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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित मुण्डकटिया गणेश मंदिर भारत का एकमात्र मंदिर है जहां बिना सिर वाले गणेश की पूजा होती है। स्कंद पुराण के अनुसार केदारनाथ यात्रा से पहले यहां पूजा अनिवार्य मानी गई है, फिर भी यह स्थल प्रचार के अभाव में उपेक्षित है।
मुण्डकटिया गणेश के दर्शन
Rudraprayag: उत्तराखंड की केदार घाटी न केवल प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां छिपे पौराणिक और आध्यात्मिक स्थल भी इसे विशेष बनाते हैं। इन्हीं में से एक है रुद्रप्रयाग जनपद के गौरीकुंड के पास स्थित मुण्डकटिया गणेश मंदिर, जो अपनी अनोखी मान्यता के कारण पूरे भारत में अलग पहचान रखता है।
यह भारत का संभवतः एकमात्र मंदिर है जहां भगवान गणेश की बिना सिर वाली प्रतिमा की पूजा की जाती है। इसके बावजूद यह मंदिर आज भी व्यापक प्रचार-प्रसार और सरकारी संरक्षण से वंचित है।
स्थानीय मान्यताओं और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, यही वह स्थान है जहां भगवान शिव ने क्रोधवश भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया था। कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने अपने निजी कक्ष की रक्षा के लिए गणेश को द्वारपाल नियुक्त किया था। जब भगवान शिव वहां पहुंचे और गणेश ने उन्हें प्रवेश से रोका, तो शिव ने क्रोधित होकर उनका सिर काट दिया।
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बाद में पार्वती के विलाप और देवताओं के आग्रह पर शिव ने हाथी का सिर लगाकर गणेश को पुनर्जीवित किया। लेकिन जहां मूल सिर कटा था, वह स्थान आज मुण्डकटिया गणेश मंदिर के रूप में पूजित है।
मुण्डकटिया शब्द दो भागों से मिलकर बना है। मुण्ड यानी सिर और कटिया यानी कटा हुआ। यह नाम स्वयं इस स्थल की प्राचीन कथा और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। यहां विराजमान गणेश की प्रतिमा बिना सिर के है, जो भक्तों को त्याग, आज्ञा और भक्ति का संदेश देती है।
स्कंद पुराण के अनुसार, केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकलने से पहले मुण्डकटिया गणेश की पूजा करना अनिवार्य बताया गया है। मान्यता है कि बिना यहां दर्शन किए केदारनाथ यात्रा अधूरी मानी जाती है।
स्थानीय तीर्थ पुरोहितों के अनुसार, पुराने समय में अधिकांश श्रद्धालु गौरीकुंड से आगे बढ़ने से पहले इस मंदिर में शीश नवाते थे, लेकिन समय के साथ यह परंपरा कमजोर पड़ती गई।
आस्था का अद्भुत केंद्र
मुण्डकटिया गणेश मंदिर मंदाकिनी नदी के तट पर, गौरीकुंड मार्ग में केदार घाटी की सुरम्य वादियों के बीच स्थित है। चारों ओर हिमालयी पहाड़, घने वन और कलकल बहती नदी इस स्थान को विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
यह मंदिर भगवान शिव की आध्यात्मिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है, लेकिन आज भी यह बड़े तीर्थ मानचित्र में अपेक्षित स्थान नहीं पा सका है।
स्थानीय लोगों और विद्वानों का मानना है कि यदि इस मंदिर का समुचित प्रचार-प्रसार किया जाए, तो यह भी उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है। न तो यहां पर्याप्त सूचना पट हैं, न ही यात्रियों को इसके महत्व की जानकारी मिल पाती है।
ग्रामीणों का कहना है कि सरकार और पर्यटन विभाग की अनदेखी के कारण यह दुर्लभ धार्मिक स्थल आज भी गुमनामी में है, जबकि इसकी पौराणिक महत्ता अत्यंत विशिष्ट है।
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मुण्डकटिया गणेश मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय पौराणिक परंपरा का जीवंत प्रमाण है। यह स्थान श्रद्धालुओं को यह स्मरण कराता है कि देव कथाएं केवल कहानियां नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और भक्ति के प्रतीक हैं।
यदि समय रहते इस मंदिर के संरक्षण, प्रचार और आधारभूत सुविधाओं पर ध्यान दिया गया, तो यह न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन के लिहाज से भी उत्तराखंड की पहचान को और सशक्त बना सकता है।