

भारत अब अमेरिका को स्मार्टफोन भेजने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने चीन को पीछे छोड़ते हुए यह मुकाम हासिल किया है। Apple की ‘चाइना प्लस वन’ नीति और ‘मेक इन इंडिया’ पहल ने इसमें अहम भूमिका निभाई है।
भारत ने अमेरिका को iPhone भेजने में चीन को पछाड़ा (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
New Delhi: भारत अब अमेरिका को स्मार्टफोन भेजने वाला सबसे बड़ा देश बन चुका है, और इस उपलब्धि ने वैश्विक टेक सप्लाई चेन में एक बड़ा बदलाव दर्शाया है। टेक रिसर्च फर्म Canalys की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने पहली बार चीन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिकी बाज़ार में स्मार्टफोन निर्यात में पहला स्थान हासिल किया है।
इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण है Apple की रणनीतिक 'चाइना प्लस वन' नीति। इसके तहत कंपनी ने चीन पर निर्भरता घटाते हुए भारत में iPhone का उत्पादन तेज़ किया। Canalys की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2025 में भारत से करीब 1.5 मिलियन (15 लाख) iPhones सीधे अमेरिका भेजे गए। ये फोन चार्टर्ड कार्गो विमानों के ज़रिए भेजे गए, जिससे शिपमेंट तेज और भरोसेमंद बनी।
भारत में iPhone का उत्पादन बढ़ाने का श्रेय ‘मेक इन इंडिया’ अभियान और केंद्र सरकार की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना को जाता है। भारत में Apple की सफलता ने अन्य बड़ी कंपनियों जैसे Samsung और Motorola को भी आकर्षित किया है, जो अब धीरे-धीरे अपने अमेरिकी ऑर्डर्स भारत में प्रोड्यूस करने लगे हैं।
हालांकि Apple की अमेरिका में iPhone शिपमेंट इस साल की दूसरी तिमाही में 11% गिरकर 13.3 मिलियन यूनिट्स रह गई, लेकिन कंपनी की दीर्घकालिक रणनीति को अभी भी सफल माना जा रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर भी iPhone की शिपमेंट में 2% की गिरावट आई है, जिसका कारण यूज़र्स की धीमी मांग और टैरिफ नीतियों में संभावित बदलाव को लेकर अनिश्चितता है।
भारत में Apple की सफलता (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
अमेरिकी व्यापार नीति भी इस ट्रेंड के पीछे एक अहम वजह है। अप्रैल 2025 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आने वाले स्मार्टफोन पर 26% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जिसे फिलहाल 1 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया है। इस अस्थिरता के चलते कंपनियां चीन से बाहर मैन्युफैक्चरिंग शिफ्ट करने को प्राथमिकता दे रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की यह उपलब्धि शुरुआत भर है। स्मार्टफोन एक्सपोर्ट के मामले में आगे और वृद्धि की संभावनाएं हैं, लेकिन छोटे और मध्यम दर्जे के मैन्युफैक्चरर्स को प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अपनी रणनीतियों को और मजबूत करना होगा। सरकार और उद्योग जगत के बीच बेहतर सहयोग से भारत न केवल अमेरिका बल्कि अन्य बड़े बाज़ारों के लिए भी एक प्रमुख सप्लायर बन सकता है।
इस उपलब्धि के साथ भारत ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि वह केवल एक उपभोक्ता बाजार नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद उत्पादन केंद्र भी है।