

देवरिया के मदनपुर नगर पंचायत की दलित बस्ती, विकास से कोसों दूर है। शुद्ध पेयजल, शौचालय, आवास और पेंशन जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। सड़कों पर गंदगी, टूटे रास्ते और खुले ट्रांसफार्मर खतरा बने हुए हैं। स्वास्थ्य केंद्र पर कर्मचारी नहीं मिलते। नाराज़ निवासी मुख्यमंत्री दरबार जाने की चेतावनी दे रहे हैं।
लोगों ने पानी को लेकर बताई समस्या
Deoria: देवरिया जनपद का मदनपुर नगर पंचायत, जहां 50,000 से अधिक की आबादी निवास करती है, वो विकास के मामले में सदियों पीछे छूट गया है। खासकर वार्ड नंबर 1, अंबेडकर नगर की दलित बस्ती, जहां मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, यहां के निवासियों की व्यथा सुनकर दिल दहल जाता है। हर घर जल योजना के तहत शुद्ध पेयजल का वादा तो किया गया, मगर हकीकत में लोग पानी के लिए लंबी दूरी तय करने को मजबूर हैं। बस्ती की बहू-बेटियों को शौचालय की कमी के कारण रोज़ाना अपमान और असुविधा का सामना करना पड़ता है।
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— डाइनामाइट न्यूज़ हिंदी (@DNHindi) July 21, 2025
आवास योजना के नाम पर कागजी खेल
नगरवासियों का कहना है कि आवास योजना के नाम पर केवल कागज़ी खेल चल रहा है। अधिकांश लोग झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं, जहां बरसात का पानी टपकता है और रहने की बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। बस्ती की वृद्ध महिलाएं और बुजुर्ग पेंशन के लिए नगर पंचायत कार्यालय के चक्कर काट-काटकर थक चुके हैं। 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग भी पेंशन से वंचित हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और दयनीय हो गई है।
स्वास्थ्य सुविधाएं भी बदतर
स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल भी बदतर है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कर्मचारियों की अनुपस्थिति आम बात है, जिसके चलते बीमार लोगों को समय पर इलाज नहीं मिलता। सड़कों पर बिजली के खंभों से लटकते तार और खुले ट्रांसफार्मर मौत को दावत दे रहे हैं। मुख्य मार्ग पर हजारों लोग रोज़ाना आवागमन करते हैं, मगर नालियों की कमी के कारण बरसात और घर का गंदा पानी सड़कों पर जमा हो रहा है। यह स्थिति भयंकर बीमारियों को जन्म दे रही है।
अधिकांश वार्डों की टूटी सड़कें
नगर पंचायत के अधिकांश वार्डों की सड़कें टूटी-फूटी हैं और गंदगी का अंबार लगा हुआ है। छिड़काव और सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण मच्छरों और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। बस्तीवासियों का गुस्सा इस बात पर है कि सभासद और नगर पंचायत अध्यक्ष उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे।
नाराज़ निवासियों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी समस्याओं का जल्द समाधान नहीं हुआ, तो वे मुख्यमंत्री दरबार तक अपनी फरियाद लेकर जाएंगे। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर कब तक ये दलित बस्तियां विकास की मुख्यधारा से वंचित रहेंगी? क्या सरकार और स्थानीय प्रशासन इनकी पुकार सुनेगा या यह अनसुनी ही रहेगी?