

मतदाता सूची यानी वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में इस मुद्दे पर सटीक विश्लेषण किया।
मतदाता सूची विवाद
नई दिल्ली: आज हम बात करेंगे उस राजनीतिक विवाद की जो देश के लोकतंत्र की बुनियाद पर ही सवाल खड़े कर रहा है। मामला है मतदाता सूची यानी वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों का। कल चुनाव आयोग ने इस विषय पर प्रेस वार्ता की थी और आयोग ने अपने पक्ष में विस्तार से दलीलें रखीं, लेकिन उसके अगले ही दिन विपक्षी दलों ने संसद के भीतर और बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। यह साफ संकेत है कि यह विवाद अब केवल तकनीकी या प्रशासनिक मसला भर नहीं रह गया, बल्कि यह गहरी राजनीतिक लड़ाई में बदल चुका है और लगता नहीं कि इतनी आसानी से थमेगा।
मतदाता सूची यानी वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में सटीक विश्लेषण किया।
कल की प्रेस वार्ता में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने साफ कहा कि मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता पर किसी को शक करने की कोई वजह नहीं है। उन्होंने कहा कि देशभर में विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है और सभी राज्यों को निर्देश दिए गए हैं कि पात्र नागरिक का नाम किसी भी हालत में सूची से बाहर न रहे। उन्होंने बताया कि आयोग लगातार डिजिटल सत्यापन, आधार लिंकिंग और फील्ड वेरिफिकेशन जैसे उपायों के जरिए डुप्लीकेट नाम, मृत व्यक्तियों के नाम और गलत प्रविष्टियों को हटाने का काम कर रहा है।
पूरे मामले की स्वतंत्र जांच...
ज्ञानेश कुमार का यह भी कहना था कि अगर किसी नागरिक का नाम गलती से हट गया है तो उसे सुधारने के लिए आयोग के पास ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों व्यवस्था है। उन्होंने जोर देकर कहा कि चुनाव आयोग किसी राजनीतिक दबाव में नहीं, बल्कि संविधान के दायरे में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम करता है और करेगा। लेकिन आयोग की इन दलीलों से विपक्षी दल बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हुए। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने संसद भवन परिसर में पत्रकारों से कहा कि यह मामला महज तकनीकी गलती का नहीं है बल्कि सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। राहुल गांधी का आरोप था कि लाखों नाम मतदाता सूची से जानबूझकर हटाए गए हैं, ताकि गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक तबकों की आवाज दबाई जा सके। उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है और जनता के संवैधानिक अधिकारों को छीनने की कोशिश है। राहुल गांधी ने मांग की कि इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच हो और जिम्मेदार अधिकारियों को कठोर सजा दी जाए।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया
इसी तरह समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि जब जनता का नाम ही वोटर लिस्ट से गायब कर दिया जाएगा तो लोकतंत्र का क्या बचेगा। अखिलेश का आरोप था कि उत्तर प्रदेश और कई अन्य राज्यों में लाखों नाम हटाए गए हैं और यह सब विपक्षी वोट बैंक को कमजोर करने की साजिश है। उन्होंने कहा कि जब तक चुनाव आयोग पारदर्शी ढंग से जवाब नहीं देता और जनता का भरोसा बहाल नहीं करता, तब तक हम चुप नहीं बैठेंगे। अखिलेश ने साफ संकेत दिया कि विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सड़कों पर भी उतरने से पीछे नहीं हटेगा।
चुनावी हार की आशंका...
इन आरोपों पर भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। पार्टी प्रवक्ताओं का कहना है कि विपक्ष दरअसल पहले से ही चुनावी हार की आशंका से घिरा हुआ है और इसलिए अब संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करके बहाने ढूंढ रहा है। भाजपा नेताओं ने कहा कि चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि मतदाता सूची में जो नाम हटाए गए हैं, वे केवल तकनीकी कारणों से हटाए गए हैं, जिनमें डुप्लीकेट नाम, मृत व्यक्तियों के नाम या गलत विवरण शामिल हैं। भाजपा का तर्क है कि इसमें राजनीति की कोई भूमिका नहीं है और विपक्ष का उद्देश्य सिर्फ चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की साख को कमजोर करना और जनता को गुमराह करना है। भाजपा नेताओं का यह भी कहना है कि यदि विपक्ष के पास ठोस सबूत हैं तो उन्हें चुनाव आयोग के सामने पेश करना चाहिए, महज बयानबाजी करके लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर नहीं करना चाहिए।
लोकतंत्र की पूरी इमारत मतदाता सूची की नींव पर...
