Site icon Hindi Dynamite News

मैनपुरी में गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल: मुस्लिम परिवार तीन पीढ़ियों से बना रहा कांवड़, पढ़ें खास खबर

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में गंगा-जमुनी तहजीब की खूबसूरत मिसाल देखने को मिल रही है, जहां एक मुस्लिम परिवार तीन पीढ़ियों से कांवड़ बनाकर हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी परंपरा को आगे बढ़ा रहा है। यह परिवार निःशुल्क सेवा भावना से कांवड़ बनाता है और धार्मिक सौहार्द की मिसाल पेश करता है।
Post Published By: Asmita Patel
Published:
मैनपुरी में गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल: मुस्लिम परिवार तीन पीढ़ियों से बना रहा कांवड़, पढ़ें खास खबर

Mainpuri News: धर्म और आस्था की मिसाल माने जाने वाले मैनपुरी जिले में एक मुस्लिम परिवार ने सामाजिक सौहार्द और भाईचारे का ऐसा उदाहरण पेश किया है। जो पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है। मैनपुरी शहर के मोहल्ला दरीबा निवासी बलि मोहम्मद, जो नूर मोहम्मद उर्फ खुंदन के पुत्र हैं। अपने परिवार के साथ पिछले तीन पीढ़ियों से कांवड़ बनाकर गंगा-जमुनी तहजीब को संजोए हुए हैं।

पूरे श्रद्धा से बनाते है कांवड़

कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालु भगवान शिव के लिए जल लेकर हरिद्वार, गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से जल भरते हैं और विशेष रूप से सावन के महीने में कांवड़ लेकर अपने गंतव्य मंदिरों तक पहुंचते हैं। इन कांवड़ों को खास ढंग से सजाया जाता है और कई बार इसमें कलात्मक निर्माण भी किया जाता है। मैनपुरी में हिंदू श्रद्धालु इस सेवा के लिए बलि मोहम्मद के परिवार के पास आते हैं। जहां उन्हें केवल कांवड़ बनाने का सामान देना होता है और यह परिवार पूरे श्रद्धा भाव से बिना किसी शुल्क के कांवड़ बनाता है।

तीन पीढ़ियों से बना रहा कांवड़

बलि मोहम्मद ने बताया कि उनका परिवार दशकों से यह परंपरा निभा रहा है। वह न केवल कांवड़ बनाते हैं बल्कि दशहरा के अवसर पर रावण के पुतले भी बनाते हैं। जन्माष्टमी पर मंदिरों की सजावट करते हैं और यहां तक कि अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए छोटा मंदिर भी तैयार करते हैं। यह सब कार्य वह निःशुल्क सेवा भावना से करते हैं।

बलि मोहम्मद ने की ये अपील

बलि मोहम्मद का कहना है कि वह इस काम को एक सेवा के रूप में देखते हैं और इसे अपनी साझी सांस्कृतिक विरासत मानते हैं। उन्होंने कहा हमारी पहचान हमारी एकता में है। अगर मैं मुस्लिम होकर कांवड़ को श्रद्धा से बना सकता हूं, तो उन श्रद्धालुओं को भी चाहिए कि वे यात्रा के दौरान संयम और शांति बनाए रखें। आस्था के पर्वों में हुड़दंग की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। उनकी यह अपील इस बात को दर्शाती है कि आस्था केवल किसी एक धर्म की बात नहीं, बल्कि इंसानियत और आपसी सद्भाव की भी पहचान है। बलि मोहम्मद की बातों से स्पष्ट होता है कि जब समाज में हर धर्म, हर वर्ग के लोग मिलकर किसी परंपरा को निभाते हैं तब गंगा-जमुनी तहजीब की असली पहचान सामने आती है।

Exit mobile version