Uttarakhand News: नैनीताल की झील में छिपा है एक रहस्य, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कहानी

नैनीताल की नैनी झील न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि धार्मिक आस्था और इतिहास से भी गहरी जुड़ी हुई है। यहां देवी सती के नेत्र गिरने की कथा प्रचलित है, जो इसे शक्तिपीठों में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाती है।

Post Published By: ईशा त्यागी
Updated : 28 December 2025, 4:21 PM IST

Nainital: नैनी झील का इतिहास आस्था और प्रकृति के उस संगम से शुरू होता है, जिसने इस पूरे शहर को एक अनोखी पहचान दी। कहा जाता है कि जहां आज यह शांत झील नजर आती है, वहीं देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसी घटना ने इस स्थान को ‘नैनी’ नाम दिया और समय के साथ यही जगह ‘नैनीताल’ के रूप में प्रसिद्ध हो गई। स्कंद पुराण में भी इस झील का उल्लेख मिलता है, जहां इसे त्रिऋषि सरोवर कहा गया है। मान्यता है कि अत्रि, पुलस्त्य और पुलह ऋषि दूरस्थ मानसरोवर से जल लाकर इस सरोवर को पवित्र बनाए थे।

खोज और बदलाव की कहानी

आधुनिक काल की बात करें तो 1839 में अंग्रेज व्यापारी पी. बैरन पहली बार इस झील तक पहुंचे थे। शिकार के दौरान, उनकी नजर इस अद्भुत दृश्य पर पड़ी और वे इसकी सुंदरता से इतने प्रभावित हुए कि धीरे-धीरे यहां एक बसाहट विकसित हो गई। यही बसाहट आगे चलकर पहाड़ों के बीच बसे आधुनिक नैनीताल की नींव बनी। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह झील पहाड़ियों के भीतर बने एक प्राचीन टेक्टोनिक धंसाव की वजह से बनी है और हजारों वर्षों से अस्तित्व में है। इसका आकार अर्धचंद्राकार है, जिसका उत्तरी हिस्सा मल्लीताल और दक्षिणी हिस्सा तल्लीताल कहलाता है।

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नैना देवी मंदिर की पावन परंपरा

नैनी झील के उत्तरी किनारे स्थित नैना देवी मंदिर इस क्षेत्र की आत्मा माना जाता है। यही वह स्थान है जहां देवी सती के नेत्र गिरे थे और यह जगह शक्तिपीठों में गिनी जाती है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार, 1842 में मोतीराम शाह ने यहां देवी की प्रतिमा स्थापित की थी। बाद में 1880 में आए भूस्खलन ने मंदिर को पूरी तरह ढहा दिया। सिर्फ तीन साल बाद मोतीराम शाह के बेटे अमरनाथ शाह ने इसे पुनर्निर्मित कराया। मंदिर की वास्तुकला में नेपाली और तिब्बती शैली के साथ पगोडा आर्किटेक्चर की झलक भी मिलती है, जो इसे और अधिक आकर्षक बनाती है।

नैना देवी मंदिर (Img- Internet)

सती की कथा और शहर की आस्था

पौराणिक कहानी कहती है कि प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अपमान सहन न कर पाने पर सती ने स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया था। उनकी मृत्यु के बाद भगवान शिव शोक में उनके शरीर को लेकर पूरी सृष्टि में भटकते रहे। शिव के इस दुःख को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को अनेक भागों में विभाजित किया। जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ बन गए। नैनीताल का यह इलाका वह स्थान माना जाता है जहां उनके नेत्र गिरे थे और तभी से यहाँ देवी के नेत्र रूप की पूजा होती है।

माँ नयना की अनुकंपा

इस मंदिर से जुड़ी आस्था सिर्फ पौराणिक कथा तक सीमित नहीं है, बल्कि लोगों के अनुभवों में भी बसी है। मंदिर में माँ नयना नयन रूपी भगवती के रूप में विराजमान हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि नयना मां अपने भक्तों के दुख-दर्द को आँखों की तरह महसूस करती हैं। यहाँ माथा टेकने वाला व्यक्ति बिना कुछ बोले ही अपनी व्यथा माँ को सुना देता है। कहा जाता है कि जो मन में चाहत हो, माँ उसे पूरी कर देती हैं।

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चमत्कारी हवन कुंड की मान्यता

मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन हवन कुंड अपनी रहस्यमयी पहचान के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि यह कुंड सदियों से पूजित हो रहा है और इसमें डाली गई सामग्री न तो बाहर निकलती है और न ही इसका आकार बदलता है। कुछ परंपराओं में यह भी माना गया है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहाँ विशाल यज्ञ किया था, जिसके बाद उन्हें चंडी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उसी प्रेरणा से ‘चंडी दी वार’ की रचना की गई।

Location : 
  • Nainital

Published : 
  • 28 December 2025, 4:21 PM IST