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Girls Education: बाराबंकी में बेटियों के नुक्कड़ नाटक से बदली समाज की सोच, जानिये इस पहल के बारे में

बाराबंकी जिले के मसौली थाना क्षेत्र के ग्राम शमसाबाद में बेटियों की शिक्षा और जागरूकता को लेकर एक सराहनीय पहल की गई।
Post Published By: Subhash Raturi
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Girls Education: बाराबंकी में बेटियों के नुक्कड़ नाटक से बदली समाज की सोच, जानिये इस पहल के बारे में

Barabanki News: बाराबंकी जिले के मसौली थाना क्षेत्र के ग्राम शमसाबाद में बेटियों की शिक्षा और जागरूकता को लेकर एक सराहनीय पहल की गई। यहां मिलान संस्था के अंतर्गत चल रहे गर्ल आइकन प्रोग्राम के तहत बालिकाओं ने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से शिक्षा के महत्व को दर्शाते हुए समाज को जागरूक करने का प्रयास किया। इस कार्यक्रम की अगुवाई गर्ल आइकन अस्मिता और उनकी साथी लीडर्स ने की, जिन्होंने समाज में फैली लैंगिक असमानता और बेटियों की शिक्षा में आने वाली बाधाओं को मंच के माध्यम से प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, नाटक के जरिए यह बताया गया कि बेटियां भी बेटों की तरह सपने देख सकती हैं और उन्हें पूरा करने की काबिलियत रखती हैं, बशर्ते उन्हें भी समान अवसर और शिक्षा मिले। गर्ल आइकन अस्मिता ने नाटक के दौरान अपनी भावनाएं कुछ पंक्तियों में जाहिर कीं  “उलझनें बढ़ती गई, मैं सहती गई, वक्त ने मैदान में उतारा, मैं खेलती रही। लोग कहने लगे तू पागल हो जाएगी। लोगों की बातों को मन में दबाए, अपने सपने बुनती रही। लेकिन मैं कैसे बताऊं इन लोगों को, जब वक्त बदलेगा तो मैं ही नहीं, मेरा हौसला और विश्वास भी बदलेगा।” इस मार्मिक प्रस्तुति ने दर्शकों के दिलों को छू लिया और समाज में व्याप्त सोच को बदलने का संदेश दिया।

कार्यक्रम का आयोजन सोशल एक्शन प्रोजेक्ट के तहत किया गया, जिसमें मिलान संस्था के ब्लॉक कॉर्डिनेटर विजय पाल, सत्यनाम, ग्राम प्रधान सुनील कुमार, पंचायत सहायक मनीषा, प्रोजेक्ट असिस्टेंट दिव्या जायसवाल सहित गांव की अनेक महिलाएं, आशा बहुएं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और ग्रामीणजन उपस्थित रहे। साथी लीडर रानी, अंजुमन, पायल, दीपांशी, अमित, अनामिका, नेहा, शिवानी, लाजो, शालिनी, अमृता, आराध्या, तिरसा, लक्ष्मी, मोहिनी, प्रियांशी, महक, सुषमा, कुंती और नंदिनी ने इस नाटक में अपनी भागीदारी निभाकर समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया।

नाटक के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि बेटों को तो पढ़ाया जाता है लेकिन कई बार बेटियों की शिक्षा को माध्यमिक माना जाता है। छोटी उम्र में उनकी शादी कर देना या शिक्षा से वंचित कर देना एक सामान्य प्रवृत्ति बन चुकी है। लेकिन जब बेटियां पढ़-लिख जाती हैं, तो न केवल वे आत्मनिर्भर बनती हैं, बल्कि अपने पूरे परिवार को आगे बढ़ाने में सहायक होती हैं। एक शिक्षित बेटी परिवार, समाज और देश — तीनों के विकास में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

इस जागरूकता कार्यक्रम ने न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं को सोचने पर मजबूर किया बल्कि बेटियों को सम्मान और समानता दिलाने की दिशा में एक मजबूत संदेश भी दिया। नुक्कड़ नाटक के अंत में तालियों की गूंज ने यह साफ कर दिया कि समाज इस परिवर्तन को स्वीकार करने को तैयार है — बस ज़रूरत है निरंतर प्रयासों और बेटियों को बराबरी देने की।

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