

उत्तराखंड के लोगों के लिए यह खबर बेहद महत्वपूर्ण है। राज्य सरकार ने अब गांव से लेकर शहर तक हर जगह पेयजल उपभोक्ताओं से बिल वसूलने का निर्णय लिया है। अभी तक शहरी क्षेत्रों में नगर निगम और नगर पालिकाएं पानी का बिल वसूलती थीं।
Uttrakhand News: उत्तराखंड के लोगों के लिए यह खबर बेहद महत्वपूर्ण है। राज्य सरकार ने अब गांव से लेकर शहर तक हर जगह पेयजल उपभोक्ताओं से बिल वसूलने का निर्णय लिया है। अभी तक शहरी क्षेत्रों में नगर निगम और नगर पालिकाएं पानी का बिल वसूलती थीं, लेकिन अब ग्रामीण इलाकों में भी यह जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंपी जाएगी। इस व्यवस्था से राज्य में पेयजल व्यवस्था को मजबूत करने और पानी के दुरुपयोग को रोकने की उम्मीद की जा रही है।
डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के अनुसार फिलहाल उत्तराखंड में साढ़े तीन लाख शहरी और करीब डेढ़ लाख ग्रामीण पेयजल उपभोक्ताओं से ही बिल वसूला जा रहा था। लेकिन अब जल जीवन मिशन के तहत गांव-गांव में बढ़े कनेक्शनों को भी बिल के दायरे में लाया जाएगा। आंकड़ों के अनुसार, जल जीवन मिशन से पहले ग्रामीण क्षेत्रों में सिर्फ 1,30,325 पेयजल कनेक्शन थे, जो अब बढ़कर करीब 14,14,567 तक पहुंच चुके हैं। लक्ष्य 14,48,834 कनेक्शन का है। ऐसे में अब कुल 17 लाख से अधिक उपभोक्ताओं को हर महीने पानी के उपयोग के लिए शुल्क देना होगा।
नियम के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 70 लीटर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित होने पर बिल वसूली की प्रक्रिया शुरू होगी। कई गांवों में तो यह प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी गई है। जल संस्थान और जल निगम दोनों स्तरों से इस वसूली का काम होगा। जिन गांवों में पेयजल व्यवस्था का संचालन ग्राम सभाएं करती हैं, वहां स्थानीय ग्राम पंचायतें ही बिल वसूलेंगी और राशि संबंधित खातों में जमा करेंगी।
पेयजल एजेंसियों के बीच काम के बंटवारे को लेकर भी मंथन चल रहा है। फिलहाल जल संस्थान चाह रहा है कि ग्रामीण इलाकों का जिम्मा जल निगम को सौंपा जाए, ताकि वह शहरी क्षेत्र पर फोकस कर सके। लेकिन जल निगम ग्रामीण इलाकों से बिल वसूली को घाटे का सौदा मान रहा है और इस पर आपत्ति जता रहा है। दरअसल, गांवों में आबादी छितरी हुई होने और बिल राशि कम होने से खर्च ज्यादा आता है।
सरकार का मानना है कि नई व्यवस्था से राज्य की पेयजल योजनाओं के संचालन में पारदर्शिता आएगी और पानी के अपव्यय पर रोक लगेगी। साथ ही लोगों में भी पानी की कीमत समझने और बचत करने की आदत विकसित होगी। अब देखना होगा कि गांवों में इस नई व्यवस्था को लेकर लोगों का क्या रुख रहता है।