अब सवाल यह है कि मतदाता सूची जैसी तकनीकी प्रक्रिया इतनी राजनीतिक क्यों हो जाती है। दरअसल लोकतंत्र की पूरी इमारत मतदाता सूची की नींव पर खड़ी होती है। यदि किसी नागरिक का नाम सूची में नहीं है तो उसका सबसे मूल अधिकार—मतदान का अधिकार—छिन जाता है। यही कारण है कि इस विषय पर छोटी सी गड़बड़ी भी बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले लेती है। भारत जैसे विशाल देश में, जहाँ 90 करोड़ से अधिक पंजीकृत मतदाता हैं, वहाँ मतदाता सूची को अद्यतन करने की प्रक्रिया बेहद जटिल है।
बड़ी संख्या में वास्तविक मतदाताओं के नाम हट गए...
बीते दशकों में यह समस्या बार-बार सामने आती रही है। तकनीक के इस्तेमाल के बावजूद डुप्लीकेट नाम रह जाना, मृत व्यक्तियों के नाम सूची में बने रहना, और पात्र मतदाताओं के नाम समय पर शामिल न होना आम समस्याएँ रही हैं। पिछले आम चुनाव में भी कई जगहों से शिकायतें आई थीं कि हजारों लोगों के नाम अचानक सूची से गायब हो गए। तब भी विपक्ष ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मौकों पर चुनाव आयोग को मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सख्त निर्देश दिए हैं। आधार और वोटर आईडी को जोड़ने की पहल इसी दिशा में उठाया गया कदम था ताकि फर्जीवाड़े पर रोक लगाई जा सके। लेकिन आलोचकों का कहना है कि आधार लिंकिंग की प्रक्रिया में भी बड़ी संख्या में वास्तविक मतदाताओं के नाम हट गए, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और वंचित तबकों के। विपक्ष इन्हीं आंकड़ों का हवाला देते हुए आरोप लगाता है कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से हुआ।
विवाद दोनों पक्षों के लिए रणनीतिक महत्व...
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद दोनों पक्षों के लिए रणनीतिक महत्व रखता है। विपक्ष जनता में यह संदेश देना चाहता है कि लोकतंत्र खतरे में है और चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं है। वहीं सत्ता पक्ष इस विवाद का इस्तेमाल यह दिखाने में करना चाहता है कि विपक्ष अपनी जमीन खो चुका है और अब चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं पर हमला करके खुद को प्रासंगिक बनाए रखना चाहता है। इस पूरे विवाद का अंतरराष्ट्रीय पहलू भी है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है और यहाँ की चुनावी प्रक्रिया को वैश्विक स्तर पर एक आदर्श माना जाता है। यदि मतदाता सूची की शुद्धता पर ही सवाल खड़े होने लगें तो यह भारत की वैश्विक साख पर असर डाल सकता है। यही कारण है कि यह मामला केवल घरेलू राजनीति का नहीं बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता का भी है।आने वाले दिनों में हालात और गरम हो सकते हैं। विपक्ष ने संकेत दिए हैं कि वह संसद से लेकर सड़कों तक इस मुद्दे पर आंदोलन करेगा। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, वाम दल और आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दल मिलकर देशव्यापी अभियान छेड़ सकते हैं। इससे चुनाव आयोग पर और दबाव बढ़ेगा कि वह और ठोस व पारदर्शी कदम उठाए।
मतदाता सूची के सत्यापन की प्रक्रिया...
वहीं सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग यह उम्मीद कर रहे हैं कि जब मतदाता सूची के सत्यापन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी तो विवाद अपने आप शांत पड़ जाएगा। लेकिन विपक्ष का रुख देखकर लगता नहीं कि मामला इतनी आसानी से खत्म होगा। अब यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट या अन्य संवैधानिक संस्थाएँ इस विवाद में हस्तक्षेप करेंगी। पहले से ही कई जनहित याचिकाएँ दायर हैं जिनमें स्वतंत्र जांच की मांग की गई है। यदि अदालत से कोई कठोर आदेश आता है तो यह विवाद और गहरा सकता है। फिलहाल हालात यह हैं कि चुनाव आयोग लगातार सफाई पेश कर रहा है, विपक्ष उस सफाई को खारिज कर रहा है और भाजपा विपक्ष पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगा रही है। इस खींचतान में सबसे बड़ा खतरा यह है कि आम नागरिक का भरोसा कमजोर न हो जाए। जब कोई मतदाता मतदान केंद्र पहुँचता है तो उसकी अपेक्षा बस इतनी होती है कि उसका नाम मतदाता सूची में दर्ज हो और उसका वोट गिना जाए। यही लोकतंत्र की आत्मा है। इसलिए ज़रूरी है कि राजनीतिक दल अपनी रणनीति और आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर इस बुनियादी प्रश्न पर गंभीरता से विचार करें और चुनाव आयोग भी तकनीकी व प्रशासनिक पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे। लोकतंत्र की सफलता का असली पैमाना यही है कि हर नागरिक बिना किसी बाधा के अपने मताधिकार का उपयोग कर सके।