DN Exclusive: कौन है वो ‘खास अफसर’ जो पीछे पड़ा है आईपीएस प्रशांत के?

मनोज टिबड़ेवाल आकाश

यूपी की ब्यूरोक्रेसी कमाल की है। अपने हित में किसी भी हद तक जा सकती है। सवा करोड़ में सौदा कर मलाईदार पोस्टिंग पाने के चक्कर में नप चुके आईएएस का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा है कि एक आईपीएस दूसरे के खिलाफ सलेक्टिव लीक्स करने में जुट गया है। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:

यूपी में नहीं थम रही आईपीएस अफसरों की आपसी रार
यूपी में नहीं थम रही आईपीएस अफसरों की आपसी रार


नई दिल्ली: यूपी में तीन दिन पहले दस सीनियर आईपीएस अफसरों को तबादला हुआ था। 

इसमें एक नाम पर सबसे अधिक चर्चा हुई, 1990 बैच के आईपीएस प्रशांत कुमार की। 

मेरठ जोन के एडीजी के रुप में प्रशांत लंबे समय तक पश्चिमी यूपी के 11 जिलों के बेताज बादशाह थे। इनका यहां से तबादला कर दिया गया और राज्य के नये अपर पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) के रुप में नयी तैनाती दी गयी। 

सूबे के कई वरिष्ठ पुलिस अफसरों से बात कर डाइनामाइट न्यूज़ ने यह समझने की कोशिश की मेरठ जोन के एडीजी और राज्य के एड़ीजी (लॉ एंड आर्डर) में से कौन सा पद ज्यादा महत्वपूर्ण है? मतलब कि प्रशांत के मेरठ से लखनऊ तबादले को प्रमोशन समझा जाय या डिमोशन या समकक्ष?

इस पर अफसरों ने कहा कि इसे एक तरह से प्रमोशन कहा जायेगा क्योंकि जबसे मेरठ जोन से नोएडा का इलाका कमिश्नर प्रणाली की वजह से निकला है तबसे इस पद का भौकाल कुछ कम माना जाने लगा। लखनऊ में इस पद पर बैठ अफसर की सीधी पहुंच मुख्यमंत्री के पास हो जाती है। साथ ही सभी 75 जिलों के कप्तान लॉ एंड आर्डर के नाम पर रडार पर रहते हैं। 

यह भी पढ़ें: कमाऊ पोस्टिंग के लिये सवा करोड़ की डील में नपा यूपी का ये आईएएस

शायद यही कारण है कि प्रशांत की यह पोस्टिंग एक ख़ास अफसर को नहीं सुहायी। अभी ये ठीक से नया चार्ज भी नहीं ले पाये थे कि गोपनीय तौर पर सलेक्टिव लीक्स कराना शुरु कर दिया गया। आंकड़ों के साथ लीक किया गया कि जिस प्रशांत को राज्य भर के लॉ एंड आर्डर को ठीक करने का जिम्मा दिया गया है उनके मेरठ जोन के कार्यकाल में बीते दो महीने में 120 बार खूरेंजी जंग हुई। इसमें 68 मर्डर, 137 बार टकराव और 7 बार पुलिसिया टीम पर हमले हुए। आंकड़ों की जुबानी बीते 60 दिन में मेरठ में 12, मुजफ्फरनगर में 12, शामली में 4, बागपत में 13, सहारनपुर में 9, बुलंदशहर में 8, गाजियाबाद में 7, बिजनौर में 3 कत्ल की वारदातें हुईं। 

जाहिर सी बात है ये आंकड़े किसी जिम्मेदार ने ही जारी किये होंगे, जो सिस्टम का पार्ट है और जिसकी सीधी पहुंच आंकड़ों की बाजीगरी तक है।

ऐसे में सवाल यह है कि आखिर कौन सी ऐसी पुरानी अदावत है जिसके चक्कर में पद से हटते ही हमला बोला गया? क्या इस आंकड़ों से यह साबित करने की कोशिश है कि इन जिलों के कप्तानों को कोई दोष नहीं, सिर्फ सुपरविजन करने वाले एडीजी दोषी हैं? य़दि आंकड़े जारी करने ही थे तो पूरे प्रदेश के किये जाते? सिर्फ एक खास जोन का क्यों? ये ऐसे सवाल हैं जो आईपीएस अफसरों की आपसी कलह की चुगली कर रहे हैं। 

डीजीपी की बढ़ जाती है चुनौती
कुछ समय पहले ही पुलिस महानिदेशक के पद पर तैनात किये गये 1985 बैच के आईपीएस हितेश चंद्र अवस्थी की आम शोहरत यूं तो ईमानदार अफसर की है लेकिन क्या ईमानदारी के साथ-साथ उनका मातहतों पर पूर्ण नियंत्रण है? इसकी परख होनी अभी बाकी है। डीजीपी पर बड़ी जिम्मेदारी है कि अनुशासित माने जाने वाले पुलिस महकमे में वे आईपीएस अफसरों की व्यक्तिगत लड़ाईयों को हर हाल में कंट्रोल में रखें। 

 










संबंधित समाचार