सिकल सेल से पीड़ित तंजानियाई नागरिक की दिल्ली के अस्पताल में पूर्ण कूल्हा प्रतिरोपण सर्जरी
दिल्ली के एक प्रख्यात निजी अस्पताल में सिकल सेल बीमारी से पीड़ित, 33 वर्षीय एक तंजानियाई नागरिक का, पूर्व की सर्जरी की समीक्षा के बाद पूर्ण कूल्हा प्रतिरोपण किया गया। पढ़िए पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: दिल्ली के एक प्रख्यात निजी अस्पताल में सिकल सेल बीमारी से पीड़ित, 33 वर्षीय एक तंजानियाई नागरिक का, पूर्व की सर्जरी की समीक्षा के बाद पूर्ण कूल्हा प्रतिरोपण किया गया। डॉक्टरों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि यह ‘‘बहुत ही चुनौतीपूर्ण मामला’’ था क्योंकि मरीज की हालत तीव्र संक्रमण के चलते तेजी से बिगड़ रही थी।
उन्होंने कहा कि पहले इस मरीज को बायें कूल्हे की फीमोरल हड्डी के ऊपरी हिस्से में ‘एवैस्कुलर नेक्रोसिस (एवीएन) की समस्या होने का पता चला था। इसमें कूल्हा विकृत हो जाता है।
दिल्ली के अपोलो अस्पताल ने एक बयान में कहा कि उसका अपने देश में पूर्ण कूल्हा प्रतिरोपण (टोटल हिप रिप्लेसमेंट ... टीएचआर) हुआ था जिसके बाद उसे संक्रमण हो गया था। साथ ही उसकी बाईं जांघ से पस निकलने लगा। करीब एक साल तक इस स्थिति से गुजरने के बाद वह दिल्ली के इस अस्पताल में आया।
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उसने कहा, ‘‘ मरीज को सर्जिकल घाव से स्राव हो रहा था और इसे ठीक करना जरूरी था। सर्जरी से पहले मरीज ने सिकल सेल बीमारी के चलते अपने बायें घुटने, कूल्हे और कंधे में दर्द की शिकायत की।’’
डॉक्टरों ने कहा कि सिकल सेल रोग में संक्रमण का उपचार चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि संक्रमणकारी सूक्ष्मजीव को इस बीमारी वाले मरीज के शरीर से खत्म करना मुश्किल होता है और यह बीमारी प्रतिरोध क्षमता को भी घटा देती है।
उन्होंने कहा कि सिकल सेल रोग आनुवांशिक लाल रक्त कोशिका (आरबीसी) विकार होता है जिसमें हीमोग्लोबिन असामान्य हो जाता है। इसके फलस्वरूप लाल रक्त कोशिकाएं आरबीसी कठोर होकर ‘सी’ या हंसिया के आकार की हो जाती हैं।
डॉक्टरों ने कहा कि और जांच में पाया गया कि इस तंजानियाई मरीज में प्रतिरोपित कूल्हे भी सामान्य स्थिति से अलग हो गए हैं। तब उसे इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक (ऑर्थोपेडिक्स एवं ज्वायंट रिप्लेसमेंट) राजू वैश्य की निगरानी में भर्ती किया गया तथा पिछली टीएचआर से उत्पन्न गहरे संक्रमण के लिए ‘बायें कूल्हे की प्रथम चरण की समीक्षा सर्जरी की गयी। ’’
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डॉक्टरों ने कहा कि सिकल कोशिकाएं शीघ्र मर जाती है, फलस्वरूप आरबीसी की निरंतर कमी हो जाती है एवं रक्ताल्पता पैदा हो जाती है। उन्होंने कहा कि जब ये असामान्य विकृत आरबीसी रक्त धमनियां से गुजरती हैं तो वे रक्त प्रवाह बाधित करती हैं जिसके फलस्वरूप दर्द तथा इस तरह के संक्रमण (जैसा इस मामले में हुआ है) , जैसी अन्य गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं।
डॉ वैश्य ने कहा, ‘‘ यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण मामला था क्योंकि मरीज की दशा संक्रमण के चलते तेजी से बिगड़ रही थी। यहां उसकी दो चरणों वाली सर्जरी हुई। पहले चरण में संक्रमित जोड़ की सफाई की गयी और तथा पहले प्रतिरोपित कूल्हे को, संक्रमण दूर करने के लिए हटाया गया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ एंटीबायोटिक से भरा ‘सीमेंट स्पेशर’ वहां डाला गया। मरीज की यह सर्जरी हुई और फिर कोई जटिलताएं नजर नहीं आने पर तीन दिनों में उसे छुट्टी दे दी गयी।’’
अस्पताल ने कहा कि दूसरे चरण की सर्जरी इस साल मार्च में संक्रमण खत्म करने के बाद की गयी और समीक्षा टीएचआर किया गया। उसने कहा कि मरीज पूरी तरह ठीक हो गया है और अब वह बिना दर्द के चलने-फिरने लगा है।