Iran-Israel conflict: ईरान-इज़राइल संघर्ष के बीच ब्रह्मोस मिसाइल पर निगाहें, जानिए क्यों है इज़राइल को भारत की ज़रूरत?

ईरान और इज़राइल के बीच जारी संघर्ष अब अपने चरम पर पहुंच चुका है। इज़राइल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत ईरान के कई सैन्य ठिकानों और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया है।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 17 June 2025, 7:31 PM IST
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नई दिल्ली: ईरान और इज़राइल के बीच जारी संघर्ष अब अपने चरम पर पहुंच चुका है। इज़राइल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत ईरान के कई सैन्य ठिकानों और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया है।

डाइनामाइट न्यूज़ के संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, यह हमला बेहद आक्रामक और व्यापक रहा, जिसमें ईरान को गंभीर नुकसान झेलना पड़ा है।

जहां इज़राइल ने ईरान के नतांज जैसे प्रमुख परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, वहीं ईरान ने भी पलटवार किया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इज़राइल की सैन्य शक्ति इस समय ईरान से अधिक प्रभावशाली नजर आ रही है। लेकिन अब एक सवाल सामने आ रहा है—क्या इज़राइल को भारत की ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल जैसी तकनीक की आवश्यकता है?

एक अभेद्य परमाणु अड्डा

ईरान का फोर्डो न्यूक्लियर एनरिचमेंट सेंटर एक ऐसी जगह है, जिसे दुनिया के सबसे सुरक्षित परमाणु ठिकानों में गिना जाता है। यह भूमिगत केंद्र लगभग 500 मीटर गहराई में स्थित है और यहाँ 60% तक समृद्ध यूरेनियम का भंडारण होता है। इज़राइल की मौजूदा हथियार प्रणाली इस गहराई तक हमला करने में सक्षम नहीं है।

क्या ब्रह्मोस है समाधान

भारत और रूस की साझेदारी में विकसित की गई *ब्रह्मोस मिसाइल* को दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइलों में से एक माना जाता है। इसकी गति मैक 3 (ध्वनि की गति से तीन गुना) है और यह 400 किमी की दूरी तक लक्ष्य भेद सकती है। यह भूमि, जल, वायु और पनडुब्बी से छोड़ी जा सकती है और 1000 किलोग्राम तक विस्फोटक ले जाने में सक्षम है।

हालांकि, मौजूदा ब्रह्मोस संस्करण फोर्डो जैसे गहरे भूमिगत बंकर को नष्ट करने में पर्याप्त नहीं है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि *ब्रह्मोस-नेक्स्ट जनरेशन (NG)* संस्करण को इस दिशा में विकसित किया जा सकता है, जिससे ऐसे ठिकानों को भी सफलतापूर्वक निशाना बनाया जा सके।

तकनीकी सहयोग या अमेरिकी समर्थन

इज़राइल के पास अमेरिका के *GBU-57A/B MOP* जैसी बंकर-भेदी बम तकनीक नहीं है, जो 60 मीटर मोटे कंक्रीट में भी घुसपैठ कर सकता है। ऐसे में इज़राइल के पास दो विकल्प हैं—या तो अमेरिका से हथियार मांगे या फिर भारत जैसे सहयोगी देशों से तकनीकी साझेदारी करे।

भारत के सामने कूटनीतिक चुनौती

भारत के लिए यह स्थिति बेहद नाजुक है। एक ओर उसकी ईरान से ऊर्जा संबंधी व्यापारिक साझेदारी है, वहीं दूसरी ओर इज़राइल से रक्षा और तकनीकी सहयोग। ऐसे में भारत को बेहद संतुलन और सतर्कता के साथ इस संकट का कूटनीतिक समाधान तलाशना होगा।

क्षेत्रीय अस्थिरता और वैश्विक असर

अगर इज़राइल ब्रह्मोस जैसी मिसाइल का उपयोग करता है या इस दिशा में कदम बढ़ाता है, तो ईरान भी अपनी रक्षा प्रणाली को उन्नत करेगा। इससे क्षेत्रीय तनाव और अस्थिरता और बढ़ेगी। वहीं चीन और रूस की प्रतिक्रिया भी निर्णायक होगी, जो ईरान के करीबी सहयोगी माने जाते हैं।

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