टूरिस्ट ने आजमाई दक्षिण सूडान की अनोखी जनजातीय प्रथा, बताए चौंकाने वाले फायदे- Video

दक्षिण सूडान की मुंडारी जनजाति गाय के मूत्र का दैनिक उपयोग करती है स्नान, कीट निवारण और बालों के रंग के लिए। हाल ही में एक पर्यटक ने इसे आजमाया और इंस्टाग्राम पर अनुभव साझा किया, जिससे संस्कृति, स्वास्थ्य और प्राकृतिक जीवन पर चर्चा छिड़ गई।

Post Published By: ईशा त्यागी
Updated : 28 December 2025, 12:32 PM IST

Sudan: दक्षिण सूडान को दुनिया के सबसे कम देखे जाने वाले देशों में गिना जाता है, लेकिन यहां की संस्कृति और परंपराएं बेहद अनोखी और प्राचीन हैं। देश की मुंडारी जनजाति अपनी जीवनशैली और पारंपरिक प्रथाओं के लिए जानी जाती है। इनमें सबसे चौंकाने वाली प्रथा है गाय के मूत्र का दैनिक जीवन में व्यापक इस्तेमाल।

गोमूत्र: एंटीसेप्टिक से लेकर बालों के रंग तक

मुंडारी लोग गाय के मूत्र का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए करते हैं। यह न केवल एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और कीटनाशक के रूप में काम करता है, बल्कि इसे सनस्क्रीन और बालों का प्राकृतिक रंग बदलने वाला एजेंट भी माना जाता है। स्थानीय जनजाति के लिए यह सिर्फ धार्मिक या सांस्कृतिक परंपरा नहीं है, बल्कि गर्म और कीटों से भरे वातावरण में सुरक्षित और आरामदायक रहने का तरीका भी है।

हाल ही में इंस्टाग्राम यूजर @gizastruthtravel ने दक्षिण सूडान का दौरा किया और इस प्रथा को आजमाया। वीडियो में गीज़ा ने बताया कि उन्होंने अपने हाथ और चेहरे को गाय के मूत्र से धोया। उन्होंने दावा किया कि इससे मलेरिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों से बचाव हुआ और उनका अनुभव सुरक्षित रहा।

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वीडियो अनुभव और सोशल मीडिया प्रतिक्रिया

गीज़ा ने अपने वीडियो में बताया, “दक्षिण सूडान में गाय का कोई भी हिस्सा बर्बाद नहीं होता। उनके मूत्र का उपयोग प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और कीटनाशक के रूप में किया जाता है। मुझे मलेरिया नहीं हुआ और मेरे बाल अमोनिया की वजह से नारंगी रंग के हो गए।” इंस्टाग्राम कैप्शन में उन्होंने लिखा, “इन लोगों का जीवन उनके मवेशियों के इर्द-गिर्द घूमता है, और उनके खास नारंगी बाल भी इसी का नतीजा हैं। यह प्रथा सुनने में अजीब लग सकती है, लेकिन यह कठोर परिस्थितियों में उनके लिए जीवनदायिनी है।”

यूजर्स की मिली-जुली प्रतिक्रिया

वीडियो पर यूजर्स की प्रतिक्रियाएं काफी विविध हैं। एक ने लिखा, “जब उसने इसे अपने चेहरे पर लगाया, तो वह थोड़ा भ्रमित और घबराया हुआ लग रहा था।” दूसरे ने तुलना कि, “अगर यह भारत होता, तो लोग हिंदुओं को लगातार कोस रहे होते।” एक अन्य यूजर ने लिखा, “जानवरों पर हमें अपना जीवन या शरीर देने का कोई दायित्व नहीं है। यह हमें शाकाहारी बनने का अनुस्मारक देता है।”

कई लोगों ने इस प्रथा की सराहना करते हुए कहा, “अगर भविष्य में कोई प्राकृतिक आपदा हो और आधुनिक तकनीक न हो, तो ऐसी जनजातियां ही जीवित रहेंगी और समाज का पुनर्निर्माण करेंगी।” कुछ ने अपने अनुभव साझा किया, “मेरी मोरक्कन दादी ने बताया था कि इसका इस्तेमाल त्वचा की समस्याओं के लिए भी किया जाता था।” वहीं एक यूजर ने थोड़ा सच्चाईपूर्ण सवाल उठाया, “कभी-कभी मुझे लगता है, शिक्षा महत्वपूर्ण क्यों है?”

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सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व

मुंडारी जनजाति की यह प्रथा केवल अनोखी नहीं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। वे अपने मवेशियों के हर हिस्से का इस्तेमाल करते हैं, जिससे अपव्यय कम होता है और जीवन का एक प्राकृतिक चक्र बनता है। गर्म जलवायु और कीटों की अधिकता में यह प्रथा उनके लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा का साधन बन चुकी है।

Location : 
  • Sudan

Published : 
  • 28 December 2025, 12:32 PM IST