

महराजगंज की ऐतिहासिक मिट्टी में जन्मी देशभक्ति की अमिट कहानी, प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना आज भुला दिए जा रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर शिक्षा और जनसेवा तक में उनका योगदान अविस्मरणीय रहा, लेकिन उनके नाम पर सम्मान के आयोजन न के बराबर हैं।
प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना (Img:Google)
Mahrajganj: पूर्वांचल के गांधी के नाम से प्रसिद्ध महान क्रांतिकारी प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना की धरती के रूप में महराजगंज जनपद को जाना जाता है, लेकिन समय के साथ अब लोग उन्हें भूलते जा रहे हैं। 13 जुलाई को उनका जन्मदिन गुजरा, लेकिन जनपद में कहीं कोई खास आयोजन नहीं देखने को मिला, न ही शैक्षणिक संस्थानों या सार्वजनिक स्थलों पर उनकी तस्वीरें देखने को मिलती हैं।
यूपी के बरेली में हुआ था जन्म
बता दें कि प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। बाद में वे गोरखपुर जनपद में प्रोफेसर रहे। 1931 में वे महराजगंज आए और आजादी के आंदोलन में पूरी सक्रियता के साथ जुड़ गए। वे स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि जनप्रतिनिधि भी रहे और संसद के सदस्य के रूप में देश के लिए कार्य किया।
महराजगंज को दिया पहला डिग्री कॉलेज
महराजगंज जनपद को पहचान दिलाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने जिले को पहला इंटर कॉलेज, डिग्री कॉलेज और पीजी कॉलेज जैसे प्रमुख शिक्षण संस्थान दिए। किसानों, मजदूरों और गरीबों की आवाज़ बुलंद की और उन्हें सामाजिक-आर्थिक न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया।
बावजूद इसके, आज उनकी यादें धुंधली होती जा रही हैं। शहर के मुख्य चौराहे पर उनकी एकमात्र प्रतिमा जरूर लगी है, जिसे सक्सेना चौराहा कहा जाता है, लेकिन उससे आगे कोई ठोस प्रयास नहीं दिखते। न तो विद्यालयों में उनकी तस्वीरें हैं और न ही विद्यार्थियों को उनके योगदान से अवगत कराया जा रहा है।
महान क्रांतिकारी पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री
इस पर जब कुछ स्थानीय लोगों से बात की गई तो उन्होंने चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि आज की पीढ़ी इतिहास से कटती जा रही है। शिव नगर निवासी शिक्षक सुरेंद्र पटेल ने प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी, लेकिन उसे भी जनसाधारण का वह समर्थन नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थी।
स्थानीय नागरिकों और शिक्षकों की मांग है कि प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना की तस्वीरें जनपद के सभी शिक्षण संस्थानों में लगाई जाएं और उनके योगदान पर पाठ्यक्रम में विशेष चर्चा की जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी अपने इतिहास और महानायकों से जुड़ सके। साथ ही, उनकी स्मृति में हर वर्ष कोई आयोजन किया जाए, जिससे जनपद उनकी विरासत को जिंदा रख सके।