राज्यपालों की नियुक्ति का अधिकार राज्यों को मिले, पढ़िए पूरा अपडेट

डीएन ब्यूरो

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य वी शिवदासान ने शुक्रवार को राज्यसभा में कहा कि ‘लोगों की इच्छा’ का सम्मान करते हुए राज्यों को राज्यपाल नियुक्त करने का अधिकार देने के लिए संविधान में संशोधन करने की जरूरत है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

राज्यपालों की नियुक्ति का अधिकार राज्यों को मिले
राज्यपालों की नियुक्ति का अधिकार राज्यों को मिले


नयी दिल्ली: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य वी शिवदासान ने शुक्रवार को राज्यसभा में कहा कि ‘लोगों की इच्छा’ का सम्मान करते हुए राज्यों को राज्यपाल नियुक्त करने का अधिकार देने के लिए संविधान में संशोधन करने की जरूरत है।

कुछ विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच जारी टकराव के बीच राज्यसभा में शिवदासान की ओर से पेश किए गए एक निजी विधेयक पर चर्चा हुई, जिसमें राज्यपालों की भूमिका और शक्तियों को परिभाषित करने के लिए संविधान में संशोधन करने की मांग की गई है।

शिवदासान ने पिछले साल यह विधेयक पेश किया था और अपनी बात रखी थी लेकिन वह चर्चा अधूरी रह गई थी।

चर्चा को आज आगे बढ़ाते हुए शिवदासान ने कहा कि विपक्ष शासित राज्यों में नियुक्त किए गए राज्यपाल केंद्र सरकार के ‘टूल’ के रूप में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान में केंद्र व राज्यों की शक्तियों का बंटवारा किया गया है लेकिन केंद्र सरकार राज्यों की शक्तियों में हस्तक्षेप कर रही है और राज्यपाल इसके साधन बन रहे हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ राज्यों में तो राज्यपाल राज्य की विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर कुंडली मारकर बैठ जाते हैं जो कि राज्य के हित में नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह बहुत महत्वपूर्ण विधेयक है। यह जनहित में है कि राज्यपाल के पद पर नियुक्ति केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नहीं की जाए, बल्कि राज्य द्वारा ही की जानी चाहिए। लोगों की इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिए।’’

वामपंथी नेता ने कहा कि सहकारी संघवाद राष्ट्र के मूल ढांचे के साथ-साथ संविधान का भी हिस्सा है।

शिवदासान ने भाजपा नीत केंद्र सरकार पर राज्यों की शक्ति को कम करने के लिए चौबीसों घंटे काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया, ''इन सब में राज्यपाल केंद्र सरकार के एजेंडे को लागू करने का एक साधन बन गए हैं।’’

उन्होंने औपनिवेशिक काल की विरासत को खत्म करने के लिए सदस्यों का समर्थन मांगा।

केरल से सांसद शिवदासान ने प्रस्ताव दिया है कि राज्यपाल का चुनाव निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाना चाहिए जिसमें राज्य के निर्वाचित विधायक और राज्य की पंचायतों, नगरपालिकाओं और निगमों के निर्वाचित सदस्य शामिल हों।

उन्होंने इस विधेयक के जरिए राज्यपालों की नियुक्ति से संबंधित, संविधान के मौजूदा अनुच्छेद 156 में संशोधन की मांग की है।

शिवदासान के प्रस्ताव के मुताबिक, राज्यपाल का कार्यकाल पांच साल का होता है और वह अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को सौंप सकते हैं, न कि राष्ट्रपति को। विधानसभा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव के माध्यम से राज्यपाल को भी पद से हटा सकती है।

विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के कथनों के अनुसार, एक राज्यपाल राज्य सरकार की कार्यपालिका का प्रमुख होता है और अत्यधिक गरिमा रखता है। इसमें कहा गया है कि पद के कद और गरिमा के लिए जरूरी है कि इस तरह के पद पर आसीन व्यक्ति को लोगों का वैध समर्थन मिले और वह राज्य के लोगों के प्रति जवाबदेह हो।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नरेश अग्रवाल ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि वर्तमान में राज्यपाल के चयन की प्रक्रिया लोकतांत्रिक है। उन्होंने कहा कि ऐसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया से छेड़छाड़ करना अनुचित होगा।

उन्होंने कहा कि राज्यपाल की नियुक्ति इसलिए की जाती है कि कोई राज्य सरकार मनमानी ना कर सके।

कांग्रेस के एल हनुमंतय्या ने कहा कि राज्यपाल से जुड़े विवाद उन्हीं राज्यों में अधिक होते हैं जहां विपक्षी दलों की सरकारें होती हैं। उन्होंने राज्यपालों की नियुक्ति से पहले राज्य सरकार की अनुशंसा लेने की मांग की।

तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार ने उच्चतम न्यायालय की ओर से तमिलनाडु के राज्यपाल के लिए की गई हालिया टिप्पणी का उल्लेख किया और कहा कि ऐसी स्थितियां इस विषय की गंभीरता की ओर इशारा करती हैं।

उन्होंने दावा किया किया अधिकांश राजभवन केंद्रीय गृह मंत्रालय में बैठे कुछ अधिकारियों से संचालित होते हैं।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के सदस्य संदोष पी ने कहा कि विधेयक पेश करने वाले सदस्य और उनकी पार्टी की विचारधारा मिलती जुलती है लेकिन इसके बावजूद वह इसका विरोध करते हैं क्योंकि उनकी पार्टी का मानना है कि राज्यपाल के पद को ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

उन्होंने ‘राजभवन’ नाम पर भी आपत्ति जताई और कहा कि इससे ऐसा संदेश जाता है कि आज के युग में कोई राजा रहता है।

द्रविड़ मुनेत्र कषगम के आर गिरिराजन ने राज्यपालों द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक लंबित रखे जाने पर अंकुश लगाने की आवश्यकता जताई और इसके लिए एक समय सीमा तय करने की बात कही।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसारबीजू जनता दल के सुजीत कुमार ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह व्यवहारिक नहीं है। राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा ने कहा कि कुछ विपक्ष शासित राज्य ‘लाटसाहेब’ लोगों से परेशान हैं। उन्होंने कहा था कि एक समय था जब देश में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री की बात सुनकर राज्यपालों की नियुक्ति होती थी लेकिन आज प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों की सुनते तक नहीं हैं।

चर्चा में माकपा के जॉन ब्रिटास, भाजपा के विप्लब देब सहित कुछ अन्य सदस्यों ने भी हिस्सा लिया। हालांकि चर्चा पूरी नहीं हो सकी।










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