इंद्रदेव को खुश करने के लिए गजब परंपरा! कजरी गीत गाते हुए पूर्व चेयरमैन को कीचड़ से नहलाया

देशभर मानसून ने दस्तक दे दी है, कई राज्यो में तो बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गये है, लेकिन महराजगंज सूखा का सूखा, ऐसे में इंद्रदेव को खुश करने के लिए गजब परंपरा देखने को मिली हैं।

Post Published By: Rohit Goyal
Updated : 29 June 2025, 2:34 PM IST
google-preferred

महराजगंज: जहां एक तरफ देश के कई हिस्सों में भारी बारिश और बाढ़ ने तबाही मचा रखी है, वहीं उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में भीषण गर्मी और बारिश की कमी ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। खेत सूख रहे हैं, जल संकट गहराता जा रहा है और आमजन तपती धूप से बेहाल हैं। ऐसी स्थिति में बारिश की आस में नौतनवा कस्बे की महिलाओं ने एक पुरानी लोक परंपरा को जीवंत कर इंद्रदेव को प्रसन्न करने का अनोखा प्रयास किया।

नौतनवा कस्बे की महिलाओं ने वर्षा की कामना को लेकर शनिवार को पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष गुड्डू खान के आवास पर कजरी गीत गाते हुए जुलूस की शक्ल में पहुंचीं। महिलाओं ने वहां पहुंचकर गुड्डू खान को रस्म के तौर पर हल्के ढंग से बांधा और फिर उन्हें कीचड़ व पानी से नहलाया। यह परंपरा इस मान्यता पर आधारित है कि जब गांव या नगर में लंबे समय तक बारिश नहीं होती, तो किसी सम्मानित व्यक्ति या मुखिया को कीचड़ से नहलाने पर इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और वर्षा करते हैं।


डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के अनुसार महिलाएं पूरे उत्साह के साथ पारंपरिक कजरी गीत गा रही थीं और गुड्डू खान भी खुशी-खुशी इस लोक परंपरा में शामिल हुए। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि किस तरह से यह अनूठा आयोजन पारंपरिक आस्था और विश्वास से ओत-प्रोत था। महिलाओं का मानना है कि इस अनुष्ठान से इंद्रदेव प्रसन्न होंगे और जल्द ही बारिश की सौगात लेकर आएंगे।

पूर्व चेयरमैन गुड्डू खान ने भी इस परंपरा का समर्थन करते हुए कहा कि यह एक पुरानी लोक परंपरा है जो वर्षों से चली आ रही है। उन्होंने कहा, "हमारे पूर्वजों ने भी ऐसे प्रयास किए हैं और हर बार बारिश जरूर हुई है। इस बार भी यही उम्मीद है कि इंद्रदेव जल्द कृपा करेंगे।"

डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के अनुसार स्थानीय लोगों ने भी महिलाओं के इस प्रयास की सराहना की और बताया कि हर वर्ष इस परंपरा को निभाया जाता है और इसके बाद बारिश जरूर होती है। लोगों की मान्यता और आस्था इस पहल के केंद्र में रही, जिससे एक बार फिर ग्रामीण परंपराओं की प्रासंगिकता सामने आई है।

Location : 

Published :