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ट्रंप हमेशा किसी न किसी विवाद को लेकर चर्चा में रहते हैं, इस बार ट्रंप हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से भिड़े हैं। इसका पूरा विश्लेषण देखें देश के जाने-माने पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के स्पेशल शो “The MTA Speaks” पर
नई दिल्ली: य़ूं तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हमेशा अपने ऊंट-पटांग आदेशों को लेकर चर्चा में रहते हैं, कभी मीडिया तो कभी साथी देशों तो कभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों तो कभी एप्पल के साथ उनके विवाद चर्चा के केन्द्र में रहते हैं लेकिन इस बार विवाद खास है। इस बार ट्रंप हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से भिड़े हैं।
देश के जाने-माने पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने स्पेशल शो "The MTA Speaks" में इसका विश्लेषण करते हुए बताया कि, डोनाल्ड ट्रंप और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच का मूल विवाद क्या है ? उन्होंने बताया कि, इस विवाद के पीछे एक वैचारिक संघर्ष है — जहां हार्वर्ड विश्वविद्यालय प्रगतिशील, वैश्विक और समावेशी मूल्यों को बढ़ावा देता है, वहीं ट्रंप का जोर राष्ट्रवाद, पारंपरिक मूल्यों और पहचान-रहित मेरिट आधारित प्रणाली पर है। यह विवाद सिर्फ एक विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे अमेरिकी शैक्षणिक तंत्र और राजनीति के बीच चल रहे व्यापक वैचारिक युद्ध का हिस्सा बन चुका है।
डोनाल्ड ट्रंप हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के लंबे समय से आलोचक रहे हैं, ट्रंप का आरोप है कि हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थान वामपंथी एजेंडा को बढ़ावा देते हैं, जो उनकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति और पारंपरिक मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने हार्वर्ड पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने, रूढ़िवादी विचारों को हाशिये पर रखने और चीन जैसे देशों से मिली आर्थिक सहायता के संदिग्ध उपयोग को लेकर भी सवाल उठाए हैं।
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप[/caption]
इसके अलावा ट्रंप प्रशासन के दौरान हार्वर्ड ने आव्रजन नीतियों और पर्यावरण कानूनों के विरोध में खुलकर आवाज उठाई थी, जिससे यह टकराव और गहरा हो गया। हार्वर्ड ने अब तक 161 नोबेल विजेता दिये हैं। ट्रंप की कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ हार्वर्ड मुखर रहा है। इस कारण ट्रंप हमेशा इसे घेरने का मुद्दा खोजते रहते हैं
इस विवाद के बाद अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आदेश जारी किया कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अब विदेशी छात्रों का दाखिला नहीं होगा। इस आदेश के जारी होने के 24 घंटे के अंदर अमेरिका की एक अदालत ने ट्रंप के आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। इस पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलन गार्बर ने कहा कि विदेशी छात्र ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की पहचान हैं। हम किसी भी कीमत पर ट्रंप के आगे झुकने वाले नहीं हैं।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी दुनिया के उन चुनिंदा संस्थानों में से एक है, जिसे विदेशी छात्र शिक्षा के लिए सबसे अधिक पसंद करते हैं। इसकी स्थापना वर्ष 1636 में हुई थी, जो अमेरिका का सबसे पुराना उच्च शिक्षण संस्थान है। यह विश्वविद्यालय मैसाचुसेट्स राज्य के कैम्ब्रिज शहर में स्थित है, जो शैक्षणिक और बौद्धिक वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। हार्वर्ड एक निजी शोध विश्वविद्यालय है और प्रतिष्ठित आइवी लीग (Ivy League) का सदस्य है, जो शिक्षा की गुणवत्ता और शैक्षणिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। विश्वविद्यालय में लगभग 21,000 छात्र अध्ययनरत हैं, जिनमें 7,000 से अधिक विदेशी छात्र हैं। यह विविधता इसे एक वैश्विक अकादमिक मंच बनाती है, जहाँ अलग-अलग देशों और संस्कृतियों से आए विद्यार्थी ज्ञान और अनुभव साझा करते हैं।
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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी[/caption]
यहां 2,400 से अधिक स्थायी फैकल्टी सदस्य हैं और 10,000 से अधिक शिक्षाविद् हार्वर्ड से संबद्ध अस्पतालों में नियुक्त हैं, जिससे छात्रों को उच्चतम स्तर की शिक्षा और मार्गदर्शन प्राप्त होता है। हार्वर्ड की वित्तीय स्थिति इसे विशिष्ट बनाती है। $41.9 अरब डॉलर की धनसंपदा के साथ यह दुनिया का सबसे समृद्ध शैक्षणिक संस्थान है। इससे विश्वविद्यालय को अत्याधुनिक सुविधाएं, व्यापक छात्रवृत्तियां और विश्वस्तरीय शोध संसाधन उपलब्ध कराने में मदद मिलती है।
