उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और कानपुर में ऑरामाइन डाई से रंगा सैकड़ों क्विंटल भुना चना जब्त किया गया है। यह प्रतिबंधित केमिकल कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। खाद्य सुरक्षा विभाग अब इस अंतरराज्यीय मिलावट नेटवर्क की जांच में जुटा है।

भुना चना या धीमा जहर?
Kanpur/Gorakhpur: सेहतमंद स्नैक के तौर पर खाया जाने वाला भुना चना अब गंभीर बीमारियों की वजह बन सकता है। हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और कानपुर में भुने चने की बड़ी खेप पकड़े जाने के बाद यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि मुनाफाखोर चने को आकर्षक दिखाने के लिए प्रतिबंधित और जहरीले रसायन ‘ऑरामाइन’ का इस्तेमाल कर रहे हैं। खाद्य सुरक्षा विभाग की कार्रवाई में सैकड़ों क्विंटल ऑरामाइन युक्त भुना चना जब्त किया गया है, जिससे आम लोगों की सेहत पर बड़ा खतरा मंडराने लगा है।
बीते सोमवार को गोरखपुर के लालडिग्गी क्षेत्र के पास स्थित एक गोदाम पर खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम ने छापा मारकर 730 बोरी भुना चना जब्त किया। जांच में इन चनों में प्रतिबंधित केमिकल ऑरामाइन की पुष्टि हुई। विभाग ने तत्काल गोदाम को सील कर दिया। जब्त किए गए मिलावटी चने की अनुमानित कीमत करीब 18 लाख रुपये बताई जा रही है।
खाद्य सुरक्षा विभाग को इस गोदाम में मिलावटी चना रखे होने की गुप्त सूचना मिली थी। मौके पर पहुंची टीम ने ‘फूड सेफ्टी ऑन व्हील्स’ मोबाइल लैब के जरिए चने की प्रारंभिक जांच की, जिसमें ऑरामाइन केमिकल पाए जाने की पुष्टि हुई। यदि यह खेप बाजार में पहुंच जाती, तो बड़ी संख्या में लोग इसके सेवन से बीमार पड़ सकते थे।
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जांच में सामने आया है कि गोरखपुर में पकड़ा गया यह चना मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से मंगवाया गया था। आशंका जताई जा रही है कि इसके पीछे एक अंतरराज्यीय मिलावट नेटवर्क सक्रिय है, जो अलग-अलग राज्यों से चने की सप्लाई कर उन्हें रसायन से रंगकर बाजार में खपाता है। हालांकि शुरुआती जांच में यह भी सामने आया कि चना जीएसटी बिल के साथ खरीदा गया था, जिससे यह मामला और पेचीदा हो गया है। खाद्य सुरक्षा विभाग अब यह पता लगाने में जुटा है कि किस स्तर पर ऑरामाइन डाई मिलाई गई और इस पूरे नेटवर्क में कौन-कौन लोग शामिल हैं।
गोरखपुर के बाद कानपुर में भी ऑरामाइन युक्त भुने चने की बड़ी खेप पकड़ी गई। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की टीम ने विशेष प्रवर्तन अभियान के तहत बिनगवां स्थित बाबा बैजनाथ ट्रेडर्स पर छापा मारा। जांच के दौरान मौके पर मौजूद 1240 बोरा भुना चना ऑरामाइन डाई से रंगा हुआ पाया गया। इस जब्त स्टॉक का कुल वजन लगभग 372 क्विंटल और अनुमानित कीमत करीब 33.48 लाख रुपये बताई जा रही है। एफएसडीए की टीम ने पूरे स्टॉक को सीज कर नमूने प्रयोगशाला जांच के लिए भेज दिए हैं। यह कार्रवाई आयुक्त खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन उत्तर प्रदेश और जिलाधिकारी के निर्देश पर की गई थी।
ऑरामाइन एक सिंथेटिक केमिकल डाई है, जिसका उपयोग आमतौर पर कपड़े, कागज और अन्य औद्योगिक उत्पादों को रंगने और चमक देने के लिए किया जाता है। खाद्य पदार्थों में इसका इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित है। इसके बावजूद कुछ व्यापारी ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए दालों और अनाज, खासकर भुने चने में इसका प्रयोग करते हैं। ऑरामाइन से रंगे चने ज्यादा चमकीले, पीले और आकर्षक दिखते हैं, जिससे ग्राहक उन्हें अच्छी गुणवत्ता का समझकर खरीद लेते हैं। यही लालच आम लोगों की सेहत से खिलवाड़ का कारण बन रहा है।
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जानकारों के मुताबिक, इस तरह के अवैध कारोबार में एक संगठित नेटवर्क काम करता है। कुछ व्यापारी और बिचौलिये चने को पहले अलग-अलग राज्यों से मंगवाते हैं, फिर गोदामों में ऑरामाइन डाई से रंगाई कर उसे मंडियों और खुदरा दुकानों तक पहुंचाते हैं। कई बार छोटे व्यापारी या किसान भी ज्यादा मुनाफे के लालच में अनजाने में इस नेटवर्क का हिस्सा बन जाते हैं, क्योंकि उन्हें इस केमिकल के गंभीर स्वास्थ्य खतरों की जानकारी नहीं होती। फिलहाल खाद्य सुरक्षा विभाग इस पूरे नेटवर्क की जड़ तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर के फिजिशियन डॉ. राजकिशोर सिंह के अनुसार, ऑरामाइन एक अत्यंत जहरीला रसायन है। इसके सेवन से कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है, खासकर लिवर और मूत्राशय के कैंसर का खतरा अधिक रहता है। लगातार ऑरामाइन युक्त खाद्य पदार्थ खाने से लिवर, किडनी और पेट पर गंभीर असर पड़ता है। यह आंखों में जलन, त्वचा रोग और सांस से जुड़ी समस्याएं भी पैदा कर सकता है। बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह केमिकल और भी ज्यादा घातक साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, अत्यधिक चमकीला और अस्वाभाविक पीले रंग का भुना चना संदिग्ध हो सकता है। यदि चने को हाथ पर रगड़ने से रंग छूटे या पानी में डालने पर पीला रंग निकलने लगे, तो उसे खाने से बचना चाहिए।