहबाज़ की बैठक के बाद पाक सेना प्रमुख आसिम मुनीर के सलाहकारों ने अमेरिका के समक्ष पासनी में एक बंदरगाह और उससे जुड़ा रेल-नेटवर्क विकसित करने का प्रस्ताव रखा। यह पहल जाहिर तौर पर खनिज-समृद्ध पश्चिमी प्रांतों तक पहुंच और आर्थिक कनेक्टिविटी बढ़ाने पर केन्द्रित है।
ट्रंप और शहबाज के साथ आसिम मुनीर
New Delhi: पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर के सलाहकारों ने अमेरिकी अधिकारियों को पासनी में एक बंदरगाह बनाने और उसे संचालित करने का प्रस्ताव रखा है। रिपोर्टों के मुताबिक यह योजना पासनी को खनिज-समृद्ध पश्चिमी प्रांतों से जोड़ने वाले रेल नेटवर्क से जोड़ने तथा टर्मिनल स्थापित कर वहां से खनिजों का निर्यात सुनिश्चित करने पर केन्द्रित है। प्रस्ताव में यह स्पष्ट किया गया है कि बंदरगाह का उद्देश्य सैनिक ठिकानों के लिए स्थान उपलब्ध कराना नहीं बल्कि आर्थिक और लॉजिस्टिक कनेक्टिविटी विकसित करना है।
पासनी ग्वादर के निकट एक दक्षिणी बंदरगाह क्षेत्र है जिसकी भौगोलिक स्थिति अफ़ग़ानिस्तान और ईरान के समीप होने के कारण रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। बलूचिस्तान के पश्चिमी हिस्सों में खनिज संसाधनों की प्रचुरता है; प्रस्ताव का लक्ष्य इन्हें अधिक प्रभावी ढंग से वैश्विक बाजार तक पहुँचाना है। एक टर्मिनल और रेल कनेक्टिविटी बनने पर न सिर्फ खनिज निर्यात में तेजी आएगी बल्कि क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और रोजगार के अवसर भी बन सकते हैं।
ट्रंप और शहबाज के साथ आसिम मुनीर
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गाजा पीस प्लान को वैश्विक स्तर पर कई जगहों पर समर्थन मिला, वहीं पाकिस्तान में इसके प्रति प्रतिक्रियाएँ मिश्रित रहीं। प्रारम्भ में प्रधानमंत्री व आर्मी चीफ ने सहमति जताई पर जब देश के भीतर विरोध हुआ तो डिप्टी पीएम ने इसे ‘ट्रंप का प्लान’ करार दिया। इसी राजनीतिक माहौल में पाकिस्तान ने अमेरिका के समक्ष आर्थिक साझेदारी का यह नया प्रस्ताव रखा है, संभवतः द्विपक्षीय रिश्तों को आर्थिक आयाम देकर आगे बढ़ाने की रणनीति के तहत।
भारत-पाक विवाद पर ट्रंप का नया दावा, क्या आसिम मुनीर ने सचमुच मानी उनकी बात?
रिपोर्ट्स के अनुसार यह ब्लूप्रिंट कुछ अमेरिकी अधिकारियों के समक्ष पेश किया गया और इसे व्हाइट हाउस में हालिया मुलाकातों के सन्दर्भ में साझा किया गया था। प्रस्ताव में यह जोर दिया गया कि बंदरगाह का इस्तेमाल सैन्य ठिकानों के लिये नहीं होगा, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य निवेश आकर्षित कर के रेल-लॉजिस्टिक्स विकसित करना और स्थानीय खनिज संसाधनों को वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखला में जोड़ना है। फिलहाल अमेरिकी और पाक अधिकारियों की ओर से आधिकारिक टिप्पणी उपलब्ध नहीं है।
अगर प्रस्ताव पर काम होता है तो यह बलूचिस्तान के आर्थिक विकास के लिये अवसर पैदा कर सकता है। बुनियादी ढाँचा, रोजगार और खनिज निर्यात में वृद्धि संभावित है। अमेरिकी निवेश से टेक्नोलॉजी, लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट और ग्लोबल मार्केट एक्सेस मिल सकता है।
बंदरगाह जैसी परियोजनाओं में अक्सर सुरक्षा, राष्ट्रीय संप्रभुता और स्थानीय समुदायों के हित विवादों का कारण बनते हैं। बलूचिस्तान में पहले से ही राजनीतिक संवेदनशीलताएँ मौजूद हैं; किसी भी विदेशी निवेश को लेकर पारदर्शिता, स्थानीय भूमि अधिकारों का संरक्षण और पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन अनिवार्य होगा। इसके अलावा, क्षेत्रीय महाशक्तियों के दृष्टिकोण और पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक समीकरण भी इस परियोजना पर असर डालेंगे।
यह प्रस्ताव पाकिस्तान में राजनीतिक बहस छेड़ सकता है। कुछ दल इसे आर्थिक अवसर के रूप में देखेंगे, तो कुछ राष्ट्रीय हितों व सुरक्षा के दृष्टिकोण से सवाल उठाएंगे। स्थानीय समुदायों और प्रांतीय सरकारों की सहमति जरूरी होगी, वरना विरोध और विधिक चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं।