रुद्रप्रयाग: पंच केदारों में शिव के इन रूपों की होती है आराधना, जानिए इसका महातम

उत्तराखंड में स्थित पंच केदारो में भगवान शिव को साक्षात पांच रूपों में पूजा जाता है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

Post Published By: Jay Chauhan
Updated : 23 May 2025, 7:09 PM IST
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रुद्रप्रयाग: पंच केदार उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित पाँच प्रतिष्ठित शिव मंदिरों का एक समूह है, जिनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इन मंदिरों में केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर शामिल हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों ने युद्ध के बाद भगवान शिव को प्रसन्न करने और शांति प्राप्त करने के लिए इन मंदिरों का निर्माण करवाया था।

मान्यता है कि ये सभी मंदिर देवभूमि के हिमालय में बने हैं। और इन मंदिरां का निर्माण पाण्डवों ने किया। बाद में इन मंदिरों क जीर्णोद्धार आदि गुरू शंकराचार्य द्धारा किया गया। ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था, जिसमें भीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु भगवान शिव को एक लोटा जल से शिव को अर्पित करता है और द्धितीय केदार मद्महेश्वर मंदिर में दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

जानकारी के अनुसार पंच केदारो में भगवान शिव को साक्षात पांच रूपों में पूजा जाता है। प्रत्येक मंदिर भगवान शिव के एक विशिष्ट रूप का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिए, केदारनाथ कूबड़ का प्रतीक है, जबकि मध्यमहेश्वर नाभि का प्रतिनिधित्व करता है।

पंच केदार में प्रथम केदारनाथ जहां हिमालय में शिव के पृष्ठ यानि पीठ के भाग के दर्शन होते हैं। द्वितिय केदार यानि मद्धमहेश्वर है जहां श्रद्धालु शिव के ज्योतिलिंग नाभी के दर्शन करते हैं। द्वितीय केदार, भगवान मद्महेश्वर, उत्तराखंड के पंच केदारों में से एक हैं, जो भगवान शिव के मध्य भाग को समर्पित हैं। यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और पांडवों द्वारा निर्मित माना जाता है। मंदिर में भगवान शिव के नाभि रूप की पूजा की जाती है।

तृतीय केदार यानि विश्व की सबसे उंची चोटी पर विराजमान शिव के ज्येर्तिलिंग के रूप में पूजे जाने वाले भगवान तुंगनाथ जी के दर्शन वाहु /भुजाओं के रूप में पूजे और दर्शन ज्येर्तिलिंग के रूप में किये जाते हैं।

चतुर्थ केदार जो रूद्रनाथ के रूप में विश्वविख्यात है भगवान शिव के पांच अंग के रूप में मुख मण्डल के रूप में ज्येर्तिलिंग के रूप में दर्शन और पूजा की जाती है।

पंच केदार में पांचवां केदार कल्पेश्वर के नाम से विख्यात हैं जो भगवान शिव के सिर पर जटाओं के रूप में ज्येर्तिलिंग के रूप में पूजे जाते है। कहते हैं जब स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर गंगा आ रही थी जो प्रबल धारा के रूप में बह रही थी और पृथ्वी पर आने से पहले भगवान शिव ने गंगा को अपने जटाओं में समाहित कर दिया था जो गंगा धरती पर आती है उससे धीरे धीरे पृथ्वी लोग पर शिव ने कल्पजटाओं में धारण कर समाहित कर दिया था जिससे ज्येर्तिलिंग में कल्पेश्वर के नाम से पूजा जाता है।

भगवान शिव के पांचों स्थान हिमालय में हैं जो मनमोहक हैं और जो भी इन पांचों धामों के दर्शन करता है वह इन धामों को देखकर अभिभूत हो जाता है।

ऐसा माना जाता है कि स्वर्ग का मार्ग-पांच केदारों के दर्शन मात्र से शिवलोक को प्राप्त किया जा सकता है।

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  • Rudraprayag: These forms of Shiva are worshiped in Panch Kedar, know its significance

Published : 
  • 23 May 2025, 7:09 PM IST