

गोरखपुर की एक छात्रा ने यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट के परिणाम आने के बाद खुदकुशी कर ली। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
छात्रा ने ट्रेन के आगे कूदकर दी जान
गोरखपुर: यूपी में गोरखपुर के चौरीचौरा क्षेत्र में शुक्रवार की शाम एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया। जहां महज 18 साल की छात्रा प्रियांशी गुप्ता ने यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट के परिणाम आने के बाद खुदकुशी कर ली।
डाइनामाइट न्यूज़ के संवाददाता के अनुसार, प्रियांशी ने बनारस इंटरसिटी ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी।
जानकारी के अनुसार, प्रियांशी महादेव प्रसाद इंटर कॉलेज की छात्रा थी और पढ़ाई में अव्वल थी। फिजिक्स और केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल्स में उसने शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन लिखित परीक्षा में मिले मात्र 56.6% अंक उसके आत्मविश्वास को तोड़ गए। अपने भविष्य की चिंता और खुद से निराशा ने उसे इतना अंदर से झकझोर दिया कि उसने जीने की चाह ही छोड़ दी।
वहीं प्रियांशी का परिवार पहले से ही एक गहरे सदमे से गुजर चुका है। दो साल पहले उसके बड़े भाई प्रिंस ने भी आत्महत्या कर ली थी। अब एक और सदस्य के असमय चले जाने से प्रियांशी का परिवार पूरी तरह टूट चुका है। घर में मां, दादी और 15 वर्षीय छोटे भाई आयुष के लिए यह दुख असहनीय है। वहीं दिल्ली में मजदूरी कर रहे पिता शंभू गुप्ता को जब बेटी की मौत की सूचना मिली तो वह तुरंत घर लौटने के लिए रवाना हो गए।
बीते दिन, यूपी बोर्ड का रिजल्ट जारी होने के बाद, कन्नौज जिले से भी एक ही घटना सामने आई, जहां एक 17 वर्षीय छात्रा ने परीक्षा में 60 प्रतिशत अंक आने से निराश होकर फंदा लगाकर खुदकुशी कर लें। बताया जा रहा है कि मृतका के पिता खेतीबाड़ी करके परिवार का भरण पोषण करते हैं। छात्रा की मौत के बाद, घर में कोहराम मच गया।
दरअसल, यह घटना केवल एक परिवार की निजी पीड़ा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज के उस ढांचे पर भी करारा सवाल है जो बच्चों को सिर्फ अंकों के आधार पर आंकता है, लेकिन उनके मन की स्थिति को समझने की फुर्सत नहीं रखता। प्रियांशी की मौत यह सोचने पर मजबूर करती है कि कहीं हम अपने बच्चों को नंबरों की दौड़ में अकेला तो नहीं छोड़ रहे। क्या हमारी शिक्षा प्रणाली, परिवार और समाज उन्हें वो सहारा दे पा रहे हैं जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा ज़रूरत है?
प्रियांशी की मौत एक सवाल छोड़ गई है? क्या हम अपने बच्चों को नंबरों की रेस में अकेला छोड़ रहे हैं, या उन्हें जीने की उम्मीद दे रहे हैं? अब समय आ गया है कि हम परीक्षा के अंकों से परे सोचें। आइए हम मिलकर एक ऐसा माहौल बनाएं जहां कोई और प्रियांशी खुद को अकेला महसूस न करे, और हर बच्चा अपने सपनों को खुलकर जी सके।