ऐसी मानसिकता बनाई जा रही है कि जो ‘जन्म से मृत्यु’ तक का ठेका ले वही कल्याणकारी सरकार
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद वरुण गांधी ने बुधवार को कहा कि राजनीतिक दलों ने मुफ्त की रेवड़ियों की पेशकश की संस्कृति को बढ़ावा देकर जनमानस में एक ऐसी मानसिकता को प्रोत्साहित किया है कि जो सरकार ‘जन्म से मृत्यु’ तक का उसका ठेका ले, वही कल्याणकारी सरकार है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद वरुण गांधी ने बुधवार को कहा कि राजनीतिक दलों ने मुफ्त की रेवड़ियों की पेशकश की संस्कृति को बढ़ावा देकर जनमानस में एक ऐसी मानसिकता को प्रोत्साहित किया है कि जो सरकार ‘जन्म से मृत्यु’ तक का उसका ठेका ले, वही कल्याणकारी सरकार है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार शासन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अक्सर अपनी चिंता जताने वाले वरूण गांधी ने कहा कि मुफ्त की रेवड़ियों की पेशकश कर सार्वजनिक धन के व्यापक दुरुपयोग के बारे में संवाद की जरूरत है।
गांधी ने अपनी हालिया किताब ‘‘द इंडियन मेट्रोपोलिस’’ के बारे में चर्चा करते हुए कहा, ‘‘ऐसे कई वादे पूरे नहीं होते हैं या आंशिक रूप से अधूरे रह जाते हैं। ऐसे वादे करना मतदाताओं का अपमान है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सभी राजनीतिक दल अब मुफ्त रेवड़ियां बांटने की पेशकश करते हैं और इसके माध्यम से हकदारी की एक मानसिकता को प्रोत्साहित किया गया है। इससे जन्म से अंत तक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पैदा हो रही है।’’
हालांकि, उन्होंने कहा कि हर योजना या घोषणापत्र का वादा मुफ्त नहीं है।
उनके मुताबिक स्कूलों में छात्रों के लिए मुफ्त भोजन, जैसा कि मध्याह्न भोजन योजना के तहत दिया जाता है।
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उन्होंने कहा कि इसे मुफ्त के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए, यह देखते हुए कि यह हमारे बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है।
उन्होंने आगे कहा कि मुफ्त उपहारों के इस ढांचे में सुधार के लिए कई स्तर पर पहल की आवश्यकता होगी।
उत्तर प्रदेश से तीन बार सांसद रहे गांधी ने सुझाव दिया, ‘‘मुफ्त उपहारों की घोषणा करने वाली सरकारों (चाहे राज्य हो या केंद्र) को एक वित्त पोषण योजना प्रदान करने की आवश्यकता होनी चाहिए। संसद (और राज्य विधानसभा) बजटीय समझ को मजबूत करने और कार्य करने की उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए, नीतियों को तैयार करने और बजटीय विश्लेषण करने में सहायता के लिए एक बजटीय कार्यालय स्थापित किया जाना चाहिए।’’
शहरों के सामने चुनौतियों के बारे में लिखी अपनी पुस्तक के बारे में चर्चा करते हुए गांधी ने कहा कि भारत के शहर अपने मास्टर प्लान में ‘‘कई शहरी हरित स्थानों की आवश्यकता पर विचार करने में विफल’’ रहे हैं।
गांधी ने कहा, ‘‘सरकारी स्तर पर, हम अपने शहरों में वनों और ग्रीन जोन के मूल्य और उनके अमूर्त लाभों के बारे में समझ के दिवालियेपन का सामना कर रहे हैं।’’
अपनी बात के समर्थन में उन्होंने मुंबई का उदाहरण दिया और कहा कि 1964 और 1991 में शहर की विकास योजनाओं में 20 साल की अवधि के लिए भूमि उपयोग की योजना बनाने की बात की गई थी, लेकिन हरित स्थानों को कमजोर कर दिया गया।
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उन्होंने कहा कि और अब हर साल, मुंबई के कुछ सबसे महंगे रियल एस्टेट क्षेत्र मानसून की बारिश की बाढ़ में डूब जाते हैं।
उन्होंने सिंगापुर के एक उदाहरण का जिक्र करते हुए कहा कि भारत को इस बात पर पुनर्विचार करने की जरूरत है कि वह अपने शहरों का प्रबंधन कैसे करता है ताकि शहरीकरण की प्रक्रिया को धरती के लिए बेहतर बनाने पर जोर दिया जाए।
गांधी पिछले कुछ समय से कृषि कानूनों, बेरोजगारी और शासन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर अपनी पार्टी से स्वतंत्र रुख अपना रहे हैं। उन्होंने अब तक चार किताबें लिखी हैं। इनमें ‘‘द इंडियन मेट्रोपोलिस’’ उनकी नवीनतम पुस्तक है।