हार्वर्ड का अकादमिक रिकॉर्ड भी प्रभावशाली है। इसके पूर्व छात्रों में नोबेल पुरस्कार विजेता, अमेरिकी राष्ट्रपति, विश्वविख्यात वैज्ञानिक, व्यवसायी और सामाजिक नेता शामिल हैं, जो इसकी प्रतिष्ठा को और बढ़ाते हैं। यहां छात्रों को भविष्य के नेतृत्व के लिए तैयार किया जाता है। इन सभी विशेषताओं के कारण हार्वर्ड यूनिवर्सिटी केवल एक विश्वविद्यालय नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय अकादमिक अनुभव बन जाती है, जिसे हर महत्वाकांक्षी छात्र पाना चाहता है।
अब एक नजर यहां के पूर्व छात्रों पर जो यहां पर शिक्षा हासिल कर दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुके हैं। अमेरिका के कई राष्ट्रपति जैसे जॉन एफ. केनेडी, थिओडोर रूज़वेल्ट, फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट और बराक ओबामा ने यहीं शिक्षा पाई, वहीं पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून भी इसके छात्र रहे। माइक्रोसाफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स, फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग जैसे दिग्गजों ने यहीं से अपनी शुरुआत की।
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प्रभावशाली है हार्वर्ड का अकादमिक रिकॉर्ड[/caption]
बिजनेस जगत में माइकल ब्लूमबर्ग और गोल्डमैन सैक्स के पूर्व CEO लॉयड ब्लैंकफेन जैसे प्रभावशाली हस्तियाँ भी हार्वर्ड से जुड़ी रही हैं। मिशेल ओबामा, हेलेन केलर और डॉ. किज़ी कोर्बेट जैसे सामाजिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों के प्रभावशाली नाम भी हार्वर्ड के पूर्व छात्र हैं, जो इसे वैश्विक नेतृत्व की एक प्रमुख पाठशाला बनाते हैं। भारत की कई दिग्गज हस्तियां अमर्त्य सेन, राहुल गांधी, रतन टाटा, अरविंद केजरीवाल, गुर्चरण दास, मनीष साबरवाल, राघुराम राजन, निखिल श्रीवास्तव, प्रियंका चोपड़ा जोनस किसी न किसी रुप में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे हैं।
अब आपको बताते हैं कौन-कौन देश इस मामले में हार्वर्ड के साथ हैं। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से विदेशी छात्रों के नामांकन पर प्रतिबंध लगाने के बाद, कई देशों ने इस कदम की आलोचना की है और हार्वर्ड के समर्थन में खड़े हुए हैं। चीन ने इस निर्णय को अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए हानिकारक बताते हुए अपने छात्रों और शोधकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने का वादा किया है ।
इसके अलावा, हांगकांग विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों ने प्रभावित छात्रों को स्थानांतरित करने के प्रस्ताव दिए हैं । भारत ने भी हार्वर्ड में पढ़ाई कर रहे अपने छात्रों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है । अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक समुदाय ने इस कदम को शैक्षणिक स्वतंत्रता और वैश्विक सहयोग के लिए खतरा बताया है, और कई विश्वविद्यालयों ने हार्वर्ड के साथ एकजुटता व्यक्त की है ।
भारत में इस मामले की चर्चा है। आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने इस मामले में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साथ एकजुटता दिखायी है। राघव ने सोशल मीडिया पर लिखा “राष्ट्रपति ट्रंप का हालिया कदम हार्वर्ड और उससे आगे के अंतरराष्ट्रीय छात्रों के सपनों और भविष्य के लिए खतरा है। एक गर्वित हार्वर्ड समुदाय के सदस्य के रूप में, मैं समावेशन और शैक्षणिक स्वतंत्रता का समर्थन दिखाने के लिए अपने रंग पहनता हूँ। मैं हार्वर्ड और सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के साथ खड़ा हूँ जिनके सपने और भविष्य खतरे में हैं। हमें शैक्षणिक स्वतंत्रता और वैश्विक सहयोग की रक्षा करनी होगी।"
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के मुताबिक़, हर साल 500 से 800 भारतीय हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हैं. वर्तमान सत्र में 140 से ज़्यादा देशों के 10 हज़ार 158 अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं. इनमें भारतीय स्टूडेंट्स की संख्या 788 है। ज्यादातर स्टूडेंट्स F-1 या J-1 वीजा पर हैं। F-1 वीजा अमेरिकी शैक्षणिक संस्थान में पढ़ने वाले छात्रों के लिए है, जबकि जे वीजा स्कॉलर्स, रिसर्चर्स सहित एक्सचेंज विजिटर्स के लिए है।
ट्रंप चाहते हैं कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी यहूदी-विरोधी गतिविधियों को रोके, प्रो-हमास भावना को रोके और विविधता, समानता एवं समावेशन (DEI) नीतियों के माध्यम से नस्लीय भेदभाव को बढ़ने से रोके। चीनी और ईरानी अनुसंधान फंडिंग के माध्यम से विदेशी प्रभाव और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पैदा होने वाले खतरे को रोका जाये। यहूदी विरोधी प्रदर्शनकारियों को उनके देश भेजा जाये। यूनिर्वर्सिटी बाहरी एजेंसी से आडिट कराये।
यह मामला जल्द सुलझना चाहिये क्योंकि हार्वर्ड में इस वक्त करीब सात हजार गैर अमेरिकी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। अदालती फैसले के बाद इसमें तात्कालिक राहत तो जरुर मिली है लेकिन इसमें आग सुनवाई जारी रहेगी और देखना होगा कि अमेरिका का शीर्ष अदालत का अंतिम फैसला क्या आता है।