Uttarakhand: भाजपा में टिकट के लिए बढ़ी हलचल, क्या स्थानीय नेता होगा गद्दी का दावेदार?

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनजर भाजपा में टिकट को लेकर स्थानीय और बाहरी नेताओं के बीच खींचतान तेज हो गई है। गुटबाजी बढ़ रही है, जबकि हाईकमान के लिए संतुलित निर्णय लेना चुनौती बन गया है।

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 30 September 2025, 2:24 PM IST
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Lalkuan: विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही भाजपा में टिकट की दावेदारी को लेकरNews हलचल तेज हो गई है। खासकर स्थानीय बनाम बाहरी नेताओं के बीच खींचतान ने राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। कार्यकर्ताओं और समर्थकों में चर्चाओं का बाज़ार गर्म है और हर दिन नए समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आ रहे हैं।

स्थानीय दावेदार मैदान में

स्थानीय स्तर पर लंबे समय से सक्रिय नवीन दुमका, वर्तमान विधायक डॉ. मोहन सिंह बिष्ट और संगठन में तमाम महत्वपूर्ण दायित्व निभा चुके राज्य आंदोलनकारी उमेश शर्मा मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं और इन सभी के समर्थक जोर-शोर से यह तर्क रखते हैं कि क्षेत्र की जनता और कार्यकर्ताओं से गहरे जुड़ाव के कारण वे ही जीत की गारंटी बन सकते हैं। स्थानीय चेहरों के पक्ष में यह भी दलील दी जा रही है कि जनता बदलाव चाहती हो सकती है, लेकिन बाहरी चेहरे को स्वीकार करना आसान नहीं होगा।

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कोश्यारी परिवार की सक्रियता

वहीं, दूसरी ओर भाजपा के दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के भतीजे दीपेंद्र कोश्यारी हाल के दिनों में क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाकर सबको चौंका रहे हैं। गांव-गांव तक सक्रियता, कार्यकर्ताओं से मुलाकातें और संगठनात्मक गतिविधियों में भागीदारी ने साफ कर दिया है कि वे भी टिकट की दौड़ में हैं। लेकिन, उनकी यह सक्रियता स्थानीय खेमे को खटक रही है। चर्चाओं में यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या पार्टी बाहरी चेहरे पर दांव लगाएगी?

सोर्स- इंटरनेट

गुटबाजी के संकेत साफ

इन हालातों ने पार्टी के भीतर गुटबाजी को और गहरा कर दिया है। एक धड़ा स्थानीय नेताओं को आगे बढ़ाने के पक्ष में है, जबकि दूसरा कोश्यारी परिवार की पृष्ठभूमि और प्रभाव का हवाला देकर दीपेंद्र को विकल्प मान रहा है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि गुटबाजी यदि यहीं तक सीमित रही तो ठीक है, लेकिन अगर यह चुनावी मौसम में खुलकर सामने आई तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

बहुत कठिन है डगर पनघट की

क्षेत्रीय राजनीति के जानकार मानते हैं कि यहां बाहरी नेता के लिए बहुत कठिन है डगर पनघट की वाली कहावत सही साबित हो सकती है। जनता की नब्ज पकड़ने और कार्यकर्ताओं के साथ तालमेल बनाने में बाहरी उम्मीदवार को खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। लोग 2022 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी की दशा का हवाला दे रहे है। वहीं, कुछ कोश्यारी समर्थक इस चुनौती को आसान बनाने का दावा कर रहे हैं।

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रणनीतिकारों की परीक्षा

अब देखना यह होगा कि भाजपा हाईकमान इस खींचतान से कैसे निपटता है। चुनाव नजदीक आते ही संगठन को एकजुट रखना और टिकट वितरण में संतुलन साधना भाजपा के रणनीतिकारों के लिए सबसे बड़ी परीक्षा होगी।

Location : 
  • Lalkuan

Published : 
  • 30 September 2025, 2:24 PM IST