

हापुड़ में जिला खनन अधिकारी द्वारा खनन ठेकेदार की गाड़ी का प्रयोग करने का मामला सामने आया है। जिसमें गाड़ी पर उत्तर प्रदेश सरकार का नाम लिखा हुआ था और नंबर प्लेट भी मानक के अनुसार नहीं थी। यह मामला अब लखनऊ तक चर्चा का विषय बन चुका है और जिलाधिकारी ने इसकी जांच शुरू कर दी है। अधिकारी और कार मालिक दोनों की जांच के दायरे में हैं।
यही कार खनन अफसर के पास थी
Hapur: उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में जिला खनन अधिकारी द्वारा एक खनन कंपनी की लग्जरी गाड़ी का उपयोग करने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। अधिकारियों की निष्ठा पर सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि इस गाड़ी पर उत्तर प्रदेश सरकार का नाम लिखा हुआ था और इसे खनन कंपनी के ठेकेदार द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा था। यह मामला अब तक जिले से लेकर लखनऊ तक चर्चाओं में है और अब इस पर कार्रवाई की मांग भी उठने लगी है।
नंबर प्लेट पर गड़बड़ी ने बढ़ाया विवाद
यह मामला तब सामने आया जब एक लग्जरी गाड़ी, जो खनन ठेकेदार खालसा अर्थमूवर्स की थी, का चालान हुआ। गाड़ी की नंबर प्लेट मानक के अनुसार नहीं थी, जिससे यह यातायात पुलिस के कैमरे में पकड़ी गई। इसके बाद इस गाड़ी पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया और गाड़ी पर लिखा उत्तर प्रदेश सरकार का नाम भी संदिग्ध माना गया। इस घटना के बाद यह मामला चर्चा का विषय बन गया और अब जिला खनन अधिकारी की निष्ठा पर सवाल उठ रहे हैं।
जिलाधिकारी ने शुरू की जांच
इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी ने अपने स्तर पर जांच शुरू कर दी है। वहीं, इस प्रकरण को लेकर शासन स्तर पर भी जांच किए जाने की संभावना जताई जा रही है। प्रशांत कुमार, जो कि हापुड़ के जिला खनन अधिकारी हैं, इस गाड़ी का नियमित रूप से उपयोग कर रहे थे, और इस गाड़ी के साथ जुड़ी कई अनियमितताएँ सामने आ रही हैं।
खनन कंपनी की गाड़ी पर सरकार का नाम, निष्ठा पर सवाल
यह गाड़ी खालसा अर्थमूवर्स नामक खनन कंपनी की थी और उस पर उत्तर प्रदेश सरकार का नाम लिखा हुआ था। खनन अधिकारी द्वारा इस गाड़ी का इस्तेमाल करने से न केवल उनकी निष्ठा पर सवाल उठते हैं, बल्कि यह भी शंका होती है कि क्या यह गाड़ी किसी विशेष लाभ के लिए खनन अधिकारी को दी गई थी। इस पर कार मालिक और खनन अधिकारी दोनों की जांच की जा रही है।
नंबर प्लेट और टैक्स पर सवाल
कार की नंबर प्लेट पर गड़बड़ी के कारण जब यातायात पुलिस ने चालान किया, तो यह सामने आया कि गाड़ी की हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट भी नहीं लगी हुई थी। इस मामले में किराए पर कार लेने का आरोप भी लगाया गया है। जिला खनन अधिकारी कार्यालय का कहना है कि यह कार किराए पर ली गई थी और इसका नियमित किराया भुगतान किया जा रहा था। हालांकि, खनन कंपनी के व्यावसायिक उपयोग के लिए पंजीकरण न होने की स्थिति में परिवहन विभाग इस पर कमर्शियल टैक्स भी लगा सकता है, जो गाड़ी के मालिक को पांच साल का टैक्स दे सकता है।
जांच के दायरे में अधिकारी और कार मालिक
अब यह मामला न केवल खनन अधिकारी के बल्कि खनन कंपनी के भी जांच के दायरे में आ गया है। यदि खनन अधिकारी ने कार को उपहार के रूप में लिया था, तो उनकी निष्ठा पर गंभीर सवाल उठते हैं। वहीं, यदि यह कार किराए पर ली गई थी, तो खनन कंपनी की संपत्ति पर जांच होनी चाहिए, क्योंकि गाड़ी का पंजीकरण कामर्शियल श्रेणी में नहीं हुआ था। ऐसी स्थिति में खनन कंपनी को परिवहन विभाग से पंजीकरण और टैक्स से संबंधित कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
आगे की कार्रवाई
इस पूरे प्रकरण के तूल पकड़ने के बाद, जांच के दौरान अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकती है। इसके साथ ही खनन कंपनी को भी इस मामले में कानूनी दायरे में लाया जा सकता है। फिलहाल, जिले के खान विभाग के अधिकारियों की निष्ठा और कार्यशैली को लेकर पूरे प्रकरण की जांच जारी है।