सीएम की बैठक में आईएएस ने की न जाने की हिमाकत, भड़के योगी.. कहा- तत्काल करो छुट्टी

यूपी की ब्यूरोक्रेसी किस तरह राज्य सरकार का कामकाज में सहयोग कर रही है इसका जीता-जागता उदाहरण सीएम की एक बैठक में देखने को मिला। बसपा शासनकाल में गोरखपुर के डीएम रह चुके एक आईएएस अफसर को सीएम की बैठक में आना भी अच्छा नही लग रहा.. आखिर क्यों? डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव..

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 21 September 2018, 12:59 PM IST
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नई दिल्ली: लगता है जो आईएएस और आईपीएस गोरखपुर मंडल में गैर भाजपाई सरकारों में काम कर चुके हैं वे योगी आदित्यनाथ को डेढ़ साल बीतने के बाद भी पुराने चश्मे से ही देख रहे हैं। कुछ अफसर ऐसे हैं जो आज भी योगी को सीएम न मानने के भ्रमजाल हैं और उन्हें महज एक विपक्षी सांसद समझ रहे हैं।

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इसी बैठक से लापता रहे आईएएस संजय कुमार

 

यदि ऐसा नही है तो फिर क्या कारण है कि सीएम द्वारा गुरुवार को अपने कार्यालय में बुलायी गयी राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक से राहत आयुक्त ही गायब रहे?

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मीटिंग में मौजूद कुछ भरोसेमंद सूत्रों ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि बैठक से गायब आईएएस संजय कुमार के बारे में सीएम को जैसे ही पता लगा उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया और कहने लगे कि “ये आदमी तो वैसे भी कुछ काम नही करता है.. इसकी अभी तत्काल छुट्टी करो”

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संजय 2002 बैच के अधिकारी हैं। ये कंधे में लगी एक चोट की आड़ में सीएम की मीटिंग से गायब हो गये? बड़ा सवाल यह है कि क्या संजय को वाकई कोई परेशानी है या नही? क्या मीटिंग के दिन उन्होंने कोई अवकाश लिया था या नही? इस बारे में कोई कुछ बोलने को तैयार नही है। 

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गोरखपुर
डाइनामाइट न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक बसपा सरकार के जमाने में वर्ष 2011 में संजय कुमार गोरखपुर के डीएम होते थे तब भारत सरकार के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष एम. शशिधर रेड्डी दो बार गोरखपुर पहुंचे थे और इन बैठकों में योगी भी पहुंचते थे। योगी खुद संजय के काम करने के तरीके को नजदीक से जानते हैं। योगी की नजर में इनकी कार्यप्रणाली पूरी तरह से संदिग्ध है।

इलाहाबाद
पिछली सरकार से लेकर ये इस सरकार के आने तक इलाहाबाद के डीएम भी थे तब झूंसी इलाके में रेलवे की करोड़ों रुपये मूल्य की नगर निगम इलाके की 41 बीघे जमीन को भू-माफियाओं को दिलवाने की कथित संलिप्तता के मामले में इलाहाबाद क्राइम ब्रांच ने संजय को जांच के लिए सम्मन भेजा था लेकिन बाद में इसकी विवेचना ही सीबीसीआई लखनऊ को ट्रांसफर करा दी गयी। 

ये इस साल जनवरी से राहत आयुक्त के पद पर काबिज हैं। 
 

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