

उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद के मिल्कीपुर गांव में प्रस्तावित बंदरगाह और फ्रेट विलेज परियोजना को लेकर प्रशासन और ग्रामीण आमने-सामने दिखे।
ग्रामीणों और प्रशासन के बीच वार्ता विफल
Chandauli: मिल्कीपुर गांव में प्रस्तावित बंदरगाह और फ्रेट विलेज परियोजना को लेकर प्रशासन और ग्रामीणों के बीच टकराव गहराता जा रहा है। शुक्रवार को उपजिलाधिकारी (एसडीएम) ने बंदरगाह परियोजना की टीम और तहसीलदार के साथ गांव का दौरा किया, लेकिन वार्ता विफल रही। गांव वालों ने एक स्वर में जमीन देने से इनकार करते हुए कहा, 'जान दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे।' इस बयान ने पूरे मामले को और संवेदनशील बना दिया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, प्रशासनिक अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की और बताया कि यह भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। एसडीएम ने यह भी कहा कि जमीन का अधिग्रहण सीधे तौर पर किया जाएगा और इसके लिए सभी प्रक्रियाएं कानूनी ढंग से पूरी की जाएंगी। बावजूद इसके, ग्रामीणों ने जमीन देने से साफ इनकार कर दिया।
ग्रामीणों का कहना है कि यह परियोजना उनके जीवन, आजीविका और पर्यावरण के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि उनके पास खेती के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं है और अगर जमीन चली गई तो उनका परिवार भूखों मर जाएगा। गांव के लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए और नारेबाजी करते हुए प्रशासन को लौटा दिया। विरोध में सैकड़ों की संख्या में महिलाएं और पुरुष शामिल हुए।
बंदरगाह परियोजना का विरोध करते ग्रामीण
इस विरोध प्रदर्शन को और अधिक राजनीतिक बल तब मिला जब समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस परियोजना पर सवाल खड़े किए। उन्होंने 28 जून को लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि गंगा में जलस्तर की कमी के कारण यह बंदरगाह परियोजना सफल नहीं हो पाएगी। साथ ही उन्होंने घोषणा की थी कि वे ग्रामीणों से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजेंगे।
वार्ता के समय समाजवादी पार्टी के कई नेता मौके पर मौजूद थे, जिनमें पूर्व प्रत्याशी चंद्रशेखर यादव, मुगलसराय के महासचिव सुदामा यादव और पूर्व खादी ग्रामोद्योग सदस्य संतोष यादव शामिल थे। इन नेताओं ने ग्रामीणों का समर्थन करते हुए प्रशासन से अपील की कि किसानों पर जबरन अधिग्रहण का दबाव न डाला जाए और जन भावनाओं का सम्मान किया जाए।
इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ है कि परियोजना को लेकर स्थानीय लोगों में जबरदस्त नाराजगी है और सरकार को इस पर गहराई से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। प्रशासन के सामने अब चुनौती केवल परियोजना को आगे बढ़ाने की नहीं, बल्कि लोगों का विश्वास जीतने की भी है। अगर समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो यह मामला और गंभीर रूप ले सकता है।
स्थिति फिलहाल तनावपूर्ण बनी हुई है और प्रशासन की अगली रणनीति पर सभी की निगाहें टिकी हैं।