

भारत अपनी वायुसेना के लिए स्वदेशी फाइटर जेट इंजन विकसित करने की दिशा में बड़ा कदम उठा रहा है। फ्रांस की सफ्रान कंपनी तकनीकी सहयोग करेगी और इंजन की पूरी तकनीक भारत को हस्तांतरित की जाएगी। इससे रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और भारत का रणनीतिक प्रभाव मजबूत होगा।
स्टील्थ फाइटर जेट इंजन (Img: Google)
New Delhi: भारत अपनी रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल कर रहा है। देश स्वदेशी रूप से पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) के लिए इंजन विकसित करेगा। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) और फ्रांस की जेट इंजन कंपनी सफ्रान एस. ए. (Safran S. A.) के बीच इस परियोजना को लेकर बातचीत पिछले दो वर्षों से चल रही थी। अब इसमें बड़ी प्रगति हुई है और इंजन पूरी तरह भारत में विकसित किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस 2025 के अवसर पर स्वदेशी फाइटर जेट इंजन विकसित करने का आह्वान किया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी कई बार इस दिशा में जोर दे चुके हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सफ्रान और GTRE अगले 12 वर्षों में फाइटर जेट इंजन के 9 प्रोटोटाइप तैयार करेंगे। शुरुआत में 120 किलो न्यूटन (kN) क्षमता वाले इंजन विकसित किए जाएंगे, जिन्हें बाद में 140 kN तक अपग्रेड किया जाएगा।
भारत विकसित फाइटर जेट इंजन (Img: Google)
फ्रांस की सफ्रान कंपनी तकनीकी सहयोग प्रदान करेगी और पूरी तरह से 100% तकनीक भारत को सौंपेगी। सबसे बड़ी उपलब्धि यह होगी कि इंजन के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (IPR) भारत के पास रहेंगे। इसका अर्थ है कि भारत भविष्य में स्वयं इस तकनीक का उपयोग कर सकता है और अन्य देशों के साथ सहयोग कर सकता है।
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AMCA प्रोजेक्ट पहले अमेरिका की कंपनी GE के साथ विकसित किए जाने की योजना थी, लेकिन अब फ्रांस पूरी तरह से भारत का समर्थन कर रहा है। इस समझौते से भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करेगा। साथ ही, यह रणनीतिक रूप से भी भारत की स्थिति को मजबूत करेगा।
फ्रांस और भारत के बीच यह सहयोग न केवल तकनीकी मदद तक सीमित रहेगा, बल्कि इससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग और रणनीतिक साझेदारी को भी बल मिलेगा। सफ्रान का तकनीकी हस्तांतरण भारत की भविष्य की योजनाओं के लिए आधार बनेगा।
यह परियोजना भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे स्वदेशी रक्षा उत्पादन बढ़ेगा, विदेशी निर्भरता कम होगी और वैश्विक मंच पर भारत की सैन्य शक्ति को मजबूती मिलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देगा और आने वाले समय में रक्षा निर्यात के नए अवसर भी खोलेगा।