Tata Capital IPO पर क्यों नहीं है निवेशकों का भरोसा? जानें GMP के अलावा और क्या है वजह

टाटा कैपिटल का बहुप्रतीक्षित IPO उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है। निवेशकों की दिलचस्पी कम होने की वजह सिर्फ कम GMP नहीं, बल्कि टाटा ग्रुप के आंतरिक विवाद भी हैं। बोर्ड लेवल संघर्ष के कारण निवेशक असमंजस में हैं।

Updated : 8 October 2025, 1:35 PM IST
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New Delhi: टाटा कैपिटल का इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) इस साल के बहुप्रतीक्षित ऑफरों में से एक था। निवेशकों को इससे काफी उम्मीदें थीं, खासतौर पर क्योंकि इसका संबंध देश के सबसे बड़े और भरोसेमंद कॉरपोरेट हाउस- टाटा ग्रुप- से है। लेकिन अब जबकि यह इश्यू अंतिम दिन में प्रवेश कर चुका है, सब्सक्रिप्शन के आंकड़े उम्मीद से काफी नीचे हैं। आईपीओ के दूसरे दिन तक यह केवल 75% ही सब्सक्राइब हो पाया है। सवाल यह है कि आखिर इसकी क्या वजह है?

कई विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इस आईपीओ की कमजोर परफॉर्मेंस का कारण इसका कम ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) और कम प्राइस बैंड है। लेकिन अगर बारीकी से देखा जाए तो तस्वीर कुछ और ही बयां करती है। दरअसल, टाटा ग्रुप के अंदर चल रहे बोर्ड लेवल विवाद को भी इस धीमे रिस्पॉन्स की असली वजह माना जा रहा है।

GMP में भारी गिरावट, निवेशकों में निराशा

टाटा कैपिटल का GMP (ग्रे मार्केट प्रीमियम) एक समय 20-25 रुपये के आसपास चल रहा था, जिससे उम्मीद थी कि लिस्टिंग पर अच्छा मुनाफा मिलेगा। लेकिन इश्यू खुलने के साथ ही यह घटकर मात्र 6 रुपये तक पहुंच गया है। वर्तमान में यह सिर्फ 1.84% रिटर्न की उम्मीद दिखा रहा है, जो कि हाई रिस्क लेने वाले रिटेल इनवेस्टर्स के लिए खास आकर्षक नहीं है।

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साथ ही, प्राइस बैंड को लेकर भी निवेशकों में भ्रम की स्थिति रही। टाटा कैपिटल ने अपना इश्यू प्राइस काफी कम और कंजरवेटिव रखा, जिससे कुछ निवेशकों को यह लगा कि कंपनी खुद को अंडरवैल्यू कर रही है या फिर ग्रोथ आउटलुक को लेकर कुछ अनिश्चितता है।

असली वजह: टाटा ग्रुप में चल रहा बोर्ड विवाद

हालांकि, बाजार विश्लेषकों का मानना है कि केवल कम GMP या प्राइस बैंड ही इसकी असफलता की वजह नहीं है। टाटा ग्रुप के अंदर इस समय एक बड़ा बोर्ड विवाद चल रहा है, जिसने निवेशकों को हिला दिया है।

Tata Capital IPO

प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)

क्या है मामला?

टाटा संस, जो टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है, उसमें बोर्ड सीटों को लेकर नोएल टाटा और मेहली मिस्त्री गुटों के बीच तनाव बना हुआ है। यह दो धड़े ग्रुप की भविष्य की रणनीति और कंट्रोल को लेकर आमने-सामने हैं। चूंकि टाटा कैपिटल टाटा संस के अधीन है, इसलिए इस संघर्ष का प्रभाव इस आईपीओ पर भी साफ दिखाई दे रहा है।

निवेशकों को डर है कि अगर ग्रुप के टॉप मैनेजमेंट में अस्थिरता बनी रही, तो यह कंपनी के फंडामेंटल्स और लॉन्ग टर्म विजन को प्रभावित कर सकता है। यही कारण है कि बड़े निवेशक अभी सतर्क हैं और अंतिम समय तक वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाए हुए हैं।

ब्रांड वैल्यू बनाम मौजूदा स्थिति

टाटा नाम आज भी बाजार में विश्वास का प्रतीक है। लेकिन मौजूदा विवाद ने निवेशकों की सोच को प्रभावित किया है। यहां ब्रांड वैल्यू और मैनेजमेंट की स्थिरता के बीच टकराव की स्थिति दिख रही है। टाटा कैपिटल की बैलेंस शीट मजबूत है और कंपनी का फाइनेंशियल परफॉर्मेंस भी अच्छा रहा है।

इसके बावजूद, IPO में सब्सक्रिप्शन की रफ्तार धीमी रहना इस बात का संकेत है कि निवेशक केवल फाइनेंशियल नहीं, बल्कि मैनेजमेंट की पारदर्शिता और ग्रुप स्ट्रक्चर को भी गंभीरता से ले रहे हैं।

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रिटेल निवेशक क्या करें?

अब जब सब्सक्रिप्शन का आखिरी दिन है, तो रिटेल निवेशकों के लिए यह फैसला करना मुश्किल हो रहा है कि वे इसमें निवेश करें या नहीं। विशेषज्ञों की मानें तो जो निवेशक लॉन्ग टर्म व्यू रखते हैं, उनके लिए यह एक अच्छा मौका हो सकता है, बशर्ते वे ग्रुप के अंदरूनी मामलों को नजरअंदाज कर पाएं। वहीं शॉर्ट टर्म में रिटर्न चाहने वाले निवेशकों को थोड़ा सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि कम GMP लिस्टिंग डे पर अनिश्चितता ला सकता है।

टाटा कैपिटल का IPO सिर्फ एक और इश्यू नहीं, बल्कि यह एक ब्रांड की विश्वसनीयता और उसके आंतरिक ढांचे की स्थिरता की परीक्षा है। GMP और प्राइस बैंड केवल सतह की बातें हैं, असली वजह टाटा ग्रुप में चल रही अनबन और बोर्ड विवाद है। अब देखना यह होगा कि अंतिम दिन संस्थागत निवेशकों और हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs) का रिस्पॉन्स क्या होता है और क्या यह आईपीओ फुली सब्सक्राइब हो पाता है या नहीं।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 8 October 2025, 1:35 PM IST